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नज़्म
उस की ज़मीं बे-हुदूद उस का उफ़ुक़ बे-सग़ूर
उस के समुंदर की मौज दजला ओ दनयूब ओ नील
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फिर ये इंसाँ आँ सू-ए-अफ़्लाक है जिस की नज़र
क़ुदसियों से भी मक़ासिद में है जो पाकीज़ा-तर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस ने आफ़ाक़ पे फैलाया है यूँ सेहर का दाम
दामन-ए-वक़्त से पैवस्त है यूँ दामन-ए-शाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ना-गहाँ आज मिरे तार-ए-नज़र से कट कर
टुकड़े टुकड़े हुए आफ़ाक़ पे ख़ुर्शीद ओ क़मर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मिस्ल-ए-अंजुम उफ़ुक़-ए-क़ौम पे रौशन भी हुए
बुत-ए-हिन्दी की मोहब्बत में बिरहमन भी हुए
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुर्ख़-रू आफ़ाक़ में वो रहनुमा मीनार हैं
रौशनी से जिन की मल्लाहों के बेड़े पार हैं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
यूँ गुमाँ होता है बाज़ू हैं मिरे साथ करोड़
और आफ़ाक़ की हद तक मिरे तन की हद है