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नज़्म
गर मिरा हर्फ़-ए-तसल्ली वो दवा हो जिस से
जी उठे फिर तिरा उजड़ा हुआ बे-नूर दिमाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बा'द गाँधी के न सुन हम ने समाँ देखा क्या
फ़स्ल-ए-गुल आते ही हर बाग़-ओ-चमन उजड़ा क्या
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
ऐ हिन्द के बाशिंदो आओ उजड़ा गुलज़ार सजा डालें
अब दौर-ए-ग़ुलामी ख़त्म हुआ इक ताज़ा जहाँ की बिना डालें
कँवल डिबाइवी
नज़्म
तेरे लिए आसमानों से कोई मो'जिज़ा नहीं उतरा
उजड़ा हुआ घर बे-बिज़ाअ'ती ज़मीन-ओ-आसमान की सख़्तियाँ