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नज़्म
सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
नज़ीर बनारसी
नज़्म
कैसा सुहाना कैसा सुंदर प्यारा देस हमारा है
दुख में सुख में हर हालत में भारत दिल का सहारा है
अफ़सर मेरठी
नज़्म
वो रात का सुंदर सन्नाटा चुप साधे हुए जैसे मंज़िल
गंगा की धड़कती छाती पर अरमाँ के दिए झिलमिल झिलमिल
नज़ीर बनारसी
नज़्म
इक रोज़ मगर बरखा-रुत में वो भादों थी या सावन था
दीवार पे बीच समुंदर के ये देखने वालों ने देखा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मेहनत पर है जिस का भरोसा मेहनत का फल पाएगा
अपने ही कस-बल का समुंदर वक़्त का बहता धारा है
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
उस की ज़मीं बे-हुदूद उस का उफ़ुक़ बे-सग़ूर
उस के समुंदर की मौज दजला ओ दनयूब ओ नील