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नज़्म
तलाश-ए-हुस्न-ओ-मुदावा-ए-ज़ख़्म-ए-दिल के लिए
चुरा के लाए हैं दो-चार लम्हे दुनिया से
माहिर मरनसूर
नज़्म
आज का ख़ून है रंग-ए-गुल-ए-फ़र्दा के लिए
दर्द-ए-ज़ख़्म-ए-दिल-ए-मजरूह की शिद्दत को न देख
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
अपनी क़िस्मत में लिखे हैं जो विरासत की तरह
आओ इक बार वो ज़ख़्म-ए-दिल-ओ-जाँ देख आएँ
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
फिर इत्तिसाल-ए-गर्दन-ओ-ख़ंजर है क्या कहूँ
फिर इख़्तिलात-ए-ज़ख़्म-ओ-नमक-दाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वक़्त के अफ़्सूँ से थमता नाला-ए-मातम नहीं
वक़्त ज़ख़्म-ए-तेग़-ए-फ़ुर्क़त का कोई मरहम नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अगर है चूकना मंज़ूर क़ुराँ की तिलावत से
बरा-ए-ज़ख़्म-ए-ग़फ़लत मरहम-ए-ज़ंगार पैदा कर