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नज़्म
ये दिल के दाग़ तो दुखते थे यूँ भी पर कम कम
कुछ अब के और है हिज्रान-ए-यार का मौसम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ग़म-ए-हिज्राँ है क्या और सोज़-ए-उल्फ़त किस को कहते हैं
जुनूँ होता है कैसा और वहशत किस को कहते हैं
अख़्तर शीरानी
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
विसाल ओ हिज्राँ की दास्तानों का नौहागर हूँ
जिन्हें ये दुनिया हज़ार-हा बार सुन चुकी है
असअ'द बदायुनी
नज़्म
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्ईल में रह रह के झलक उठती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था