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नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
हमें ज़ोफ़-ए-बसारत से कहाँ थी ताब-ए-नज़्ज़ारा
सिखाए उस के पर्दे ने हमें आदाब-ए-नज़ारा
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ज़बाँ अपनी ज़बाँ मैं तुम को आख़िर कब सिखा पाया
अज़ाब-ए-सद-शमातत आख़िरश मुझ पर ही नाज़िल हो
जौन एलिया
नज़्म
ग़ैरों से हम ने सीखा अपनों को ग़ैर रखना
नामूस ही हरम का न पास-ए-दैर रखना
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
इमारत किया शिकवा-ए-ख़ुसरवी भी हो तो क्या हासिल
न ज़ोर-ए-हैदरी तुझ में न इस्तिग़ना-ए-सलमानी