हैरत! हैरत!
ज़िक्र चोरियों का था। कराची में क़ानून के तहफ़्फ़ुज़ के इदारे भी चौकस हैं। पुलिस चौकियां भी चौक चौक मौजूद हैं। चौकीदार भी घर-घर तअयनात हैं, फिर भी चोरी चकारी, डाके खुले आम हो रहे हैं। हैरत!! मगर लोग कहते हैं कि अपने मुल्क की किसी बात पर हैरान होना ही नहीं चाहिए कि ये मुल़्क तो सरासर हैरत है। दोस्तों का इसरार है कि इस का बन जाना मोजिज़ा था। दुश्मन कहता है कि इसका क़ायम रहना करिश्मा है। वो तो ये तक कहता है कि अगर ज़मीन गाय के दो सींगों पर ठहरी हुई है तो पाकिस्तान यक़ीनन दो सींगों के बीच खला पर क़ायम है।
अमरीका में लोगों को बहुत शौक़ है कि लोगों को हैरत में डाला जाये यानी उन्हें सरप्राइज़ दिया जाये मगर यहां ये काम ख़ासा मुश्किल है। उमूमन लोगों को बर्थ डे पार्टीयों या शादी की बरसियों (Anniversaries) पर हैरान करने की कोशिश की जाती है। इसके लिए बड़े बड़े पापड़ बेले जाते हैं। घर के बजाय क्लब में, साहिल समुंदर पर हज़ार बहानों से बुलाया जाता है। फिर भी जिसकी पार्टी है वो समझ ही जाता है। उसे ख़ूब मालूम होता है कि केक कौन ले जा रहा है। तोहफ़े किस गाड़ी में हैं और कार्डों पर दस्तख़त कौन करा रहा है। सिर्फ़ अंजान बना रहता है और ऐन मौक़े पर आँखें फाड़ कर कहता है। Got Me मुझे तो शुबहा तक नहीं हुआ। ये है अमरीका, जहां:
आदमी को मयस्सर नहीं हैराँ होना
अब वतन-ए-अज़ीज़ की तरफ़ आईए। सुबह से शाम तक हज़ार सरप्राइज़ मिलते हैं। सुबह उठकर ग़ुस्लख़ाने में जाईए तो हौंकता नलका पुकारता है, सरप्राइज़! यानी पानी नशता!
बिजली का बटन दबाईए तो बटन चट से कहता है, बाबा बिजली नहीं।
बाहर निकले तो क़दम क़दम पर हैरतें! रात को सोए तो घर से बाहर सूखा था। सुबह तक पड़ोस के गटर (Gutter) ने दरिया बहा दिये। घर से क़दम रखना दुशवार है। खल खल करते गटर से आवाज़ आरही है, सरप्राइज़।
हमारे एक भाई बेचारे कोई चीज़ ख़रीदने दुकान में गए। वहां एक तख़्ते पर इत्तिफ़ाक़न पांव पड़ा। तख़्ता चरचराया, गोया पुकारा, सरप्राइज़ दूसरे लम्हे भाई नीचे तहख़ाने में पड़े थे और उनकी टांग की हड्डी टूट चुकी थी।
अक्सर ऐसा होता है कि घर से जिस काम के लिए निकले सारा दिन गंवा कर चले आए और वो काम ही न हुआ। ये हैरतें बड़ी तकलीफ़देह हैं लेकिन इससे पहले जब हमारे यां फ़ोन और गटर नहीं लगे थे। कितने मज़े की हैरतें हुआ करती थीं। खाना खाते बैठे ही हैं कि सामने से चचा का पूरा ख़ानदान चला आरहा है।
बा'ज़ औक़ात यूं भी होता है कि दूसरे शहरों से हज़ार हज़ार मील की मुसाफ़त से लोग रेलों में सफ़र करके तांगों या टैक्सियों से उतरे चले आरहे हैं।
भले आदमी आप कैसे! ख़ैरियत?
क्या तार नहीं मिला? हैरत!
तार को मॉरो गोली...यार तुम आए इससे बड़ी हैरत और ख़ुशी की क्या बात है।
अब तार उसी दिन या दूसरे दिन मिल गया...मिला मिला न मिला न मिला...क्या फ़र्क़ पड़ता है। अज़ीज़ों रिश्तेदारों और गहरे दोस्तों में ख़त और तार की इत्तिला भी महज़ रस्मी थी। घरवाली घर में हमेशा मौजूद रहती थी। सारे नहीं तो आधे बच्चे भी कम-ओ-बेश आस-पास मंडलाते पाए जाते थे। घरवाला सुबह का भूला शाम को लौट आया करता था। कोई भी न हो तो पड़ोसी हर दम ख़िदमत को मौजूद थे...पड़ोस के मेहमान हमारे मेहमान! जब तक वो ना आएं, पड़ोस में दनदनाईए। ख़ूब ख़ातिरें करवाईए। हैरत! आपके लिए होगी उनके लिए नहीं।
आपस की बात है। इस में हैरत कैसी हमारे मेहमान आते तो क्या आप उनको न पूछते? अब बोलिए ।
क्या बोलें। हम तो ये जानते हैं कि अमरीका में जिस इलाक़े में हम तीन साल रह कर आए, वहां पड़ोसियों से सर-ए-राह की हाय हाय के सिवा कोई रस्म-ओ-राह न थी। नीचे की मंज़िल में जो जोड़ा रहता था उसके एक बच्चा था। एक दिन अचानक मुलाक़ात हुई तो तीन बच्चे साथ थे। मालूम हुआ तीनों उनके अपने हैं हमें हवा तक न मिली। न उन्होंने बताया। न लड्डू भेजे न हमने उनके कामों में मुदाख़िलत मुनासिब जानी।
पहले महलों में रहने वाले पड़ोसियों से अक्सर ये शेअर सुना था:
कुछ वो खिंचे खिंचे रहे, कुछ हम खिंचे खिंचे
इस कशमकश में टूट गया रिश्ता चाह का
मगर अब रिश्ता तन्हा ही नहीं जो टूटे। बस वही 'हाय' का रिश्ता है जो सारे ज़माने की तरह पड़ोसियों से भी है। अपनी कहावत है। अपना दूर पड़ोसी नीड़े।
मगर अमरीका में अपना भी दूर और पड़ोसी भी दूर...यहां तो ख़ुद से भी कभी कभी मुलाक़ात होती है और उस वक़्त भी अक्सर 'हाय' करके रह जाते हैं। भला बताईए... हैरत की बात है कि उर्दू ज़बान में इस तरह की कहावतें हैं:
साँझ भई! सय्यां नहीं आए। रात भी आधी आन ढली
आओ पड़ोसन चौसर खेलें। बैठे से बेगार भली
इस कहावत से न सिर्फ़ पड़ोसियों के हुस्न-ए-सुलूक का पता चलता है बल्कि कई और मजलिसी और तहज़ीबी इशारे भी मिलते हैं बल्कि कहना चाहिए कि सय्यां की साइकी का इशारा भी मौजूद है। इन कहावतों पर फिर कभी बहस की जाएगी। फ़िलहाल तो कहना ये है कि अमरीका में...आओ, बी पड़ोसन लड़ें।
लड़े मेरी जूती।
क़िस्म के मकालमों का भी कोई इमकान नहीं। जब आप घर पर हैं पड़ोसन घर पर नहीं है। जब पड़ोसन घर पर है, आप नहीं हैं, पड़ोसियों के घर पर होने न होने के इल्म के लिए इल्म-ए-नुजूम जानना ज़रूरी नहीं, सिर्फ़ कार की मौजूदगी या खिड़की में मुंतज़िर बिल्ली की क़ियाफ़ा शनासी काफ़ी है।
ऐसे पड़ोसी भी होंगे जो बाईबल के कहने के मुताबिक़ पड़ोसियों से उतनी ही मुहब्बत करते होंगे जितनी अपने आपसे, मगर हमने आँख से नहीं देखे। सिर्फ़ उनकी कारों पर ये लिखा देखा है;
पड़ोसन/पड़ोसी से मुहब्बत ज़रूर करो मगर पकड़ में न आओ।
हैरत!
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