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नज़्म
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अवतार पयम्बर जन्नती है फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बद-क़िस्मत माँ है जो बेटों की सेज पे लेटी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पे मजबूर हैं हम