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नज़्म
घर-बार अटारी चौपारी क्या ख़ासा नैन-सुख और मलमल
चलवन पर्दे फ़र्श नए क्या लाल पलंग और रंग-महल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
गुलू में तेरी उल्फ़त के तराने सूख जाएँगे
मबादा याद-हा-ए-अहद-ए-माज़ी महव हो जाएँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सब्ज़ा सब्ज़ा सूख रही है फीकी ज़र्द दोपहर
दीवारों को चाट रहा है तन्हाई का ज़हर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ऐ कराची ये बता अब किस से मिलने आऊँगी
किस की बाँहों में सिमट कर चैन ओ सुख मैं पाऊँगी
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
जीवन के अँधियारे पथ पर मिशअल ले कर निकलूँगा
धरती के फैले आँचल में सुर्ख़ सितारे भर दूँगा