वारिस
कस्बाई पुलिस लाइंज़ थी ,जिसके सामने मैदान में जैसे छोटा मोटा बाज़ार लग गया था। सारबानों ने अपने जानवरों पर बंधे कुजावे, काठीयाँ, रस्से खोलना और उन्हें चारे-पानी के लिए आज़ाद करना शुरू कर दिया था। हम दो इंसान, मवेशियों के उस दायरे के बीच ज़ंजीरें पहने रस्सियों से बंधे पड़े थे। उन लोगों की क़ैद में आए हुए ग्यारह घंटे हो गए थे, मगर उन कम नसीबों ने दो-तीन बार पानी पिलाने के सिवा हमें खाने को कुछ नहीं दिया था। उनसे अच्छे तो बेगार में साथ आने वाले सारबान थे, जो अपने जानवरों को चारा तो दे रहे थे।
मेरे क़रीब ज़ंजीरें बजीं। मैंने सर घुमा कर देखा, मेरा साथी, खोसा, खिसकते-खिसकते मेरे बराबर आ गया था। उसने सरगोशी में पूछा, “हा कामरेड! कैसा है?”
“ठीक हूँ।कमज़ोरी हो गई है।”
“कमज़ोरी बरोबर होएंगा। खाने का कुछ बी नईं दिया हरामख़ोर लोगों ने।”
“प्यास भी लग रही है।”
“अबी देखो, हम उनका ऐसी तैसी करताऊँ। ये बेग़ैरत ऐसा नईं समझेंगा। हमको रोला डालना पड़ींगा।” फिर उसने पुलिस लाइंज की तरफ़ मुँह करके आवाज़ लगाई ,“सुनो ड़े! ओ बदनसीब!हम लोग को भूका-प्यासा क्यूँ मारते हो। ओ जहन्नम के कीड़े! अड़े हम लोग को मर्दों की तरह जान देना आता है, एकी बार में गोली मार के ख़लास करो नईं। अबी जो मारने का प्लान नईं है तो पानी देव, कुछ खाने को देव। काफ़िर की औलाद!” फिर मेरी तरफ़ झुक के वो आहिस्ता से कहने लगा, “हम उन लोग की दम पे पाँव रख दियाऊँ। काफ़िर बोलो तो ये लोग एक दम गर्मी खा जाता ए,कोई और बात बोलो तो सुनताई नईं है साला, कमज़र्फ़!” और वो राज़दारी से हँसने लगा।
खोसा की इस हिक्मत-ए-'इल्मी का वाक़ई असर हुआ। एक गार्ड ने मिट्टी में ठोकर मार के बहुत सी रेत मिट्टी उसके मुँह पर फेंकी और उसे गाली दी,“ले,मिट्टी खा,बे-दीन साले! सबको काफ़िर बोलताए। बे-शरम कुत्ता!”
खोसा ने मुँह पर लगी मिट्टी को झाड़ते हुए मज़े से कहा ,“हम क्या बोलताऊँ बच्चा। दुनिया जानताए तुम काफ़िर से बी बदतर है, साला!क़ैदी का राशन खा जाताए तुम लोग। भूका प्यासा मारताए। हम काफ़िर की क़ैद में रह के आया ऊँ। वो लोग भी इंसान है, तुम नईं है...तुम घदा है साला! हाँ ना। बल्कि तुम सुअर-कुत्ता है।”
गार्ड जो मिट्टी में ठोकर मार कर निकला चला गया था, पलट पड़ा, “तेरी तो...कह के वो झपटा।”
उसने अपनी बंदूक़ का कुंदा हमले के लिए सीधा ही किया था कि खोसा ने भयानक आवाज़ में डकराना शुरू कर दिया। “साब! ज़ंजीर से बंधे क़ैदी को बट मारताए। साब! गार्ड पागल हो गयाए।साब! बचाओ हम लोग को।”
गार्ड ने और मैंने अपनी तरफ़ बढ़ते उस अफ़्सर को नहीं देखा था,खोसा ने देख लिया था।इसी लिए उसने गार्ड को राज़दारी से गाली देना और फिर अफ़्सर को सुना के फ़रियाद करना शुरू कर दिया था।खोसा की फ़रियाद और शोर शराबे का ख़ातिर ख़्वाह असर हुआ।अफ़्सर ने जैसे कॉशन देते हुए अपने गार्ड को ललकारा,“क्या करता है? हटो पीछे!बैक,बैक।”
गार्ड की राइफ़ल का बट धीरे धीरे ज़मीन पर टिक गया।उसने अपने अफ़्सर की तरफ़ देखा और ग़ुस्से से फंसती आवाज़ में बोला,“गाली निकालता है साब! काफ़िर बोलता है।”
खोसा ने फ़रियाद और दिल लगी के मिले-जुले अंदाज़ में कहा, “सर, क्या करें हम लोग ?हमारे को भूका मार दिया। ख़ुद हमारा सामने बिस्कुट दूध खाताए। हमलोग को चाय भी नईं दिया ये लोग ने, दो दफ़ा पानी पिलाया है, बस। काफ़िर नईं बोले तो क्या करे साब!”
अफ़्सर ने डपट कर कहा, “बकवास बंद करो! फिर गार्ड से बोला,मेरे साथ आओ।” वो दोनों चले गए। मुझे देखते हुए खोसा आहिस्ता से हंसा,कहने लगा, “देखा कामरेड?अबी खाना आएंगा।अपना काम सई हो गयाए।”
कोई डेढ़ घंटे बाद जब हम दोनों मायूस हो चुके थे, तीन गार्ड इसी मैदान में हमारे लिए खाने-पीने की चीज़ें ले आए। उबले हुए चावल,चने की दाल, कटा हुआ खीरा और मोटे-मोटे दो कबाब थे, देखने में मछली के लगते थे। खोसा ने हंसती हुई आँखों से टीन की प्लेट में रखे उन कबाबों को देखा और साथ आने वाले गार्ड से, जो बट मारने लपका था, पूछा, “ये कैसा कबाब है बई ऐसा मोटा मोटा?”
गार्ड अभी तक झिलसा हुआ था, उसने हराम जानवर का नाम लिया कि ये उसके कबाब हैं। कामरेड खोसा मेरी तरफ़ देख के ता'रीफ़ी अंदाज़ में बोला,“देखो बई दोस्त! अबी कैसा ख़याल रखता है ये जवान हम क़ैदी लोग का, अपना पेट काट के, अपनी ख़ास डिश में से हमारे को खिलाता ऐ ।शाबाश है! सखी मुर्दार!”
साथ के दोनों गार्ड हँसने लगे। झुलसे हुए गार्ड ने खोसा से तो कुछ न कहा, अपने साथियों से बोला,“उधर खड़े होके दाँत मत निकालो, साला हरामख़ोर! बहुत काम पड़ा है। चलो,नहीं तो मैं रिपोर्ट कर दूँ गा।”
गार्ड चले गए तो हम दोनों ने खाना शुरू किया। गिरफ़्तारी के वक़्त होंट पर ज़ख़्म आने की वजह से उसे खाने में दिक़्क़त हो रही थी मगर उसने हंसते-हंसाते खाना पूरा किया।
खाना खा कर जान आई तो वो जो पहले वर्दी वालों के साथ मसखरापन कर रहा था और खिल उठा। उसने ऊंची आवाज़ में खाने की ता'रीफ़ शुरू कर दी कि भई बहुत अच्छा मिनू है और सुनो तुम लोग, अब ख़याल रखना, मुझे पोलाव मछली की बिरयानी पसंद है। रात में बिरयानी लाना और साथ में एक बोतल अच्छी इंग्लिश वाइन ज़रूर लेते आना। समझे? मेहमानदारी करते हो तो अच्छी तरह करो, सालो। वो थोड़ी थोड़ी देर बाद क़हक़हा भी लगा रहा था।
आख़िर दो वर्दी पोशों के साथ उनका अफ़्सर हमारी तरफ़ आया। अफ़्सर के हाथ में छड़ी थी। वर्दी वाले अपनी राइफ़लें सीधी किए आए थे, जैसे बस गोली चला ही देंगे। अफ़्सर ने हंसते, शोर मचाते खोसा के सर पर आहिस्ता से अपनी छड़ी रखदी और भारी गूंजती आवाज़ में पूछा,“तूने नशा किया हुआ है जो इतना शोर करता है?”
खोसा ने मुस्कुरा कर सर घुमाया, बोला,“ख़ुदा का शुक्र है, आप अफ़्सर लोग हमारी बात सुनने के वास्ते आ गया है साब! हमलोग न क़त्ल का मुल्ज़िम है,न ही मुल्क के ख़िलाप ग़द्दारी किया है।हमलोग ने आप सरकारी आदमिन है, जैसा क़ाएदे-क़ानून में गिरपतारी का उसूल है, वो करो। हम लोग को जानवर के तरहे इधर क्यूँ डाल दिया है? कुछ ख़ुदा का खौप करो सर।”
अफ़्सर ने धीरे से पूछा,“तू हमको क़ाएदा-क़ानून सिखाता है। ईं,हरामख़ोर!”
खोसा बोला,“हम क्या सिखाएंगा बई क़ानून। हहा! तुम साब लोग है। क़ानून का तुम को पहले ही पता हुईंगा...या नईं बी होवे। बस एक बात याद दिलाताऊँ, हम लोग लावारिस नईं है साब! हाँ,ये रस्ते का आदमिन, ये ओठ वाला सारबान, गोठ गाँव क़स्बे का लोग, शहरी महरी...ये सब कमज़ोर भले ही होवे, पर उनको ख़बर है कि बई, तुम लोग हम दो को पकड़ के ले जारिए हो। अभी भूक प्यास में, बंदूक़ का बट मारने से,या गोली चलाने से एक या दोनों क़ैदी कम हो जावे तो बात छुप नईं सकेंगा सर! शहर में दो चार अख़बार वाला, दस-बीस कौंसिलर, असैंबली के मैंबर लोग एक दूसरे को पूछता हुईंगा कि बई अपना यार खोसा किदर है? उसका कामरेड किदर है? और वो उसका मा'शूक़ जर्मन बीबी वो किदर है? ये लोग आख़िर किदर चला गया बई?”
अफ़्सर अपने पतलून की साइड पर ज़ोर ज़ोर से बेद मारता हुआ मज़े लेकर कहने लगा,“अच्छा तो ये लाइन है तेरी?”
खोसा ने जर्मन जर्नलिस्ट गीज़ल को अपनी महबूबा बताया था जब कि वो उसे सूरत से भी नहीं पहचानता था। उसने अपने हवाले से ज़िक्र करते हुए हम दो को अपने साथ नत्थी करके, एक तरह से हमें मज़बूत और महफ़ूज़ करने की कोशिश की थी। वो बड़ी दिलेरी से सरकारी आदमी को नताइज की धमकी दे रहा था। मगर, मैंने सोचा, वो सब तो ऐसी धमकियों के आ'दी होंगे। हर सरकारी अहलकार को अपनी हदों का अंदाज़ा होता है और नहीं भी हो तो पर्वा नहीं, वो समझता है कि लोग जब फंस जाते हैं तो लंबी कहानियाँ सुनाते हैं और ब्लफ चल के काम निकालना चाहते हैं।
अफ़्सर हँसने लगा,बोला,“तू कोई बड़ा या छोटा सियासी लीडर नहीं है,न ही एन.जी.ओ. वाला है।तीसरे दर्जे का सोशलिस्ट बेदीन है तू। ऊँट से गिर के, या साँप के काटे से, या फ़रार होने की कोशिश में जान से चला जाएगा तो कोई अख़बार दो लाईन की ख़बर भी नहीं लगाएगा और इत्मिनान रख! किसी जर्मन इटालियन के पेट में तकलीफ़ नहीं होगी, वो गई अपने घर।”
खोसा हँसने लगा,“ऐसा बी नईं है सर! अबी आप को बतावे? हम लोग के क़ाफ़िले का आगे पीछे दो मोटर साइकल बरोबर लगी हुई है। आप के जवानों ने तीन बार वार्निंग दिया है, उन लोग पर हवाई फ़ैर भी किया है।” अफ़्सर जानता था ये ब्लफ नहीं है।
खोसा बोला,“समझा साब? मोटर सैक़ल वाला आगे पीछे टैली पोन करता हुईंगा। वो लोग के पास लंबे-लंबे लेंस वाला कैमरा हुईंगा। वो लोग हम दो बंदों को ओठ पे ज़ंजीरों, रस्सियों से बंधा हुआ देख के तस्वीर खींच के ले गया हुईंगा।”
अफ़्सर ने होंट भींचते हुए अपने गार्ड्ज़ को इशारा किया, उन्होंने बढ़ कर खोसा को बग़लों में हाथ दे के बैठे से उठा दिया। अफ़्सर ने हल्के हाथ से अपनी छड़ी उसकी पीठ से टिका दी और कहा,“चलो!”
खोसा जमा खड़ा रहा बोला,“ये भाई बी साथ चलेंगा। हमारा अपना ख़ून के रिश्ते वाला है, ये बी कामरेड है। उसको बुख़ार है सर! कोई आसप्रो,मासप्रो की टिकिया दे के,चाय-माय पिला के उसको सई करने का है। किद़री और बीमार नईं हो जावे। ये अपना भाई।”
खोसा ने ये बात अफ़्सर की आँखों में आँखें डाल के इतने तयशुदा अंदाज़ में कही थी कि उसने फ़ौरी फ़ैसला कर लिया, गार्ड को छड़ी से इशारा किया कि उठाओ। गार्ड ने मुझे भी सहारा दे के उठाया और ले चला।
हमारा छोटा सा क़ाफ़िला पुलिस लाइन्ज़ में दाख़िल हो गया।
और यहाँ अकबर अली खोसा की कहानी, जितनी कि मुझे मालूम है,ख़त्म होती है।
किसलिए कि पुलिस लाइंज़ पहुंचने के बाद मुझे, या किसी को, फिर उसकी कोई ख़बर न मिल सकी।
ता-हम,बेगिनती बलोच और बेशुमार वो जो बलोच नहीं हैं,उसे लावारिस नहीं मानते।
खोसा ने सच कहा था कि ये रस्ते का आदमी, ये ओठ वाला सारबान,गोठ गांव क़स्बे का लोग, शहरी-महरी। ये सब कमज़ोर सही, पर यही उसके वारिस हैं।
सभी को ये मा'लूम है कि एक अकबर अली खोसा अभी हो के गया है। एक को अभी आना है।और वो अपने नस्ब से और गद्दी और तरीके पेच से नहीं, काम से, कटे-फटे अपने हाथों से और अपने दिल की और दिमाग़ की मज़बूती से पहचाना जाएगा।
उसके वारिस,उसके आने की ख़बर दे चुके।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.