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नज़्म
आज फिर घात में बैठा है समुंदर का सुकूत
ज़र्फ़ बाक़ी न कोई अज़्म-ए-निहाँ बाक़ी है
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
ये अक़ीदा हिंदुओं का है निहायत ही क़दीम
जब कभी मज़हब की हालत होती है ज़ार-ओ-सक़ीम