हाफ़िज़ हुसैन दीन
यह तंत्र-मंत्र के सहारे लोगों को ठगने वाले एक ढोंगी पीर की कहानी है। हाफ़िज़ हुसैन दीन आँखों से अंधा था और ज़फ़र शाह के यहाँ आया हुआ था। ज़फ़र से उसका सम्बंध एक जानने वाले के ज़रिए हुआ था। ज़फ़र पीर-औलिया पर बहुत यक़ीन रखता था। इसी वजह से हुसैन दीन ने उसे आर्थिक रूप से ख़ूब लूटा और आख़िर में उसकी मंगेतर को ही लेकर भाग गया।
सआदत हसन मंटो
रौशनी की रफ़्तार
‘रोशनी की रफ्तार’ कहानी कुर्तुल ऐन हैदर की बेपनाह रचनात्मक सलाहियतों के नये आयामों को प्रदर्शित करती है। इस कहानी में वर्तमान से अतीत की यात्रा की गयी है। सैकड़ों वर्षों के फासलों को लाँघ कर कभी अतीत को वर्तमान काल में लाकर और कभी वर्तमान को अतीत के अंदर, बहुत अंदर ले जाकर मानव-जीवन के रहस्यों को देखने, समझने और उसकी सीमाओं तथा संभावनाओं का जायज़ा लेने का प्रयत्न किया गया है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
किताब का ख़ुलासा
यह कहानी एक बाप के अपनी बेटी के साथ नाजायज़ तअल्लुक़़ात पर आधारित है। बिमला की माँ बहुत पहले ही मर गई थी। वह अपने पिता के साथ अकेली रहा करती थी। दिन में वह अनवर के घर उसकी बहन के पास सिलाई-कढ़ाई का काम सीखने आया करती थी। उसे अनवर से मोहब्बत थी, पर वह उसका इज़हार नहीं कर पाती थी। एक बार वह शदीद बीमार हुई और उसने अनवर के घर आना छोड़ दिया। बाद में पता चला कि उसके यहाँ मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ था, जो उसी के बाप का था।
सआदत हसन मंटो
दीवाली
तीज-त्योहार पर अपने प्यारों को देखने का हर किसी का सपना होता है। मेकवा सहूकार के यहाँ काम करता है। वह कड़ी मेहनत करता है और हर काम को वक़्त पर पूरा कर देता है। दिवाली पर वह घर की साफ़-सफ़ाई में लगा हुआ है और इसी बीच उसे दीवार पर लगी लक्ष्मी जी की तस्वीर दिखती है। उस तस्वीर को देखकर उसे अपनी मंगेतर लक्ष्मी की याद आती है। वह सारा दिन उसके ख़्यालों में खोया रहता है। शाम को प्रसाद लेने के बाद वह मेहता जी की खु़शामद करके चार घंटे की छुट्टी माँग लेता है और साइकिल पर सवार होकर अपनी मंगेतर के गाँव की ओर दौड़ लगा देता है। लेकिन वहाँ जाकर उसे जो पता चलता है उससे उसके पैरों तले की ज़मीन ही खिसक जाती है।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
पान शॉप
कहानी में अपनी महबूब चीज़ों को गिरवी रख कर पैसे उधार लेने वालों के शोषण को बयान किया गया है। बेगम बाज़ार में फ़ोटो स्टूडियो, जापानी गिफ्ट शॉप और पान शॉप पास-पास ही हैं। पहली दो दुकानों पर नाम के अनुसार ही काम होता और तीसरी दुकान पर पान बेचने के साथ ही क़ीमती चीज़ों को गिरवी रख कर पैसे भी उधार दिए जाते हैं। इस काम के लिए फ़ोटो स्टूडियो का मालिक और जापानी गिफ्ट शॉप वाला पान वाले की हमेशा बुराई करते हैं। जब एक रोज़ उन्हें पैसों की ज़रूरत होती है तो वे दोनों भी एक-दूसरे से छुपकर पान वाले के यहाँ अपनी क़ीमती चीज़ें गिरवी रखते हैं।
राजिंदर सिंह बेदी
रियासत का दीवान
आप तभी तक इंसान हैं जब तक आपका ज़मीर ज़िंदा है। महतो साहब जब तक इस अमल पर जमे रहे तब तक तो सब ठीक था। मगर जब एक रोज़ अपने ज़मीर को मार कर वह रियासत के हुए हैं तब से सब गड़बड़ हो गया है। राजा उसे ज़ुल्म करने पर उकसाता है और बेटा ग़रीबों की हिमायत में खड़ा है। इस रस्सा-कशी में एक रोज़ ऐसा भी आया कि वह तन्हा खड़े रह गए।
प्रेमचंद
नारा
यह अफ़साना एक निम्न मध्यवर्गीय आदमी के अभिमान को ठेस पहुँचने से होने वाले दर्द को बयान करता है। बीवी की बीमारी और बच्चों के ख़र्च के कारण वह मकान मालिक को पिछले दो महीने का किराया भी नहीं दे पाया था। वह चाहता था कि मालिक उसे एक महीने की और मोहलत दे दे। इस विनती के साथ जब वह मकान मालिक के पास गया तो मालिक ने उसकी बात सुने बिना ही उसे दो गंदी गालियाँ दी। उन गालियों को सुनकर उसे बहुत ठेस पहुँची और वह तरह-तरह के विचारों में गुम शहर के दूसरे सिरे पर जा पहुँचा। वहाँ उसने अपनी पूरी क़ुव्वत से एक 'नारा' लगाया और ख़ुद को हल्का महसूस करने लगा।
सआदत हसन मंटो
बूढ़ी काकी
‘बूढ़ी काकी’ मानवीय भावना से ओत-प्रोत की कहानी है। इसमें उस समस्या को उठाया गया है जिसमें परिवार के बाक़ी लोग घर के बुज़ुर्गों से धन-दौलत लेने के लिए उनकी उपेक्षा करने लगते हैं। इतना ही नहीं उनका तिरस्कार किया जाता है। उनका अपमान किया जाता है और उन्हें खाना भी नहीं दिया जाता है। इसमें भारतीय मध्यवर्गीय परिवारों में होने वाली इस व्यवहार का वीभत्स चित्र उकेरा गया है।
प्रेमचंद
लाजवंती
लाजवंती ईमानदारी और ख़ुलूस के सुंदरलाल से मोहब्बत करती है। सुंदरलाल भी लाजवंती पर जान छिड़कता है। लेकिन बँटवारे के वक़्त कुछ मुस्लिम नौजवान लाजवंती को अपने साथ पाकिस्तान ले जाते हैं और फिर मुहाजिरों की अदला-बदली में लाजवंती वापस सुंदरलाल के पास आ जाती है। इस दौरान लाजवंती के लिए सुंदरलाल का रवैया इस क़दर बदल जाता है कि लाजवंती को अपनी वफ़ादारी और पाकीज़गी पर कुछ ऐसे सवाल खड़े दिखाई देते हैं जिनका उसके पास कोई जवाब नहीं है।
राजिंदर सिंह बेदी
महालक्ष्मी का पुल
‘महालक्ष्मी का पुल’ दो समाजों के बीच की कहानी है। महालक्ष्मी के पुल दोनों ओर सूख रही साड़ियों की मारिफ़त शहरी ग़रीब महिलाओं और पुरुषों के कठिन जीवन को उधेड़ा गया है, जो उनकी साड़ियों की तरह ही तार-तार है। वहाँ बसने वाले लोगों को उम्मीद है कि आज़ादी के बाद आई जवाहर लाल नेहरू की सरकार उनका कुछ भला करेगी, लेकिन नेहरु का क़ाफ़िला वहाँ बिना रुके ही गुज़र जाता है। जो दर्शाता है कि न तो पुरानी शासन व्यवस्था में इनके लिए कोई जगह थी न ही नई शासन व्यवस्था में इनके लिए कोई जगह है।
कृष्ण चंदर
शुग़ल
यह कहानी अमीरों के शौक़ और उनकी दिलचस्पियों के गिर्द घूमती है। एक पहाड़ी इलाक़े में कुछ मज़दूर पत्थर साफ़ करने का काम किया करते थे। वहाँ सड़क से गुज़रने वाली तरह-तरह की लारियाँ ही उनके मनोरंजन का साधन थीं। एक रोज़ वहाँ एक नई गाड़ी आकर रुकी, उसमें से दो नौजवान उतरे और एक चमार की बेटी को अपने साथ लेकर चल दिए। ठेकेदार ने उन नौजवानों के रसूख़ को बयान करते हुए बताया कि यह तो अपने शुग़ल के लिए उस लड़की को ले जा रहे हैं, कुछ देर बाद उसे छोड़ जाएँगे।
सआदत हसन मंटो
मज़दूर
यह समाज के सबसे मज़बूत और बे-सहारा स्तंभ एक मज़दूर की कहानी है, जो दिन-रात ख़ून-पसीना बहाकर काम करता है। लेकिन इससे वह इतना भी नहीं कमा पाता कि अपने बच्चों को भर पेट खाना खिला सके या अपनी बीमार बीवी की दवाई ख़रीद सके। वह फैक्ट्री मालिक से भी विनती करता है, पर वहाँ से भी उसे कोई मदद नहीं मिलती।
सुदर्शन
यज़ीद
करीम दादा एक ठंडे दिमाग़ का आदमी है जिसने तक़सीम के वक़्त फ़साद की तबाहियों को देखा था। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान जंग के तानाज़ुर में यह अफ़वाह उड़ती है कि हिन्दुस्तान वाले पाकिस्तान की तरफ़ आने वाले दरिया का पानी बंद कर रहे हैं। इसी बीच उसके यहाँ एक बच्चे का जन्म होता है जिसका नाम वह यज़ीद रखता है और कहता है कि उस यज़ीद ने दरिया बंद किया था, यह खोलेगा।
सआदत हसन मंटो
मीना बाज़ार
इंसान की हैसियत हमेशा न्यायिक फैसलों पर असर-अंदाज़ रही है। हिल स्टेशन पर आयोजित हुए उस एक ब्यूटी कॉम्पीटिशन में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। कॉम्पीटिशन में शामिल होने वाली सबसे ख़ूबसूरत लड़की को नज़र-अंदाज़ कर के कमीश्नर साहब की उस बेटी को अवॉर्ड दे दिया गया जिसके बारे में कोई गुमान भी नहीं कर सकता था।
कृष्ण चंदर
शेर आया शेर आया दौड़ना
बचपन में स्कूल में पढ़ाई जानी वाली झूठे गड़रिये की कहानी को एक नए अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है। कहानी में गड़रिये के शेर के न आने के बावजूद चिल्लाने के उद्देश्य को बताया गया है। गड़रिया शेर न होने के बावजूद चिल्लाता है क्योंकि वह चाहता है कि लोग शेर के आने से पहले ही ख़ुद को तैयार रखें। अगर अचानक शेर आ गया तो किसी को भी बचने का मौक़ा नहीं मिलेगा।
सआदत हसन मंटो
शहीद-ए-आज़ादी
दौलत और शोहरत को परिवार और रिश्तों से ज़्यादा अहमियत देने वाली एक ऐसी औरत की कहानी, जिसकी शादी एक बिजनेसमैन से हो जाती है। लेकिन शादी के बाद भी वह अपनी ज़िंदगी में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं करती। उसका शौहर बिजनेस के सिलसिले में विदेश चला जाता है, तभी उसकी ज़िंदगी में एक बिगड़ा हुआ अमीर-ज़ादा आता है, जो उसकी ज़िंदगी को मौत के कगार तक ले जाता है।
नियाज़ फ़तेहपुरी
भीक
एक ऐसे शख़्स की कहानी, जो पहाड़ों पर सैर करने गया है। वहाँ उसे एक ग़रीब लड़की मिलती है, जिसे वह अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र देता है। मगर अगले दिन उम्मीद से भरी जब वह लड़की अपने छोटे भाई-बहनों को लेकर डाक-बंगले पर पहुँचती है तो एक साथ इतने बच्चों को देखकर वह उसे नौकरी पर रखने से मना कर देता है। इंकार सुनकर लड़की जब वापस जाने लगती है तो वह उसे दो रूपये दे देता है।
हयातुल्लाह अंसारी
एक ख़त
यह कहानी लेखक के व्यक्तिगत जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाओं को बयान करती है। एक दोस्त के ख़त के जवाब में लिखे गए उस पत्र में लेखक ने अपने व्यक्तिगत जीवन के कई राज़ों से पर्दा उठाया है। साथ ही अपनी उस नाकाम मोहब्बत का भी ज़िक्र किया है जो उसे कश्मीर प्रवास के दौरान वज़ीर नाम की लड़की से हो गई थी।
सआदत हसन मंटो
मिसेज़ गुल
एक ऐसी औरत की ज़िंदगी पर आधारित कहानी है जिसे लोगों को तिल-तिल कर के मारने में मज़ा आता है। मिसेज़ गुल एक अधेड़ उम्र की औरत थी। उसकी तीन शादियाँ हो चुकी थीं और अब वह चौथी की तैयारियाँ कर रही थी। उसका होने वाला पति एक नौजवान था। पर वह हर रोज़़ पीला पड़ता जा रहा था। उसके यहाँ की नौकरानी भी थोड़ा-थोड़ा करके घुलती जा रही थी। उन दोनों के मरज़ से जब पर्दा उठा तो पता चला कि मिसेज़ गुल उन्हें एक जानलेवा नशीली दवाई थोड़ा-थोड़ा करके रोज़़ पिला रही थीं।
सआदत हसन मंटो
सौ कैंडल पॉवर का बल्ब
"इस कहानी में इंसान की स्वाभाविक और भावनात्मक पहलूओं को गिरफ़्त में लिया गया है जिनके तहत वो कर्म करते हैं। कहानी की केन्द्रीय पात्र एक वेश्या है जिसे इस बात से कोई सरोकार नहीं कि वो किस के साथ रात गुज़ारने जा रही है और उसे कितना मुआवज़ा मिलेगा बल्कि वो दलाल के इशारे पर कर्म करने और किसी तरह काम ख़त्म करने के बाद अपनी नींद पूरी करना चाहती है। आख़िर-कार तंग आकर अंजाम की परवाह किए बिना वो दलाल का ख़ून कर देती है और गहरी नींद सो जाती है।"
सआदत हसन मंटो
मज़दूर
हमारा सभ्य समाज मज़दूरों को इंसान नहीं समझता। एक ग़रीब मज़दूर तबियत ठीक न होने के बावजूद मजबूरी में बिजली के खंबे पर चढ़कर लाइट ठीक कर रहा है कि अचानक उसका संतुलन बिगड़ जाता है और वह खम्बे से गिर जाता है और लहू-लुहान हो जाता है। किसी तरह उसे अस्पताल पहुँचाया जाता है। अभी उसकी साँसें चल रही हैं फिर भी अलसाया डॉक्टर उसे मृत घोषित कर देता है।
अहमद अली
गु़लामी
पूंजीवाद ने हर ग़रीब इंसान को गु़लाम बना दिया है। एक खु़शगवार शाम में दो दोस्त नदी के किनारे बैठे हुए हैं और अपनी और ग़रीबों की स्थिति को लेकर बातें कर रहे हैं। वे इस बात से दुखी हैं कि ग़रीब कितने दुखों के साथ ज़िंदगी जीते हैं। शाम ढ़ल जाती है और वे वहाँ से चलने की तैयारी करते हैं। तभी एक ग़रीब औरत उनके पास से गुज़रती है। उनमें से एक उससे फ़स्ल के बारे में पूछता है तो जवाब में औरत रोने लगती है। उसका रोना देखकर एक दोस्त उसकी मदद करना चाहता, तो दूसरा यह कहकर उसे रोक देता है कि गु़लामी तो इनके अंदर बसी हुई है... मदद करने से कुछ नहीं होगा।
अहमद अली
ऐ रूद-ए-मूसा
यह एक ऐसी ख़ुद्दार लड़की की कहानी है, जो दुनिया की ठोकरों में रुलती हुई वेश्या बन जाती है। विभाजन के दौरान हुए दंगों में उसके बाप के मारे जाने के बाद उसकी और उसकी माँ की ज़िम्मेदारी उसके भाई के सिर आ गई थी। एक रोज़ वह बहन के साथ अपने बॉस से मिलने गया था तो उन्होंने उससे उसका हाथ माँग लिया था। मगर अगले रोज़ बॉस के बाप ने भी उससे शादी करने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की थी। उसने उस ख़्वाहिश को ठुकरा दिया था और घर से निकल भागी।
वाजिदा तबस्सुम
गरम कोट
यह ऐसे शख़्स की कहानी है जिसे एक गर्म कोट की शदीद ज़रूरत है। पुराने कोट पर पेवंद लगाते हुए वो और उसकी बीवी दोनों थक गए हैं। बीवी-बच्चों की ज़रूरतों के आगे वह हमेशा अपनी इस ज़रूरत को टालता रहता है। एक रोज़ घर की ज़रुरियात लिस्ट बनाकर वह बाज़ार जाता है तो पता चलता है कि जेब में रखा दस का नोट कहीं गुम हो गया है, मगर बाद में पता चलता है कि वह नोट कोट की फटी जेब में से खिसक कर दूसरी तरफ़ चला गया था। अगली बार वह अपनी बीवी को बाज़ार भेजता है। बीवी अपनी और बच्चों की ज़रूरत का सामान लाने की बजाये शौहर के लिए गर्म कोट का कपड़ा ले आती है।
राजिंदर सिंह बेदी
ख़ुदा की क़सम
विभाजन के दौरान अपनी जवान और ख़ूबसूरत बेटी के गुम हो जाने के ग़म में पागल हो गई एक औरत की कहानी। उसने उस औरत को कई जगह अपनी बेटी को तलाश करते हुए देखा था। कई बार उसने सोचा कि उसे पागलख़ाने में भर्ती करा दे, पर न जाने क्या सोच कर रुक गया था। एक दिन उस औरत ने एक बाज़ार में अपनी बेटी को देखा, पर बेटी ने माँ को पहचानने से इनकार कर दिया। उसी दिन उस व्यक्ति ने जब उसे ख़ुदा की क़सम खाकर यक़ीन दिलाया कि उसकी बेटी मर गई है, तो यह सुनते ही वह भी वहीं ढेर हो गई।
सआदत हसन मंटो
पंसारी का कुँआं
पंसारी का कुँआ एक सामाजिक मुद्दे के गिर्द घुमती कहानी है। कहानी में बूढ़ी गोमती काकी एक कुँआ ख़ुदवाने के लिए सारी ज़िंदगी पाई-पाई जोड़ती है और चौधरी विनायक को वसीयत कर के मर जाती है। चौधरी विनायक बूढ़ी गोमती काकी की वसीयत को पूरा करता है या नहीं। यही इस कहानी में बताया गया है।
प्रेमचंद
ग्रहण
यह एक ऐसी गर्भवती स्त्री की कहानी है जिसके गर्भ के दौरान चाँद ग्रहण लगता है। वह एक अच्छे ख़ानदान की लड़की थी। मगर कायस्थों में शादी होने के बाद लड़की को मात्र बच्चा जनने की मशीन समझ लिया जाता है। गर्भवती होने और उस पर भी ग्रहण के औक़ात में भी घरेलू ज़िम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं। ऐसे में उसे अपने मायके की याद आती है कि वहाँ ग्रहण के औक़ात में कैसे दान किया जाता था और गर्भवती के लिए बहुत सरे कामों को करने की मनाही थी, यह सब सोचते हुए अचानक वह सब कुछ छोड़कर भाग जाने का फैसला करती है।
राजिंदर सिंह बेदी
शान्ति
इस कहानी का विषय एक वेश्या है। कॉलेज के दिनों में वह एक नौजवान से मोहब्बत करती थी। जिसके साथ वह घर से भाग आई थी। मगर उस नौजवान ने उसे धोखा दिया और वह धंधा करने लगी थी। बंबई में एक रोज़ उसके पास एक ऐसा ग्राहक आता है, जिसे उसके शरीर से ज़्यादा उसकी कहानी में दिलचस्पी होती है। फिर जैसे-जैसे शांति की कहानी आगे बढ़ती है वह व्यक्ति उसमें डूबता जाता है और आख़िर में शांति से शादी कर लेता है।
सआदत हसन मंटो
कफ़न
यह एक बहुस्तरीय कहानी है, जिसमें घीसू और माधव की बेबसी, अमानवीयता और निकम्मेपन के बहाने सामन्ती औपनिवेशिक गठजोड़ के दौर की सामाजिक आर्थिक संरचना और उसके अमानवीय/नृशंस रूप का पता मिलता है। कहानी में कफ़न एक ऐसे प्रतीक की तरह उभरता है जो कर्मकाण्डवादी व्यवस्था और सामन्ती औपनिवेशिक गठजोड़ के लिए समाज को मानसिक रूप से तैयार करता है।
प्रेमचंद
आह-ए-बेकस
अपनी ईमानदारी, मेहनत और क़ानून-दानी के लिए मशहूर मुंशी सेवक राम के पास लोग अपनी अमानत रखा करते थे। मगर हक़ीक़त से पर्दा तब उठना शुरू हुआ जब बेवा मूंगा ब्राह्मनी ने मुंशी जी के पास कुछ रुपये अमानत रखे, जिन्हें बाद में मुंशी जी ने देने से मना कर दिया। इससे मूंगा पागल हो गई और एक आह के साथ उसने मुंशी के दरवाजे़ पर दम तोड़ दिया। मूंगा की इस आह का ऐसा असर हुआ कि मुंशी का पूरा ख़ानदान ही तबाह हो गया।
प्रेमचंद
सड़क के किनारे
"मानवता और स्त्री-पुरुष के शारीरिक सम्बंध की ज़रूरत और क़द्र-ओ-क़ीमत इस कहानी का केन्द्रीय बिंदु है। एक मर्द एक औरत से शारीरिक सम्बंध बना कर चला जाता है जिसके नतीजे में औरत गर्भवती हो जाती है। गर्भावस्था के दौरान वो विभिन्न विचारों और मानसिक द्वन्द्व से दो-चार होती है लेकिन अंततः वो एक ख़ूबसूरत बच्ची को जन्म देती है और उस औरत की मौत हो जाती है।"
सआदत हसन मंटो
सवा सेर गेहूँ
शहर के साथ ही गाँवों में हावी साहूकारी व्यवस्था और किसानों के दर्द को उकेरती कहानी है ‘सवा सेर गेहूँ’। प्रेमचंद ने इस कहानी में साहूकारी व्यवस्था के बोझ तले लगातार दबाए जा रहे और पीड़ित किए जा रहे किसानों के दर्द को उकेरा और सवाल उठाया कि आख़िर कब तक किसान साहूकारों द्वारा कुचला जाता रहेगा।
प्रेमचंद
टूटे हुए तारे
एक तन्हा ड्राइवर, जो शराब पीता है और कश्मीर की वादियों में गाड़ी चला रहा है। वह नशे के ख़ुमार में है और सड़क पर गुज़रती दूसरी सवारियों को देखकर तरह-तरह के ख़्यालों से गुज़रता है। वह डाक बंगले पर पहुँचता है और अपनी रात रंगीन करने के लिए एक मुर्ग़ी और एक औरत मँगाता है। औरत मजबूर है और अपने बीमार बेटे की दवा के लिए उस से रुपयों की दरख़्वास्त करती हैं। उस ज़रूरत-मंद औरत के साथ हमबिस्तरी और उसके बाद की ड्राइवर की कैफ़ियत और सोच को ही इस कहानी में कहा गया है।
कृष्ण चंदर
उसका पति
यह कहानी शोषण, इंसानी अक़दार और नैतिकता के पतन की है। भट्टे के मालिक का अय्याश बेटा सतीश गाँव की ग़रीब लड़की रूपा को अपनी हवस का शिकार बनाकर छोड़ देता है। गाँव वालों को जब उसके गर्भवती होने की भनक लगती है तो रूपा का होने वाला ससुर उसकी माँ को बेइज्ज़त करता है और रिश्ता ख़त्म कर देता है। मामले को सुलझाने के लिए नत्थू को बुलाया जाता है जो समझदार और सूझबूझ वाला समझा जाता है। सारी बातें सुनने के बाद वह रूपा को सतीश के पास ले जाता है और कहता है कि वह रूपा और अपने बच्चे को संभाल ले लेकिन सतीश सौदा करने की कोशिश करता है जिससे रूपा भाग जाती है और पागल हो जाती है।
सआदत हसन मंटो
नजात
‘नजात’ कहानी हिंदी में 'सद्गति' के नाम से प्रकाशित हुई थी। एक ज़रूरतमंद, कई दिनों का भूखा-प्यासा ग़रीब चमार किसी काम से ठाकुर के यहाँ आता है। ठाकुर उसे लकड़ी काटने के काम पर लगा देता है। सख़्त गर्मी से बेहाल वह लकड़ी काटता है और अपनी थकान मिटाने के लिए बीच-बीच में चिलम पीता रहता है। लेकिन काम ख़त्म होने से पहले ही वह इतना थक जाता है कि मर जाता है। उस मरे हुए चमार की लाश से ठाकुर जिस तरह जान छुड़ाता है वह बहुत मार्मिक है।
प्रेमचंद
बाबू गोपीनाथ
वेश्याओं और उनके परिवेश को दर्शाने वाली इस कहानी में मंटो ने उन पात्रों के बाहरी और आन्तरिक स्वरूप को उजागर करने की कोशिश की है जिनकी वजह से ये माहौल पनपता है। लेकिन इस अँधेरे में भी मंटो इंसानियत और त्याग की हल्की सी किरन ढूंढ लेता है। बाबू गोपी नाथ एक रईस आदमी है जो ज़ीनत को 'अपने पैरों पर खड़ा करने' के लिए तरह तरह के जतन करता है और आख़िर में जब उसकी शादी हो जाती है तो वो बहुत ख़ुश होता है और एक अभिभावक की भूमिका अदा करता है।
सआदत हसन मंटो
पतझड़ की आवाज़
यह कहानी की मरकज़ी किरदार तनवीर फ़ातिमा की ज़िंदगी के तजुर्बात और ज़ेहनियत की अक्कासी करती है। तनवीर एक अच्छे परिवार की सुशिक्षित लड़की है लेकिन ज़िंदगी जीने का फ़न उसे नहीं आता। उसकी ज़िंदगी में एक के बाद एक तीन मर्द आते हैं। पहला मर्द खु़श-वक़्त सिंह है जो ख़ुद से तनवीर फ़ातिमा की ज़िंदगी में दाख़िल होता है। दूसरा मर्द फ़ारूक़, पहले खु़श-वक़्त सिंह के दोस्त की हैसियत से उससे परिचित होता है और फिर वही उसका सब कुछ बन जाता है। इसी तरह तीसरा मर्द वक़ार हुसैन है जो फ़ारूक़ का दोस्त बनकर आता है और तनवीर फ़ातिमा को दाम्पत्य जीवन की ज़ंजीरों में जकड़ लेता है। तनवीर फ़ातिमा पूरी कहानी में सिर्फ़ एक बार ही अपने भविष्य के बारे में कोई फ़ैसला करती है, खु़श-वक़्त सिंह से शादी न करने का। और यही फ़ैसला उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित होता है क्योंकि वह अपनी ज़िंदगी में आए उस पहले मर्द खु़श-वक़्त सिंह को कभी भूल नहीं पाती।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
अल्लाह दत्ता
"फ़साद में लुटे पिटे हुए एक ऐसे घर की कहानी है जिसमें एक बाप अपनी बेटी से मुँह काला करता है और फिर अपने दिवंगत भाई की बेटी को बहू बना कर लाता है तो उससे भी ज़बरदस्ती करने की कोशिश करता है लेकिन जब उसकी बेटी को पता चलता है तो वो अपने भाई से तलाक़ दिलवा देती है क्योंकि वो अपनी सौत नहीं देख सकती थी।"
सआदत हसन मंटो
क़ासिम
अफ़साना घरों में काम करने वाले बच्चों के शोषण पर आधारित है। क़ासिम इंस्पेक्टर साहब के यहाँ नौकर था। वह बहुत कम-उम्र था फिर भी उस से घर-भर के काम लिए जाते थे। इतने कामों के कारण उसकी नींद भी पूरी नहीं हो पाती थी। काम से बचने के लिए उसने एक रोज़़ चाकू़ से अपनी उँगली काट ली। उसका यह तरीक़ा काम कर गया। उसे कई दिन के लिए काम से छुट्टी मिल गई। ठीक होने के कुछ दिन बाद ही उसने फिर से अपनी अंगुली काट ली। मगर जब उसने तीसरी बार उँगली काटी तो मालिक ने तंग आ कर उसे घर से निकाल दिया। दवाई के अभाव में क़ासिम की ताज़ा कटी उँगली में सैप्टिक हो गया। जिस कारण डॉक्टर को उसका हाथ काटना पड़ा। हाथ कटने पर वह भीख माँगने का धंधा करने लगा।
सआदत हसन मंटो
ख़ून की एक बोतल
रोज़गार की तलाश में अपने ज़मीर का सौदा करने वाले ऐसे शख़्स की कहानी जिसकी माँ शदीद बीमार है। डाक्टरों ने उसमें खू़न की कमी बताई। वह ब्लड बैंक गया तो वहाँ मौजूद शख़्स ने कहा कि इस ग्रुप का ख़ून नहीं है। वह उसे एक दूसरे आदमी का पता देते हुए वहाँ से खू़न लेने का मश्वरा देता है। इसी बीच उसकी माँ की मौत हो जाती है। नौकरी की तलाश में घूमते हुए उस शख़्स की मुलाक़ात उसी खू़न देने वाले शख़्स से होती है, जो उसे ब्लड बैंक वाले शख़्स के साथ पार्टनरशिप में काम करने का मश्वरा देता है।