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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्यों उजाले हैं निगाहों में तिरी चुभने लगे
क्यों अँधेरों में मिरे दोस्त तुझे कैफ़ मिले
सदा अम्बालवी
नज़्म
वा'दा-ए-क़ुर्ब ख़ुदा जाने वफ़ा हो कि न हो
वस्ल का सोच के ही जान पे बन आती है