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नज़्म
ज़मानी ज़द में ज़न की इक गुमान-ए-लाज़िमानी है
गुमाँ ये है कि बाक़ी है बक़ा हर आन फ़ानी है
जौन एलिया
नज़्म
ये तेरा ज़र्द रुख़ ये ख़ुश्क लब ये वहम ये वहशत
तू अपने सर से ये बादल हटा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये धूप ज़र्द ज़र्द सी ये चाँदनी धुआँ धुआँ
ये तलअतें बुझी बुझी, ये दाग़ दाग़ कहकशाँ
आमिर उस्मानी
नज़्म
मुँह ख़ुश्क दाँत ज़र्द बदन पर जमा है मैल
सब शक्ल क़ैदियों की बनाती है मुफ़्लिसी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
है ख़ुश किसी को आ कर है दर्द-ओ-ग़म ने घेरा
मुँह ज़र्द बाल बिखरे और आँखों में अँधेरा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
गुलाबी हो कहीं ऐसा न हो तुम ज़र्द हो जाओ
मोहब्बत की हरारत खो के बिल्कुल सर्द हो जाओ
रहमान फ़ारिस
नज़्म
सब्ज़ा सब्ज़ा सूख रही है फीकी ज़र्द दोपहर
दीवारों को चाट रहा है तन्हाई का ज़हर