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नज़्म
क़हर तो ये है कि काफ़िर को मिलें हूर ओ क़ुसूर
और बेचारे मुसलमाँ को फ़क़त वादा-ए-हूर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अदल है फ़ातिर-ए-हस्ती का अज़ल से दस्तूर
मुस्लिम आईं हुआ काफ़िर तो मिले हूर ओ क़ुसूर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नीस्त पैग़मबर व-लेकिन दर बग़ल दारद किताब
क्या बताऊँ क्या है काफ़िर की निगाह-ए-पर्दा-सोज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
काफ़िर-ए-हिन्दी हूँ मैं देख मिरा ज़ौक़ ओ शौक़
दिल में सलात ओ दुरूद लब पे सलात ओ दुरूद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ता-तराशी ख़्वाजा-ए-अज़-बरहमन काफ़िर तिरी
है वही साज़-ए-कुहन मग़रिब का जम्हूरी निज़ाम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कुछ लचके शोख़ कमर पतली कुछ हाथ चले कुछ तन भड़के
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
इक इक निगह में काफ़िर बिजली की फुर्तियाँ हैं
क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बड़ी पुर-ज़ोर आँधी है बड़ी काफ़िर बलाएँ हैं
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
खोल आँखें देख अपने मुस्लिमों का हाल-ए-ज़ार
उन को तो उन काफ़िर यहूदों ने बनाया है शिकार
शहज़ादी कुलसूम
नज़्म
क़ुफ़्ल-ए-बाब-ए-शौक़ थीं माहौल की ख़ामोशियाँ
दफ़अतन काफ़िर पपीहा बोल उठा अब क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये निस्बत के बहुत से क़ाफ़िए हैं है गिला इस का
मगर तुझ को तो यारा! क़ाफ़ियों की बे-तरह लत है
जौन एलिया
नज़्म
सदा दो अंजुम-ए-अफ़्लाक रक़्स फ़रमाएँ
बुतान-ए-काफ़िर-ओ-सफ़्फ़ाक रक़्स फ़रमाएँ