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एक नज़्म

जीलानी कामरान

एक नज़्म

जीलानी कामरान

MORE BYजीलानी कामरान

    क़दम दो क़दम चल के थक सा गया है

    हमारे मुक़द्दर का इंसाँ...

    दरख़्तों ने अपने कई सारे पज़मुर्दा पत्ते

    हवाओं के घर से बुलाए हैं

    थके-हारे रह-रव पे साया करें

    उस की ख़ातिर शिकस्ता दिलों का कोई गीत

    सब मिल के गाएँ!

    ज़मीं ने कहा है, ये इंसाँ नहीं था

    वगर्ना यूँ रस्ते में अपने इरादे की हितक करता

    यूँ अपने ही साए से बे-कार ख़ाइफ़ होता

    मंज़िल से घबरा के रस्ते में गिरता

    यूँ अपने घराने की तौहीन करता!

    हमारे मुक़द्दर का इंसान मंज़िल-ब-मंज़िल

    सितारों से गुज़रा है, बज़्म-ए-नुजूम-ओ-क़मर जगमगा कर

    निशान-ए-क़दम बन गई है

    शिकस्ता दिलों का सनम बन गई है

    ख़ुदाई के फैले हुए सिलसिले हैं हरम बन गई है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Urdu International (पृष्ठ 70)
    • रचनाकार : Ashfaq Hussain
    • प्रकाशन : 9, Thirty fifth Street, 2, Toronto, Ontario, Canada M8w 3J8 (Nov. Dec. Jan. 1982, Volume 1, No.2)
    • संस्करण : Nov. Dec. Jan. 1982, Volume 1, No.2

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