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नज़्म
मैं तलाश कर रही थी ग़म-ए-दिल का कुछ बहाना
मिरी राह में ये नाहक़ कहाँ आ गया ज़माना
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
बयाँ क्या तुझ से हो हमदम कि शाइ'र कौन है क्या है
वो इस दुनिया में रह कर और ही आलम में रहता है
कमाल हैदराबादी
नज़्म
मोहब्बत जिस में लग़्ज़िश भी हुसूल-ए-कामरानी है
मोहब्बत जिस की हर काविश सुरूर-ए-जावेदानी है
ऋषि पटियालवी
नज़्म
हवा में उड़ता है काजल फ़ज़ा है हुज़्न से बोझल
हर एक कुंज की हलचल कोहर में डूब चली है