बेख़बरी पर चित्र/छाया शायरी
होश-मंदी के मुक़ाबिले
में बे-ख़बरी शायरी में एक अच्छी और मुसबत क़दर के तौर पर उभरती है। बुनियादी तौर पर ये बेख़बरी इन्सानी फ़ित्रत की मासूमियत की अलामत है जो हद से बढ़ी हुई चालाकी और होशमंदी के नतीजे में पैदा होने वाले ख़तरात से बचाती है। हमारी आम ज़िंदगी के तसव्वुरात तख़लीक़ी फ़न पारों में किस तरह टूट-फूट से गुज़रते हैं इस का अंदाज़ा इस शेरी इन्तिख़ाब से होगा।
![ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही](https://rekhta.pc.cdn.bitgravity.com/Images/ShayariImages/khabar-e-tahayyur-e-ishq-sun-na-junuun-rahaa-na-parii-rahii-couplets-siraj-aurangabadi_medium.png)
-
तसव्वुफ़और 1 अन्य