नई इलेक्ट्रा
वो कहती है, वो योरीपिडीज़ की इलेक्ट्रा जैसी है।
फ़र्क़ है तो इतना सा कि पुराने वाली इलेक्ट्रा को उसकी बेवफ़ा माँ और उसके बद-तैनत आ’शिक़ की वज्ह से सब कुछ छोड़ना पड़ा, जब कि उसे या’नी नई इलेक्ट्रा को, जिन लोगों की वज्ह से घर-बदरी पर मजबूर होना पड़ा उनमें ऐसे लोगों के नाम आते हैं जिनका वो बताना नहीं चाहती।
लोग कहते हैं,
वो इलेक्ट्रा नहीं ख़ुद कलाइटमिनस्ट्रा है।
शातिरा, बेवफ़ा, बद किरदार...
घर-बदरी महज़ एक ड्रामा था... और जब वो ये कहती है कि वो लोगों के नाम बताना नहीं चाहती तो दर-अस्ल उसके ज़हन में एक नाम भी नहीं होता... वो तो महज़ ड्रामे का जुमला बोलती है।
लोग ये भी कहते हैं,
पुराने वाली कलाइटमिनस्ट्रा ने अपने शौहर एगमनान को अपने आ’शिक़ से मिलकर क़त्ल कराया था जब कि इस शातिरा ने अपने बद-तैनत शौहर से मिलकर उन सबको तलवार की धार पर रखा हुआ है जो उसकी तरफ़ नज़र उठाने का जुर्म करते हैं।
वो बताती है,
जब नए वाले एगमनान को क़त्ल हुए ज़ियादा अ’र्सा न गुज़रा था तो उसने चाल चली थी वैसी ही चाल जैसी पुरानी वाली इलेक्ट्रा ने चली थी।
बस फ़र्क़ इतना था...
पुरानी वाली इलेक्ट्रा ने ये पैग़ाम भेजा था कि इसके हाँ बच्चा हो चुका है जब कि उसने, या’नी नई इलेक्ट्रा ने, ढोंग रचाया था कि उसके पेट में बच्चा है और बच्चा इस क़दर नीचे खिसक आया है कि वो चलने-फिरने से मा’ज़ूर है।
लोग कहते हैं,
वो इलेक्ट्रा नहीं, कलाइटमिनस्ट्रा है
दग़ाबाज़, फ़रेबी, मक्कार...
यूँ भी हमल किसी किस्म का ढोंग रचाने से भला कब बाज़ रख सकता है। उ’मर रीवाबैला के नावल “रीक़्वियम फ़ार ए वूमैन्ज़ सोल” में रियासती जब्र का शिकार होने वाली सूज़ाना की बे-रब्त याददाश्तों में जिस एलीशिया का ज़िक्र मिलता है वो भी हामिला थी।
वो पागल नहीं थी, मगर ख़ुद को पागल ज़ाहिर करती थी। इसलिए कि उसके साथ जो कुछ हो चुका था, उसके नतीजे में उसे पागल हो जाना चाहिए था।
जब वो अ’जीब-ओ-ग़रीब हरकतें करती थी तो उस पर तशद्दुद करने वाले यक़ीन कर लेते थे कि वो दीवानगी में ऐसा कर रही है। जब कि सूज़ाना अपनी बे-रब्त याददाश्तों में लिखती है कि वो इस तरह कोई अहम पैग़ाम उन तक मुंतक़िल किया करती थी।
उसने बच्चे का ढोंग नहीं रचाया था, बच्चा उसके पेट में था।
फिर यूँ हुआ, कि वो आ गई।
जब वो आई तो उसके होंटों पर गए दिनों के अ’ज़ाब लम्हों के तज़किरे थे।
वो कहती...
उसने एक-एक लम्हा रो-रो कर गुज़ारा है क्योंकि उसे अपने बाप या’नी नए वाले एगमनान के क़त्ल का दुख सहना पड़ा था और उसे सारी आसाइशें छोड़ना पड़ी थीं जो उसके बदन में हरारत, जिल्द में चमक और गालों पर सुर्ख़ी ला सकती थीं।
जब वो ये कहती तो लोग उसके हुस्न की ता’रीफ़ करते और कहते... नाम-निहाद सख़्तियों ने तो उसके बदन को गुदाज़, होंटों और गालों को सुर्ख़ जब कि जल्द को मज़ीद शफ़्फ़ाफ़ बना दिया है
वो कहती...
जहाँ वो घर-बदरी के दिन काटती रही थी वहाँ के लोग बहुत अच्छे थे।
पुराने वाली इलेक्ट्रा का क़िस्सा भी मिलता-जुलता है।
जिसके साथ उसकी शादी हुई थी उसने उसे छुआ तक न था।
और जिसने नहीं छुआ था, वो चाहता था इलेक्ट्रा आराम से रहे मगर वो पुरानी आसाइशों को न भूल पाई थी... वो रोती रहती थी।
वो जो ख़ुद को नई इलेक्ट्रा कहती है वो घर-बदरी के दिनों को याद कर के दुखी हो जाती है... और कहती है कि...
वो बहुत अच्छे लोग थे... मगर फिर भी वो रोती रहती थी।
लोग कहते हैं,
वो इलेक्ट्रा नहीं, कलाइटमिनस्ट्रा है...
दग़ाबाज़, फ़रेबी, अ’य्यार, मक्कार...
कुछ और लोग भी हैं, जो ज़रा परे खड़े सब कुछ देख रहे हैं।
ये इधर हैं न उधर।
उनमें से एक कहता है,
वो कालीदास की शकुन्तला है।
ऐसी शकुन्तला कि जिसे कोई राजा दुष्यंत नहीं मिला।
वो, जो ख़ुद को राजा दुष्यंत समझता है, उसके हाथ में कोई अँगूठी नहीं है।
ख़ुद को राजा दुष्यंत कहने वाला दा’वा करता है,
उसकी अँगूठी मछली के पेट में है।
वो लोग जो न इधर हैं न उधर... उनमें से एक और कहता है...
यही दा’वा उसके राजा दुष्यंत न होने का सबूत है।
वो मज़ीद कहता है,
न तो मुद्दई’ दुष्यंत है न उसके बाज़ुओं में बाज़ू डालने वाली शकुन्तला... वो तो बस रासीन की फ़ैदरा जैसी है।
जवानी, हुस्न और जज़्बात से भरी हुई।
जो जज़्बात से आग भड़काती है और सबको राख बना डालती है।
वो लोग जो इधर हैं, न उधर, उनमें से तीसरा कहता है,
वो सारे लोग जो इधर भी हैं और इधर भी बालज़ाक के उस बूढ़े गोरीव जैसे हैं, जो कामेडी ह्यूसन में अपनी बेटियों के लिए सब कुछ क़ुर्बान कर सकता है।
वो कहती है,
वो तो सबकी बेटी है।
लोग कहते हैं,
वो छिनाल है।
वो हँसती है और तकरार करती है कि,
वो तो सबकी बेटी है।
तीसरा आदमी अपनी बात आगे बढ़ाता है।
लोग बूढ़े गोरीव की तरह हैं उसे अपनी बेटी न समझते हुए भी उस पर सब कुछ क़ुर्बान करते चले जा रहे हैं।
वो उसे झूटा कहते हुए भी उससे मुहब्बत करते हैं क्योंकि वो कहती है कि वो उनकी बेटी है
लोग चूँकि बूढ़े गोरीव जैसे हैं लिहाज़ा छिनाल के आ’शिक़ों को भी दुआ’ दे रहे हैं। वो दुआ’ के लिए उठे उन हाथों से लंबी मोहलत के दाने उठा कर नफ़ासत से बट्टे हुए धागे में डाल लेती है।
ये दाने उसकी उँगलियों से फिसलते हैं और होंटों पर अ’जब सी मुस्कुराहट फैल जाती है।
लोग उस वक़्त से दुआ’ करने के आ’दी हो गए हैं जब से उसने मज़लूमियत का स्वाँग भरा हुआ था।
लोग कहते हैं,
उसकी घर-बदरी महज़ ढोंग था, आँखों में धूल थी, एक फ़रेब था, ड्रामा था वो चाहती तो वापिस आ सकती थी।
लेकिन लोग फिर भी दुआ’ करते आते रहे, इसलिए कि लोग बूढ़े गोरीव जैसे हैं।
वो जो न इधर हैं न उधर, वो कहते हैं,
लोगों की यही सादगी कभी-कभी बेवक़ूफ़ी की हदों को भी छूने लगती है।
लोग कहते हैं,
उसने अलादीन का जादूई चिराग़ रगड़ा था और अपनी सारी आसाइशें वहाँ मुंतक़िल कर दी थीं जहाँ वो घर-बदरी के दिन गुज़र रही थी। वहीं वो ख़ून और पीप के प्याले लुंढाती थी, ये प्याले उसे उसके चाहने वाले फ़राहम करते थे।
अलादीन का चिराग़ इलेक्ट्रा वाले अस्ल क़िस्से में नहीं है... मगर हैरत है कि वो ख़ुद सारे क़िस्सों में है और सारे ही क़िस्से उसके आगे बेबस हैं कि उसके तज़किरे के बग़ैर ना-मुकम्मल रह जाते हैं।
फिर यूँ हुआ कि एगमनान क़त्ल हो गया।
वो कहती है,
अब क़त्ल होने वाला एगमनान नहीं बल्कि एजिसथीस था।
ग़ासिब, ज़ालिम और अस्ल एगमनान का क़ातिल।
अस्ल एगमनान से उसकी मुराद यूरीपीडीज़ वाला नहीं बल्कि उसका अपना बाप है।
मगर कुछ लोगों का इसरार है,
इस बार क़त्ल होने वाला एगमनान ही था।
वो कहती है,
जो क़त्ल हुआ है उसे क़त्ल हो जाना चाहिए था, अगरचे इस क़त्ल में उसके भाई या’नी नए वाले लेस्टिस का कोई हाथ नहीं, मगर जो हुआ अच्छा हुआ और ऐसा ही होना चाहिए था।
लोग कहते हैं,
बहुत ज़ुल्म हुआ और इस ज़ुल्म के पीछेउस शातिरा, उसके भाई और उन चालीस चोरों का भी हाथ है जो मरजीना वाले नए क़िस्से में अपने दरवाज़े मरजीना के लिए खुले छोड़ देते हैं।
इलेक्ट्रा और कलाइटमिनस्ट्रा के क़िस्से में चोर नहीं हैं।
मगर इस क़िस्से में चोरों का तज़किरा तवातुर से आता है।
वो कहती है,
अगर उसे चोरों वाले क़िस्से की मरजीना समझ लिया जाए तो भी कोई हर्ज नहीं।
वही मरजीना जो बेहद हसीन थी और अ’क़्लमंद भी।
लोग कहते हैं,
वो चोरों वाले नए क़िस्से की दग़ाबाज़ और फ़रेबी मरजीना है, ऐसी मक्कार और हर्राफ़ा कि अपने ही मालिक की आँखों में धूल झोंकती है।
जब हिनहिनाते घोड़े बंध चुकते हैं और उसका मालिक ए’तिमाद के नशे में लुढ़क चुकता है तो चुपके से उठती है।
और बारी-बारी उन चोरों के बिस्तरों में जा घुसती है जो उसके मालिक के जागते हुए उसे देखने का हौसला भी न कर पाते थे।
मगर जूँ ही उसका मालिक जागता है।
वो पाक दामन और अ’फ़ीफ़ा बन जाती है।
उसके हाथों में मज़बूत बट्टे हुए धागे में पिरोए हुए दाने होते हैं।
ये दाने उसने दुआ’ के लिए उठे हाथों से उचके थे।
दुआ’ के लिए उठे हाथ उन लोगों के थे जो अपनी नहीं बल्कि बूढ़े गोरीव की जून में थे।
लोग कहते हैं, वो झूटी है।
मगर वो दाने गिन-गिन कर इस्म-ए-आज़म का विर्द करती है।
और जब वो विर्द करती है तो चालीस के चालीस चोर उसके लिए खुल जा सिम-सिम कहते हैं।
वो लोगों की तरफ़ मुस्कुरा कर देखती है और कहती है,
वो इलेक्ट्रा है।
नज़रों के सामने जितनी भी तस्वीरें मुतहर्रिक हैं सब एक ही जाप जप रही हैं।
वो इलेक्ट्रा है।
गलियों का ख़ून पुकारता है।
वो कलाइटमिनस्ट्रा है।
दग़ाबाज़, फ़रेबी, मक्कार...
मगर लोग उसे देखने और सुनने पर मजबूर हैं
इसलिए कि उसके पास मरजीना वाली चमकती जिल्द, फ़ैदरा जैसे भड़कते जज़्बात, इलेक्ट्रा जैसी बुलंद हिम्मती, कलाइटमिनस्ट्रा जैसी अ’य्यारी, एलीशिया जैसा ढोंग, शकुन्तला जैसा हुस्न और चालीस चोरों की ताक़त है।
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