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रिसाइकिलबिन

साइमा इसमा

रिसाइकिलबिन

साइमा इसमा

MORE BYसाइमा इसमा

    लफ़्ज़ वापस नहीं हुआ करते

    तल्ख़ियों में घुले हुए लहजे

    ज़र्फ़ के हाथ क्या ही माहिर हों

    फूल बन कर नहीं खिला करते

    हज़्फ़ करने का आसरा ले कर

    कोई तहरीर लिख नहीं देना

    भूल जाने की इल्तिजा ले कर

    मत कहो कोई हर्फ़-ए-ना-बीना

    कल जो ख़ाली गया था वार कोई

    कारगर आज हो भी सकता है

    भूली-बिसरी गवाहियों का शजर

    बार-वर आज हो भी सकता है

    नज़र-अंदाज़ होने वाला दर्द

    मो'तबर आज हो भी सकता है

    वक़्त की धूल में उलझ कर भी

    ज़िंदा रहता है साँस लेता है

    नक़्श आवाज़ का हो हर्फ़ का हो

    लाख ग़ाएब करो निगाहों से

    दिल के अंदर कहीं पे रहता है

    नक़्श बन कर नहीं मिटा करते

    स्रोत :
    • पुस्तक : Gul-e-Dupahar (पृष्ठ 34)
    • रचनाकार : Saima Asma
    • प्रकाशन : Idarah Batool, Sayyed Palaza, Firozpur Road (2006)
    • संस्करण : 2006

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