ग़ुरूर का अंजाम
रोचक तथ्य
Kids Magazine 'Umang', New Delhi, September 1992, Selected stories from Umang, Urdu Academy, Delhi, 1995
मंज़ूम कहानी
हामिद था मदरसे का इक होनहार बच्चा
जूया था इल्म का वो था कामगार बच्चा
इज़्ज़त बड़ों की करता छोटों से प्यार करता
सब को सलाम करता सब से अदब से मिलता
पैकर ख़ुलूस का था यूँ बा-तमीज़ था वो
अपने हों या पराए सब का अज़ीज़ था वो
इक रोज़ उस के दिल में शैतान आ समाया
फिर क्या था ख़ुद-नुमाई ने सर बहुत उठाया
सोचा यूँही नहीं ये लोगों पे धाक मेरी
शायद यहाँ सभों से ऊँची है नाक मेरी
सब चाहते हैं मुझ को मैं सब का हूँ दुलारा
शायद नहीं है रौशन मुझ सा किसी का तारा
ये सोचते हैं ऐसा मग़रूर हो गया वो
इख़्लास-ओ-नेक-सीरत से दूर हो गया वो
मिलने लगी शरारत ही में उसे तो लज़्ज़त
वो मानता बुरा जब करता कोई नसीहत
तंग आ के रफ़्ता-रफ़्ता लोगों ने साथ छोड़ा
यारों ने मुँह को मोड़ा अपनों ने रिश्ता तोड़ा
औरों से दूर हो कर अपने में खो गया वो
बस्ती में मदरसे में तन्हा सा हो गया वो
साथ उस के मदरसे अब साथी कोई न जाता
अब साथ वो किसी के हरगिज़ न खेल पाता
इक रोज़ रास्ते में देखा न उस ने पत्थर
ज़ख़्मी हुआ वो काफ़ी खाई जो उस ने ठोकर
ख़ून इतना बह गया कि बेहोश हो गया वो
आया जो होश अपनी हालत पे रो पड़ा वो
कोई न था वहाँ जो उस की मदद को आता
लँगड़ाता और रोता उस शाम घर को पहुँचा
एक हफ़्ता बा'द उस का सालाना इम्तिहाँ था
लेकिन इलाज ही में हफ़्ता वो सारा गुज़रा
दिन इम्तिहाँ के बारिश ने रास्ते में घेरा
पेड़ों के नीचे दुबका छतरी न ला सका था
वैसे तो साथियों को उस ने बहुत पुकारा
लेकिन किसी को उस पर मुतलक़ तरस न आया
अल-क़िस्सा इम्तिहाँ में नाकाम हो गया वो
था नेक-नाम कल तक बदनाम हो गया वो
बच्चो फ़क़त कहानी हरगिज़ इसे न जानो
ये बात क़ीमती है दिल से तुम इस को मानो
भूले से भी न हरगिज़ दिल में ग़ुरूर आए
किरदार भी हो ऐसा सब को सुरूर आए
करता है ख़ाक जिस्म-ओ-जाँ को ग़ुरूर ऐसे
सूखे हुए शजर को खा जाए आग जैसे
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