आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "vird"
नज़्म के संबंधित परिणाम "vird"
नज़्म
तुम्हें सुनता हूँ
तो मुझ को क़दीमी मंदिरों से घंटियों और मस्जिदों से विर्द की आवाज़ आती है
रहमान फ़ारिस
नज़्म
तमाम आयात-ए-क़ुर्आनी, वज़ीफ़े और मुनाजातें
कि जिन के विर्द से सारी बलाएँ दूर रहती हैं
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
कभी आईने में अपनी पुरानी दास्ताँ की आयतों का विर्द करती है
कभी चौखट पे आ के याद की तस्बीह करती है
आतिफ़ तौक़ीर
नज़्म
पानियों पर छे दिनों तक बे-तकाँ जुम्बिश में पाया
लफ़्ज़-ए-कुन का विर्द कर के आँख जब खोली तो देखा
अमीक़ हनफ़ी
नज़्म
हम भी आज़ाद वतन को कभी देखें 'साबिर'
ये दुआ विर्द-ए-ज़बाँ शाम-ओ-सहर रखते हैं