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क्रिस्टल हाउस

नीलोफ़र इक़बाल

क्रिस्टल हाउस

नीलोफ़र इक़बाल

MORE BYनीलोफ़र इक़बाल

    उस जोड़े में कोई ख़ास बात थी, जो उन्हें पहली नज़र देखने में दूसरों से कुछ हट कर और मुनफ़रिद बनाती थी... वो इन्सानों से ज़्यादा परिंदों का जोड़ा नज़र आते थे। दोनों की जसामत एक जैसी थी। गोरे रंग, इकहरे बदन, कुछ-कुछ आगे को झुके हुए, चेहरे नोकीले और नाकें परिंदों की चोंचों की तरह सामने से झुकी हुईं। जैसे वो फ़र्स्ट कज़न हों। हो भी सकते थे और नहीं भी। मुम्किन है कि हमा वक़्त साथ रहने और वक़्त के साथ साथ वो एक दूसरे से मुशाबहत इख़्तियार कर गए हों। ये जोड़ा इसलिए भी सबकी नज़रों में आता था कि रोज़ाना ठीक शाम के पाँच बजे वो इकट्ठे बिला नाग़ा वाक पर निकलते थे। औरत उमूमन सफ़ेद ट्राउज़र और फूलदार शर्ट में होती।आदमी ब्लैक ट्रैक सूट और सफ़ेद जोगर्ज़ में होता। दोनों के हाथ में छड़ी होती। वो छड़ी को टेकते नहीं थे, बस चलते वक़्त आगे पीछे झुलाते। ये बात समझ में नहीं आती थी कि वो दोनों अपने साथ छड़ी क्यों रखते थे। मुम्किन है माज़ी में कभी उन पर किसी कुत्ते ने हमला कर दिया हो या जंगली सुअरों का जत्था कभी उनका रस्ता काट गया हो और वो हिफ़्ज़ मा तक़द्दुम के तौर पर छड़ी साथ रखते हों। बहरहाल ये उनका स्टाइल था। सिलवर ग्रे बाल और छड़ी उन पर ख़ूब जचते थे।

    इस पूरे इलाक़े में उनका घर भी दूसरे तमाम घरों की निस्बत बहुत जाज़िब-ए-नज़र और बाक़ी घरों की निस्बत मुमताज़ नज़र आता था। ये घर इटालियन तर्ज़-ए-तामीरपर बनाया गया था। बाहर से सैंड स्टोन (Sand Stone) से मुज़य्यन था और खिड़कियाँ कुछ ऐसे बनी थीं कि अंदर सिल पर रखी ख़ूबसूरत सजावटी अशिया बाहर दिखाई देती थीं। इस घर की छत पर सब्ज़ खपरैल थी। एक जानिब घर की पूरी साईड आईवी (Ivy) से ढकी थी जिसे नफ़ासत से खिड़कियों के चारों अतराफ़ से तराश दिया गया। लॉन के गिर्द दीवार भी आईवी से ढकी थी और इतनी नीची थी कि लॉन बाहर से पूरी तरह दिखाई देता था और वो इस इलाक़े का दिलकश तरीन लॉन था और मकीनों के आला ज़ौक़ की ग़म्माज़ी करता था। इस्लामाबाद का पुराना सेक्टर होने की वजह से ये घर पुराने और घने फूलदार दरख़्तों से घिरा हुआ था। सब्ज़ मख़मल की सी नफ़ीस घास कारपेट की सूरत लॉन में बिछी थी। मौसमी फूलों के इलावा ये लॉन नादिर क़िस्म के पौदों और पेड़ों से भी मुज़य्यन था। फिर एक ख़ास चीज़ वो छोटी सी नदी (Stream) थी जो लॉन के एक तरफ़ बनी हुई राकरी (Rockery) तक जाती थी। इस स्ट्रीम के ऊपर पानी लकड़ी से बना ख़म खाया हुआ छोटा सा पुल था। इस पुल के पहलू में ही सुर्ख़ और सफ़ेद धारियों वाली ख़ूबसूरत छतरी के नीचे चार कुर्सीयों का सफ़ेद गार्डन सेट रखा था। उस पर आम तौर पर तो कोई चाय पीता नज़र आता था लेकिन कभी-कभार जब उनके बच्चों में से कोई आया होता तो लॉन में ख़ूब चहल पहल हो जाती और अक्सर शाम को ये लोग उसी मेज़ पर चाय पीते नज़र आते।

    अक्सर जब उनकी दुबई वाली बेटी आई होती, लॉन में रंगों के झमाके से होते रहते। उकी सहेलियाँ मिलने आतीं और वो लॉन में टहलती रहतीं या चाय पीतीं। वो दूर से बिल्कुल अंग्रेज़ नज़र आने वाली ख़ूबसूरत लड़की थी जो ज़्यादातर जीन्ज़ और टाप में नज़र आती। उसके सुनहरे रंगे हुए बाल लहराते रहते। फ्लपिनो मेड उसके दो गोरे गोरे गोल मटोल बच्चों के साथ लॉन में बाल खेलती या उन्हें एक तरफ़ नसब झूलों और सी.सा (See-Saw) पर ले जाती। अक्सर वो बच्चे लकड़ी के पुल पर चढ़ते, उतरते रहते या छोटे से सफ़ेद Pomeranian कुत्ते से खेलते रहते।

    कभी कभी इस लॉन में बहुत बड़ी गार्डन पार्टी होती। पौदों और पेड़ों के अंदर से नन्ही नन्ही बत्तीयों की रोशनी झिलमिलाती। राकरी में नस्ब आबशार चालू कर दी जाती। जिसके नीचे संगमरमर का काईज़दा Nude मुजस्समा ख़ूब मज़े ले-ले कर नहाता। कैटरिंग बाहर से करवाई जाती। अक्सर बार्बेक्यू होता। पास-पड़ोस के घरों से किसी को मदऊ किया जाता। अलबत्ता बार्बेक्यू से उठने वाला खुशबूदार धुआँ उन घरों में दर आता और क्राकरी और कांच की खनक और मेहमानों के मुहज़्ज़ब क़हक़हे खिड़कियों के रास्ते उन घरों के मकीनों तक पहुंच जाते। वो अपनी खिड़कियों से जदीद तरीन तराश-ख़राश के मलबूसात और ख़ूबसूरत रंगों के झमाके देख पाते। वो नहीं जानते थे कि इन पार्टीयों में मदऊ होने वाले लोग कौन होते थे और कहाँ से आते थे। सड़क बाहर तक गाड़ियों से भर जाती थी। मेहमान आधी रात के क़रीब रुख़्सत होते थे।

    गो इस घर में इन हमसाइयों में से कोई कभी भी मदऊ हुआ था। लेकिन उनके बारे में एक एक बात मअ ज़रूरी-ओ-ग़ैर ज़रूरी जुज़इयात हर एक को मालूम थी और इस जानकारी का ज़रिया डोमेस्टिक स्टाफ़ (Domestic Staff) था। मासिया थीं जो पोलन ज़दा मक्खियों की तरह घर-घर बीज फेंकती थीं। फिर ड्राईवर और स्कियोरटी गार्ड्स थे जो रात गए मिल बैठते और हर क़ाबिल-ए-ज़िक्र या नाक़ाबिल-ए-ज़िक्र ख़बर का तबादला कर लेते थे। फिर इन कोठियों की इस लेन में एक चाक़-ओ-चौबंद ब्वॉय कट हेयर स्टाइल वाली मिसेज़ शमसी थीं जो किसी एन जी से मुंसलिक थीं। सिर्फ़ वही थी जो इस कोठी की मालकिन ख़ातून से तआरुफ़ रखती थीं। चूँकि वो ख़ातून ख़ुद भी अपने वक़्त में बावजूद ज़्यादा वक़्त दूसरे ममालिक में रहने के ख़वातीन की तन्ज़ीमों की फ़आल रुक्न रह चुकी थीं लिहाज़ा मिसेज़ शमसी किसी किसी तरह उनसे मुंसलिक हो चुकी थीं और उनकी डिनर पार्टीयों के मदअवीन की लिस्ट में उनका नाम भी था। इन्ही मिसेज़ शमसी ने इसी लेन के रहने वाले दूसरे घरों से भी अच्छे सोशल मरासिम रखे हुए थे। इसलिए उनका आना जाना बाक़ी कोठियों के फंक्शनों में भी था। जैसे कोई वन डिश पार्टी, मीलाद या ख़त्म क़ुरआन, जब मीलाद या ख़त्म क़ुरआन का इख़्तताम हो जाता और औरतों के खाने पीने का दौर शुरू हो जाता तो अक्सर औरतें आहिस्ता-आहिस्ता खिसकतीं मिसेज़ शमसी के क़रीब पहुंच जातीं जो कि अच्छी Conversationalist थीं। बात कई मुतफ़र्रिक़ मौज़ूआत से होते हुए लामुहाला इस कोठी के मकीनों तक जा पहुँचती और यूं पास पड़ोस वालियाँ कुछ कुछ कुरेद लेने में कामयाब हो जातीं।

    मिसेज़ शमसी से जो मालूमात हासिल हुईं वो कुछ यूं थीं। साहिब-ए-ख़ाना फॉरेन सर्विस से रिटायर्ड थे। सर्विस के दौरान दुनिया के बेशतर ममालिक में पोस्टिंग के सिलसिले में रह चुके थे। लेकिन रिटायरमेंट से क़ब्ल मुस्तक़िल रिहायश के लिए उन्होंने इस्लामाबाद में ये घर तामीर करवाया था। दो बेटे और एक बेटी थी। इन सबको अमरीका और इंगलैंड की यूनीवर्सिटीयों में तालीम दिलवाई थी। अब दो बेटे अमरीका में सैटल थे। बेटी शादी कर के दुबई जा चुकी थी। बेटे साल में एक-बार अक्सर क्रिस्मस के महीनों में आते थे। बेटी अलबत्ता अक्सर आजाती रहती थी। गर्मियों में ये लोग अपने बच्चों के पास अमरीका चले जाते थे। लिहाज़ा तन्हाई उनके लिए कोई ख़ास बड़ा मसला थी। अपनी दुनिया और ज़िंदगी में मगन थे। जब ये लोग अपने बच्चों के पास रहने जाते थे, आस-पास वालों को ख़बर हो जाती थी। पोर्च में खड़ी गाड़ियों पर तिरपाल डाल दी जाती, लॉन में ख़ज़ां रसीदा पत्ते ढेरियों की सूरत जमा होने लगते और कभी ज़ोर की हवा चलती तो लंबी ड्राईव वे पर ज़र्द ज़र्द पत्ते आपस में रेस लगाते। दबीज़ पर्दों से ढकी खिड़कियों के पीछे अंधेरा होता। सिर्फ़ सिक्यूरिटी गार्ड के गेट के साथ कोने में बने छोटे से कमरे में बत्ती रोशन रहती। मौसम-ए-सर्मा से पहले चहल पहल फिर वापस आजाती। पोर्च में चमचम करती धुली धुलाई गाड़ियां नज़र आने लगतीं। ख़ाकरूब चाबुकदस्ती से ड्राईव वे साफ़ करते। लंबी सफ़ेद पाइप की मदद से घर के चारों अतराफ़ को धोया जाता। माली हमा-तन लॉन की आराइश में मसरूफ़ दिखाई देने लगता। इस तरह सबको पता चल जाता कि साहिब-ए-ख़ाना आने वाले हैं। फिर दो-चार दिन के बाद खिड़कियों के पर्दों के पीछे से झलकती रोशनी बता देती कि वो वापस आचुके हैं।

    जिस चीज़ ने इस लेन के दीगर मकीनों का तजस्सुस इस कोठी के बारे में बढ़ा रखा था, वो इस कोठी की अंदरूनी आराइश के बारे में दास्तानें थीं। इन दास्तानों की रावी मिसेज़ शमसी के सिवा कौन हो सकती थी। उनके कहने के मुताबिक़ ये घर क्या था, अजाइब ख़ाना था। दुनिया-भर के नवादिरात ख़ासकर क्रिस्टल इस घर में जमा था। क्रिस्टल की ऐसी ऐसी ख़ूबसूरत मसनूआत इस घर में जमा थीं जो बस देखने से ताल्लुक़ रखती थीं। फॉरेन सर्विस में होने की वजह से उन लोगों को दुनिया के मुख़्तलिफ़ ममालिक में रहने और घूमने फिरने का मौक़ा मिला था। दोनों मियां-बीवी में ख़ूबसूरत अशिया ख़ासकर क्रिस्टल जमा करने का ज़ौक़ ख़ब्त की हद तक मौजूद था। फ़्रांस, इटली, बेल्जियम, जापान ग़रज़ कि जहां-जहां पोस्टिंग रही या यूंही सैर के लिए गए वहां से ख़ूबसूरत तरीन और बेशक़ीमत सजावटी अशिया लाए और अपने घर में सजाईं। कई शोकेस, मेज़ें, पेडस्टल, घर के कोने हत्ता कि सीढ़ियां भी इन चीज़ों से मुज़य्यन थीं। दुनिया भर से जमा की गई पेंटिंग्ज़ इसके इलावा थीं। शौक़ सिर्फ़ चीज़ें जमा करने और सजा देने की हद तक था बल्कि उनकी सफ़ाई और हिफ़ाज़त भी बहुत लगन और तवज्जो से की जाती थी। एक नौकर दिन रात सिर्फ़ इसी काम के लिए मामूर था। वो हमा वक़्त डस्टर और स्प्रे वग़ैरा से लैस सफ़ाई सुथराई या पालिश में लगा रहता। जिसका नतीजा ये था कि तमाम अशिया हर वक़्त जगमग-जगमग करती रहतीं।

    मिसेज़ शमसी ने ये भी बताया था कि जिस दिन घर में डिनर पार्टी होती है, अक्सर मेहमान घर का एक तरह से गाईडेड टूर भी ले लेते हैं। बल्कि जो पहले भी देख चुके होते वो भी शौक़िया साथ हो लेते कि इन अशिया में हमा वक़्त इज़ाफ़ा होता रहता था। कुछ चीज़ें ऐसी थीं कि देखने वाले का सांस ऊपर नीचे रह जाता था। ख़ासकर कोनों में खड़े क़द-ए-आदम जापानी गुलदान जिन पर बने ख़ुश-रंग, नक़्श-ओ-निगार और चरिंद परिंद और मुनाज़िर की दिलकश तसावीर इन्सान को हैरत में मुब्तला कर देती हैं। फिर लकड़ी की मसनूआत, आबनूसी मुजस्समे, बीमो की बनी हुई अशिया हर साइज़ की जापानी गुड़ियाँ, मुख़्तलिफ़ तर्ज़ के फाउंटेन्ज़ (Fountains) ग़रज़ कि घर क्या था हैरतकदा था। मिलने-जुलने वाले उसे क्रिस्टल हाउस के नाम से पुकारते थे।

    मिसेज़ शमसी की बातें सुनकर अक्सर सुनने वालों का दिल चाहता कि वो भी इस हैरतकदा को अंदर से देख पाते। लेकिन चूँकि उन लोगों को तो इस घर में होने वाली पार्टीयों में कभी एक-बार भी मदऊ नहीं किया गया था, लिहाज़ा उनकी इज़्ज़त-ए-नफ़स इजाज़त देती थी कि बिन बुलाए और बिला तआरुफ़ महज़ घर देखने पहुंच जाते। इसलिए मिसेज़ शमसी से सुनी हुई बातों से ही तजस्सुस की तशफ्फी कर लेते... लेकिन एक दिन ऐसा होता है जब बिला मदऊ किए किसी के घर भी जाया जा सकता है और क्रिस्टल हाउस में भी वो दिन आगया।

    मौसम-ए-बहार का आग़ाज़ था। कुछ दिन से इस कोठी का माली बड़ी मुस्तइदी से अंदर बाहर मौसम-ए-बहार के फूलों की नन्ही नन्ही पनेरियां ताज़ा तैयार की हुई क्यारियों में बोता नज़र आरहा था। अचानक सुबह सुबह इस लेन की तमाम कोठियों में ख़बर फैल गई कि क्रिस्टल हाउस के साहिब-ए-ख़ाना का अचानक रात को दिल का दौरा पड़ने से इंतिक़ाल हो गया है... उनके बेटों की अमरीका से आमद का इंतिज़ार किया जाएगा। तदफ़ीन दो रोज़ बाद इतवार को होगी।

    उस दिन क्रिस्टल हाउस के बाहर लेन से लेकर डबल रोड तक अनगिनत गाड़ियां थीं। चंद रिश्तादारों ने फ़ौरी तौर पर इंतिज़ाम सँभाल लिया था। इसलिए शामियाना, कुर्सियाँ, चादरें-व-दीगर इंतिज़ाम कर लिया गया। सह पहर तक उनकी बेटी भी दुबई से आगई थी। आज इस घर में वहां की पार्टीयों में मदऊ होने वाले लोगों के इलावा आस-पास की कोठियों में रहने वाले हमसाए भी आने वालों में शामिल थे। घर की मालिक सादा से सलेटी लिबास में स्याह चादर सर के ऊपर ओढ़े लाउन्ज में एक कुर्सी पर सर नेहोडाये ख़ामोश बैठी थीं। कुछ ऐसे जैसे बीमार परिंदा गर्दन गिरा देता है, मिलने वालियाँ और रिश्तेदार ख़वातीन आतीं और क़रीब आकर गले लगतीं। आह-ओ-ज़ारी और रोने की कुछ आवाज़ें बुलंद होतीं। फिर आने वाली कोई कोई जगह देखकर बैठ जाती और ख़ामोशी छा जाती। ये सवाल हर आने वाले के ज़ह्न में था कि ये ख़ातून इतने बड़े घर में अपने शौहर के हमराह रहती थी। कोई तीसरा था... अब ये क्या करेगी!

    कुछ पहली बार आने वालों की नज़रें घर में इधर उधर घूम रही थीं... लेकिन घर अपनी आराइश की पहली वाली सूरत में था ही नहीं। मुजस्समों और बड़ी बड़ी सजावटी अशिया को एक जगह इकट्ठा कर के उन पर सफ़ेद चादरें डाल दी गई थीं। फ़र्नीचर घसीट कर दीवारों के साथ लगा दिया गया था ताकि आने वालों के लिए जगह बनाई जा सके। लाउन्ज के वस्त में नसब फ़ाउंटेन भी बंद था। इस में कुहनी के बल नीम दराज़ Nude मरमेड (Mermaid) पर किसी ने सफ़ेद चादर डाल रखी थी। अलबत्ता शो केसों में सजी क्रिस्टल की अशिया बदस्तूर जगमगा रही थीं। लेकिन ये मौक़ा था कि नज़रों से भी तहय्युर और सताइश का इज़हार किया जा सकता। इसलिए जिन्हें तजस्सुस था वो ख़ामोशी से और चुपके चुपके चोर नज़रों से जायज़ा ले रही थीं। पूरे माहौल पर इस गर्दन गिराए परिंदा नुमा औरत की दिलगिरफ़तगी का साया पड़ा हुआ था। जैसे हर शय उसके लिए माअनवियत खो बैठी हो। कभी कभी वो सर उठा कर अचानक सामने ख़ला में देखती जैसे किसी नज़र आने वाली शय से मासूम हैरत के साथ पूछ रही हो... मेरे साथ ये कैसे हो सकता है?

    तक़रीबन एक हफ़्ता के बाद इस लेन की कोठियों में सबको मालूम हो चुका था कि क्रिस्टल हाउस बिकने वाला है। उनके बेटे पाकिस्तान में दो हफ़्ते से ज़्यादा रह सकते थे। उन्हें फ़ौरी तौर पर अपनी अपनी जॉब पर वापस पहुंचना था लिहाज़ा तमाम फ़ैसले बिजली की तेज़ी से करने पड़े थे। क्रिस्टल हाउस की मालकिन को अपने बेटे के हमराह अमरीका जाना था। जहां उन्हें अपने बड़े बेटे के साथ रिहायश इख़्तियार करनी थी जो शादीशुदा था। छोटा बेटा हनूज़ किसी यूनीवर्सिटी में पढ़ रहा था और कैम्पस में रिहायश पज़ीर था। हर सुनने वाले के ज़ह्न में एक ही सवाल उठ रहा था कि या ख़ुदा, इतने साज़ो सामान का क्या होगा। मिसेज़ शमसी रोज़ाना इस घर में आना जाना कर रही थीं। उन्होंने बताया कि ख़ातून तो बहुत कुछ अपने साथ ले जाना चाहती थीं। कार्टन बना कर Ship करना चाहती थीं। लेकिन बेटे ने सख़्ती से मना कर दिया कि वहां अकोमोडेशन कम होती है। उसकी अमरीकन बीवी इतना Clutter पसंद नहीं करेगी। यही क्या कम था कि वो अच्छी फ़ित्रत की मालिक थी और अपने शौहर की माँ को तन्हा छोड़ने पर उसका दिल नहीं माना था और वो साथ रखने पर बखु़शी तैयार हो गई थी... फिर भी कुछ यादगार छोटी छोटी चीज़ें उन्होंने बक्सों में घुसाई थीं और एक-आध छोटा सा कार्टन भी बना लिया था और बस...

    औरतें कुरेद कुरेद कर घर की मालकिन के दिल के अंदर का हाल पूछती थीं या दूसरे अलफ़ाज़ में ये जानना चाहती थीं कि आख़िर इतने बेपनाह चाव और लगन से दुनिया भर से इकट्ठी की हुई अशिया से जुदाई को आख़िर वो ख़ातून किस तरह ले रही हैं। वो अपने तजस्सुस की तशफ्फी चाहती थीं। बे रहमाना तशफ्फी जो कि मिसेज़ शमसी ने निहायत तसल्लीबख़श अंदाज़ में कर दी। ...हाँ वो अपनी किसी चीज़ से जुदा होना चाहती थी। हत्ता कि उसका कोई ऐश ट्रे भी ऐसा था कि जिससे उसे लगाव था और जिसे वो बखु़शी छोड़ देती। वो तो हर चीज़ साथ ले जाना चाहती थी। इस पर ख़ासी बहस हुई थी। उसके बच्चों को उसे बहुत समझाना बुझाना पड़ा था... लोग तो एक मौत मरते हैं लेकिन वो औरत तो कई कई मौतें मर रही है... हर शय से तो उसे प्यार था... हाय हाय!

    क्रिस्टल हाउस की तमाम नादिर और बेशक़ीमत अशिया को नीचे लाउन्ज और ड्राइंगरूम में रख दिया गया था। उन पर प्राइस Tags लग गए थे। ख़ुद मिसेज़ शमसी ने कुछ पेंटिंग्ज़, कैंडल स्टैंड और क्रिस्टल के गुलदान ख़रीदे जो तक़रीबन एक तिहाई क़ीमत पर बिके थे। फिर उन्होंने फ़ोन कर के दूसरी कोठियों की ख़वातीन को भी उकसाया कि वो अगर कुछ लेना चाहती हैं तो आधी या एक तिहाई क़ीमत पर बहुत कुछ मिल रहा है। अलबत्ता चंद नादिर और क़ीमती अशिया उनकी बेटी ने छांट कर अपने साथ दुबई ले जाने के लिए अलग कर ली थीं। उन्हें बड़े बड़े कार्टनों में पैक किया जा रहा था। मिसेज़ शमसी के कहने पर दूसरी ख़वातीन ने भी हिम्मत की। कोठी के लाउन्ज में एक सुर्ख़ चेहरे वाला सेहतमंद ठेकेदार नुमा शख़्स उन अशिया को दिखाने और बेचने का काम कर रहा था। चीज़ों में ज़्यादा क़ीमती और ग़ैर-मामूली अशिया तो उनकी पार्टीयों में मदऊ होने वाले मुतमव्विल दोस्तों ने ही ख़रीद ली थीं। आस-पास की ख़वातीन भी अब गुलदान, ऐश ट्रे और लैम्प वग़ैरा जैसी चीज़ें उठाए कोठी के गेट से निकलती नज़र आती थीं। फिर बेशुमार ब्रैंडेड इम्पोर्टेड क्राकरी थी जिसका किसी बड़ी क्राकरी शाप वाले ने इकट्ठा सौदा कर लिया था। तमाम फ़र्नीचर एक इस्तिमाल शूदा फ़र्नीचर में डील करने वाले शोरूम के मालिक ने उठवा लिया था। घर वाले चूँकि रात की किसी फ़्लाईट से गए थे। लिहाज़ा किसी ने उन्हें जाते हुए नहीं देखा। चंद रोज़ बाद कोठी पर पेंट पालिश करने वाले काम करते दिखाई दे रहे थे जिनकी निगरानी सुर्ख़ चेहरे वाला ठेकेदार क़िस्म का आदमी कर रहा था। फिर कुछ ही दिन गुज़रे थे कि क्रिस्टल हाउस के सामने For Sale की तख़्ती लटक रही थी...। ये थी 'क्रिस्टल हाउस' की कहानी।

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