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नज़्म
पर-फ़िशाँ है जज़्बा-ए-पिन्हाँ उभरने के लिए
मुज़्तरिब है ज़र्रा ज़र्रा रक़्स करने के लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वक़्त साकिन था या लम्हा था कोई ठहरा हुआ
ज़ेहन में सिमटी हुई सोच उभरने सी लगी
फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
नज़्म
जोश उभरने का हो काश इतना ही अहल-ए-अस्र में
जिस क़दर पैहम चमक है किर्मक-ए-शब-ताब में