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नज़्म
दूर दरवाज़े के बाहर खड़े वो संतरी दोनों
शाम से आग में बस सूखी हुई टहनियों को झोंक रहे हैं
गुलज़ार
नज़्म
ये रुपहली छाँव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तसव्वुर जैसे आशिक़ का ख़याल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
और दुआ माँगी है कि ''ऐ रातों को जुगनू देने वाले!
सूखी हुई मिट्टी को ख़ुशबू देने वाले!
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उँगलियाँ उट्ठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़