अक़्ल-मंद राजा
ये कहानी है जंगल के राजा शेर की। शेर और राजाओं की तरह नहीं था। ये राजा था बड़ा चालाक, बड़ा शातिर। हर काम सोच समझ कर करता, हर फ़ैसला संभल कर लेता। यही वजह थी कि वो बरसों से हुकूमत कर रहा था। कभी-कभार कहीं से अगर बग़ावत की हल्की सी भी चिंगारी उठती, उस पर फ़ौरन पानी डाल देता। मंत्री-संत्री तक सभी राजा की अक़्ल-मंदी के क़ाइल थे।
एक दिन राजा को अचानक ख़्याल आया कि उसकी काबीना में एक भी चिड़िया नहीं है। फिर उसने सोचा, ‘‘क्यों ना अपनी काबीना में इस बार चिड़ियों को भी शामिल कर लिया जाए।’’ दूसरे राजाओं की तरह ये राजा अपना मश्वरा या अपना ख़्याल किसी पर थोपता नहीं था। क्योंकि उसे थोपने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी। उसने बड़ी सादगी से अपने दिल की बात एक वज़ीर से कही। अब अगर राजा की यही ख़्वाहिश थी तो भला कौन मना करता। राजा ने जैसे ही काबीना के सामने अपनी तज्वीज़ रखी सारे वज़ीरों ने बग़ैर सोचे-समझे' हाँ में सर हिला दिए। लेकिन महामंत्री गीदड़, जिसकी चिड़ियाओं से कभी नहीं बनती थी, ख़ुश नहीं था मगर ‘ना’ कहने की उसमें हिम्मत नहीं थी। वो अपनी जगह से उठा और बड़े अदब से राजा से मुख़ातब हुआ ‘‘जान की अमान पाऊँ तो कुछ कहूँ?’’ राजा ने अपने शाही अंदाज़ में मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘इजाज़त है!’’ महामंत्री गीदड़ बोला, ‘‘महाराज की सोच कभी ग़लत हुई है क्या?’’ महाराज ने कुछ सोच कर ही चिड़ियाओं को अपनी काबीना में शामिल करने का फ़ैसला लिया होगा। बस एक मस्अला है महाराज! ‘‘शेर ने गीदड़ की बात पूरी ही नहीं होने दी और बड़े प्यार से बोला, ‘‘कैसा मस्अला?’’ महाराज की इस अदा पर पूरी काबीना जान छिड़कती थी। वो कभी ग़ुस्सा नहीं होते थे। फिर भी गीदड़ सहम गया और काँपते हुए अपनी बात पूरी की, ''चिड़ियों की एक बहुत बड़ी जमात है, उस में से कौन उनका लीडर बनेगा? और कैसे?’’ राजा मुस्कुराया, बारी-बारी से सभी को देखा और बोला, ‘‘एक आम इज्लास में, मैं ख़ुद चिड़ियों के लीडर का इंतिख़ाब करूँगा। मुनादी करवा दी जाए।’’
मुनादी हो गई। चिड़ियों के दरमियान जोश का माहौल था। हर तरफ़ जश्न मनाया जाने लगा। गीत संगीत के प्रोग्राम का एहतिमाम किया गया। राजा की जय-जयकार हो रही थी, गोया राजा ने उन्हें अपनी काबीना में शामिल नहीं किया हो बल्कि पूरी हुकूमत ही देने का फ़ैसला कर लिया हो। ख़ैर जो भी हो उनके लिए तो बड़ी बात थी। पहली बार उनकी तरफ़ से किसी को राजा के सामने उनकी बात रखने का मौक़ा मिलेगा और उनके लिए यही काफ़ी था। अब उनके सामने एक ही मस्अला था कि ‘‘कौन होगा उनका लीडर?’’ ये ख़्याल आते ही रंग में भंग पड़ गया। सभी सर जोड़ कर बैठ गए। तय हुआ कि चिड़ियों की एक मीटिंग बुलाई जाये। आनन फ़ानन मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग में सभी शामिल हुए यहाँ तक कि उनकी हिमायत में कीड़े-मकोड़े भी आ गए, मगर मीटिंग से एक ग़ायब था... और वो था भटकू कव्वा वो कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। उस की ग़ैर-हाज़िरी को लेकर सभी बातें करने लगे।
‘‘जब मुनादी हो रही थी, उस वक़्त भटकू ही सबसे आगे आगे था।’’
‘‘कहाँ चला गया?’’
‘‘अपने रिश्तेदार के यहाँ तो नहीं चला गया?’’
‘‘इस हालत में कोई ऐसा कैसे कर सकता है?’’
‘‘मगर वो है कहाँ’’
’’उसे तलाश किया जाए’’
‘‘उसे राज महल की तरफ़ जाते देखा गया है’’
’’मतलब''
’’आप ख़ुद समझ लीजिए।’’
’’ये कैसे हो सकता है?’’
’’उधर कुछ दिनों से भटकू को कई बार राज महल की तरफ़ जाते देखा गया है।’’
’’ हो सकता है, वो इधर किसी और काम से गया हो?’’
मीटिंग में इसी तरह की बातें होती रहीं लेकिन ये तय नहीं हो पाया कि उनका लीडर कौन होगा। अब सबकी नज़र थी राजा के दरबार में होने वाले आम इज्लास पर।
आम इज्लास में सभी ने अपने अपने कमाल दिखाए। बुलबुल ने मस्हूर-कुन नग़्मा सुनाया तो मोर ने अपने दिलफ़रेब रक़्स से सभी का दिल जीत लिया। मगर बात बन नहीं रही थी। नाचने या गाने से काबीना का काम नहीं चल सकता था। ख़बर-रसानी के लिए तो कबूतर ठीक था... मगर बहैसियत वज़ीर? नहीं, नहीं... राजा को कुछ ठीक नहीं लगा। ठीक भी कैसे लगता? आँखों में तो कोई और बसा था। शाम होने वाली थी। नतीजे का ऐ’लान भी करना था। राजा उठा और प्यार दहाड़ कर गला साफ़ किया, पंजों को हिला हिला शुर्का को अपनी तरफ़ मुख़ातब किया, फिर मुस्कुराते हुए एक तरफ़ देखा और किसी को स्टेज पर आने का इशारा किया। भटकू कव्वे को स्टेज पर लाया गया। ये मंज़र देखकर पूरा मजमा हैरत में पड़ गया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि भटकू को वज़ीर बनाया जाएगा।
वैसे भटकू ने यहाँ तक पहुंचने में बड़ी मेहनत की थी। इतने पापड़ बेले थे कि ख़ुद लाग़र हो गया था। लेकिन क्या फ़र्क़ पड़ता है? वज़ीर तो बन ही गया...
जल्सा ख़त्म हुआ। एक-बार फिर से राजा की जय-जयकार से पूरा जंगल गूंज उठा। लेकिन बहुत सारे के दिल में एक सवाल था..., 'भटकू किस का लीडर बना? राजा का या चिड़ियों का?'
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