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नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जमाल-ए-मर्ग-आफ़रीं! ये शब मेरी ज़िंदगी है
मेरे लबों ने वो लब भी चूमे हैं जिन में मर्ग-ए-गिराँ नहीं थी
यूसुफ़ ज़फ़र
नज़्म
कुछ इंतिज़ार और करो सब्र-ए-नागवार और करो
कुछ अपने सरों को क़लम गरेबाँ को चाक और करो
क़लील झांसवी
नज़्म
ख़िरद ये चाहती है मौत को भी ज़ेर कर दे
वजूद-ए-हस्त फैला दे क़याम ज़िंदगी ता-देर कर दे