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नज़्म
ग़म का मारा हर कोई ख़ुशियों का ठुकराया लगे
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल बन चुका है मस्कन-ए-सोज़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़
सीना जवाब-ए-बर्क़-ए-तपाँ है तिरे बग़ैर
शैदा अम्बालवी
नज़्म
अफ़सोस मुल्क-भर में हो इक चराग़ वो भी
बुझ जाए जलते जलते सोज़-ए-ग़म-ए-निहाँ से
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
मिरी जाँ से फुसून-ए-सोज़-ओ-ग़म छिन क्यों नहीं जाता
न जाने मेरे दिल की ख़ुद-फ़रेबी क्यों नहीं जाती
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
निगार-ए-शाम-ए-ग़म मैं तुझ से रुख़्सत होने आया हूँ
गले मिल ले कि यूँ मिलने की नौबत फिर न आएगी