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इब्न-ए-इंशा की नज़में

मिलिए उर्दू अदब के एक

अनोखे शायर से। ये उनकी नज़मों का कलेक्शन है। पढ़िए और महज़ूज़ होते रहिए।

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ये बातें झूटी बातें हैं

ये बातें झूटी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं

इब्न-ए-इंशा

ये कौन आया

'इंशा'-जी ये कौन आया किस देस का बासी है

इब्न-ए-इंशा

फ़र्ज़ करो

फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों

इब्न-ए-इंशा

कल हम ने सपना देखा है

कल हम ने सपना देखा है

इब्न-ए-इंशा

एक लड़का

एक छोटा सा लड़का था मैं जिन दिनों

इब्न-ए-इंशा

पिछले-पहर के सन्नाटे में

पिछले पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

एक बार कहो तुम मेरी हो

हम घूम चुके बस्ती बन में

इब्न-ए-इंशा

मुन्नी तेरे दाँत कहाँ हैं

मुन्नी तेरे दाँत कहाँ हैं

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

ऐ मतवालो नाक़ों वालो देते हो कुछ उस का पता

इब्न-ए-इंशा

दरवाज़ा खुला रखना

दिल दर्द की शिद्दत से ख़ूँ-गश्ता ओ सी-पारा

इब्न-ए-इंशा

मीदू का तोता

तीन हमारी बहनें छोटी

इब्न-ए-इंशा

दिल इक कुटिया दश्त किनारे

दुनिया-भर से दूर ये नगरी

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

चाँद कब से है सर-ए-शाख़-ए-सनोबर अटका

इब्न-ए-इंशा

ये सराए है

ये सराए है यहाँ किस का ठिकाना ढूँडो

इब्न-ए-इंशा

झुलसी सी इक बस्ती में

हाँ देखा कल हम ने उस को देखने का जिसे अरमाँ था

इब्न-ए-इंशा

दिल पीत की आग में जलता है

दिल पीत की आग में जलता है हाँ जलता रहे उसे जलने दो

इब्न-ए-इंशा

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

तुझ से जो मैं ने प्यार किया है तेरे लिए? नहीं अपने लिए

इब्न-ए-इंशा

लब पर नाम किसी का भी हो

लब पर नाम किसी का भी हो, दिल में तेरा नक़्शा है

इब्न-ए-इंशा

फिर शाम हुई

फैलता फैलता शाम-ए-ग़म का धुआँ

इब्न-ए-इंशा

ये सराए है

ये सराए है यहाँ किस का ठिकाना ढूँडो

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

सब माया है, सब ढलती फिरती छाया है

इब्न-ए-इंशा

चाँद के तमन्नाई

शहर-ए-दिल की गलियों में

इब्न-ए-इंशा

घूम रहा है पीत का प्यासा

देख तो गोरी किसे पुकारे

इब्न-ए-इंशा

बिल्लू का बस्ता

छोटी सी बिल्लू

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना

इब्न-ए-इंशा

लोग पूछेंगे

लोग पूछेंगे क्यूँ उदास हो तुम

इब्न-ए-इंशा

क्या धोका देने आओगी

हम बंजारे दिल वाले हैं

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया

इब्न-ए-इंशा

कुछ दे इसे रुख़्सत कर

कुछ दे इसे रुख़्सत कर क्यूँ आँख झुका ली है

इब्न-ए-इंशा

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