कफ़न
यह एक बहुस्तरीय कहानी है, जिसमें घीसू और माधव की बेबसी, अमानवीयता और निकम्मेपन के बहाने सामन्ती औपनिवेशिक गठजोड़ के दौर की सामाजिक आर्थिक संरचना और उसके अमानवीय/नृशंस रूप का पता मिलता है। कहानी में कफ़न एक ऐसे प्रतीक की तरह उभरता है जो कर्मकाण्डवादी व्यवस्था और सामन्ती औपनिवेशिक गठजोड़ के लिए समाज को मानसिक रूप से तैयार करता है।
प्रेमचंद
नंगी आवाज़ें
"इस कहानी में शहरी ज़िंदगी के मसाइल को उजागर किया गया है। भोलू एक मज़दूर पेशा आदमी है। जिस बिल्डिंग में वो रहता है उसमें सारे लोग रात में गर्मी से बचने के लिए छत पर टाट के पर्दे लगा कर सोते हैं। उन पर्दों के पीछे से आने वाली मुख्तलिफ़ आवाज़ें उसके अंदर जिन्सी हैजान पैदा करती हैं और वो शादी कर लेता है। लेकिन शादी की पहली ही रात उसे महसूस होता है कि पूरी बिल्डिंग के लोग उसे देख रहे हैं। इसी उधेड़ बुन में वो बीवी की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता और जब बीवी की ये बात उस तक पहुँचती है कि उसके अंदर कुछ कमी है तो उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और फिर वो जहाँ टाट का पर्दा देखता है उखाड़ना शुरू कर देता है।"
सआदत हसन मंटो
औलाद
ये औलाद न होने के दुख में पागल हो गई एक औरत की कहानी है। ज़ुबैदा की शादी के बाद ही उसके बाप की मौत हो गई तो वह अपनी माँ को अपने घर ले आई। माँ-बेटी एक साथ रहने लगीं तो माँ को इस बात की चिंता हुई कि उसकी बेटी को अभी तक बच्चा क्यों नहीं हुआ। बच्चे के लिए माँ ने बेटी का हर तरह का इलाज कराया, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। माँ दिन-रात उसे औलाद न होने के ताने देती रहती है तो उसका दिमाग़़ चल जाता है और हर तरफ़ उसे बच्चे ही नज़र आने लगते हैं। उसके इस पागलपन को देखकर उसका शौहर एक नवजात शिशु को उसकी गोद में लाकर डाल देता है। जब उसके लिए उसकी छातियों से दूध नहीं उतरता है तो वह उस्तरे से अपनी छातियों को काटती जिससे उसकी मौत हो जाती है।
सआदत हसन मंटो
यज़ीद
करीम दादा एक ठंडे दिमाग़ का आदमी है जिसने तक़सीम के वक़्त फ़साद की तबाहियों को देखा था। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान जंग के तानाज़ुर में यह अफ़वाह उड़ती है कि हिन्दुस्तान वाले पाकिस्तान की तरफ़ आने वाले दरिया का पानी बंद कर रहे हैं। इसी बीच उसके यहाँ एक बच्चे का जन्म होता है जिसका नाम वह यज़ीद रखता है और कहता है कि उस यज़ीद ने दरिया बंद किया था, यह खोलेगा।
सआदत हसन मंटो
अपने दुख मुझे दे दो
कहानी एक ऐसे जोड़े की दास्तान बयान करती है, जिसकी नई-नई शादी हुई है। सुहागरात में शौहर के दुखों को सुनकर बीवी उसके सभी दुख माँग लेती है। मगर वह उससे कुछ नहीं माँगता है। बीवी ने घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है। उम्र के आख़िरी पड़ाव पर एक रोज़ शौहर को जब इस बात का एहसास होता है तो वह उससे पूछता है कि उसने ऐसा क्यों किया? वह कहती है कि मैंने तुमसे तुम्हारे सारे दुख माँग लिए थे मगर तुमने मुझसे मेरी खुशी नहीं माँगी। इसलिए मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकी।
राजिंदर सिंह बेदी
आमिना
यह कहानी दौलत की हवस में रिश्तों की ना-क़द्री और इंसानियत से वंचित कुकर्म कर गुज़रने वाले व्यक्तियों के अंजाम को पेश करती है। दौलत की लालची सौतेली माँ के सताये हुए चंदू और बिंदू को जब क़िस्मत नवाज़ती है तो वो दोनों भी अपने मुश्किल दिन भूल कर रिश्तों की पवित्रता को मजरुह करने पर आमादा हो जाते हैं। चंदू अपने भाई बिंदू के बहकावे में आकर अपनी बीवी और बच्चे को सिर्फ़ दौलत की हवस में छोड़ देता है। जब दौलत ख़त्म हो जाती है और नशा उतरता है तो वह अपनी बीवी के पास वापस जाता है। उसका बेटा उसे उसी दरिया के पास ले जाता है जहाँ चंदू की सौतेली माँ ने डूबने के लिए उन दोनों भाइयों को छोड़ा था और बताता है कि यहाँ पर है मेरी माँ।
सआदत हसन मंटो
आपा
कहानी एक ऐसी लड़की की दास्तान बयान करता है जो जले हुए उपले की तरह है। बाहर से राख का ढ़ेर मगर अंदर चिंगारियाँ हैं। घर के कामों में बंधी उसकी ज़िंदगी ख़ामोशी से गुज़र रही थी कि उसकी फुप्पो का बेटा तसद्दुक़ उनके यहाँ रहने चला आया। वह उसे पसंद करने लगी और उसकी फ़रमाइशों के मुताबिक़ ख़ुद को ढालती चली गई। मगर जब जीवन साथी चुनने की बारी आई तो तसद्दुक़ ने उसे छोड़कर सज्जो बाजी से शादी कर ली।
मुमताज़ मुफ़्ती
बदसूरती
यह दो बहनों, हामिदा और साजिदा की कहानी है। साजिदा बहुत ख़ूबसूरत है, जबकि हामिदा बहुत बदसूरत है। साजिदा को एक लड़के से मोहब्बत हो जाती है, तो हामिदा को बहुत दुःख होता है। इस बात को लेकर उन दोनों के बीच झगड़ा भी होता है, पर फिर दोनों बहनें सुलह कर लेती है और साजिदा की शादी हामिद से हो जाती है। एक साल बाद साजिदा अपने शौहर के साथ हामिदा से मिलने आती है। रात को कुछ ऐसा होता है कि सुबह होते ही हामिद साजिदा को तलाक़़ दे देता है और कुछ अरसे बाद हामिदा से शादी कर लेता है।
सआदत हसन मंटो
इश्क़िया कहानी
यह इश्क़़ में गिरफ़्तार हो जाने की ख़्वाहिश रखने वाले एक ऐसे नौजवान जमील की कहानी है जो चाहता है कि वह किसी लड़की के इश्क़ में बुरी तरह गिरफ़्तार हो जाए और फिर उससे शादी कर ले। इसके लिए वह बहुत सी लड़कियों का चयन करता है। उनसे मिलने, उन्हें ख़त लिखने की योजनाएं बनाता है, लेकिन अपनी किसी भी योजना पर वह अमल नहीं कर पाता। आख़िर में उसकी शादी तय हो जाती है, और विदाई की तारीख़ भी निर्धारित हो जाती है। उसी रात उसकी ख़ाला-ज़ाद बहन आत्महत्या कर लेती है, जो जमील के इश्क़़ में बुरी तरह गिरफ़्तार होती है।
सआदत हसन मंटो
उल्लू का पट्ठा
क़ासिम एक दिन सुबह सो कर उठता है तो उसके अंदर यह शदीद ख्वाहिश जागती है कि वह किसी को उल्लू का पठ्ठा कहे। बहुत से ढंग और अवसर सोचने के बाद भी वह किसी को उल्लू का पठ्ठा नहीं कह पाया और फिर दफ़्तर के लिए निकल पड़ता है। रास्ते में एक लड़की की साड़ी साईकिल के पहिये में फंस जाती है, जिसे वह निकालने की कोशिश करता है लेकिन लड़की को नागवार गुज़रता है और वह उसे "उल्लू का पठ्ठा" कह कर चली जाती है।
सआदत हसन मंटो
इश्क़-ए-हक़ीक़ी
अख़्लाक़ नामी नौजवान को सिनेमा हाल में परवीन नाम की एक लड़की से इश्क़ हो जाता है जिसके घर में सख़्त पाबंदियाँ हैं। अख़्लाक़ हिम्मत नहीं हारता और उन दोनों में ख़त-ओ-किताबत शुरू हो जाती है और फिर एक दिन परवीन अख़्लाक़ के साथ चली आती है। परवीन के गाल के तिल पर बोसा लेने के लिए अख़्लाक़ जब आगे बढ़ता है तो बदबू का एक तेज़ भभका अख़्लाक़ के नथुनों से टकराता है और तब उसे मालूम होता है कि परवीन के मसूढ़े सड़े हुए हैं। अख़्लाक़ उसे छोड़कर अपने दोस्त के यहाँ लायलपुर चला जाता है। दोस्त के गै़रत दिलाने पर वापस आता है तो परवीन को मौजूद नहीं पाता है।
सआदत हसन मंटो
नींद नहीं आती
एक ऐसे नौजवान की कहानी है जो ग़रीबी, बेबसी, भटकाव और अर्धस्वप्नावस्था की चेतना का शिकार है। वह अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारने की हर मुमकिन कोशिश करता है मगर कामयाब नहीं हो पाता। रात में चारपाई पर लेटे हुए मच्छरों की भिनभिनाहट और कुत्तों के भौंकने की आवाज़ सुनता हुआ वह अपनी बीती ज़िंदगी के कई वाक़िआत याद करता है और सोचता है कि उसने इस ज़िंदगी को बेहतर करने के लिए कितनी जद्द-ओ-जहद की है।
सज्जाद ज़हीर
भंगन
एक संदेह के कारण पति-पत्नी के बीच हुई तकरार पर आधारित कहानी। वह जब रात को पत्नी के पास जाता है तो पत्नी नाराज़़गी में उसे अपने से दूर कर देती है। वह उसे मनाने की कोशिश करता है, पर वह लगातार उससे नाराज़़ रहती है। आख़िर में जब वह पूछती है कि उसने सुबह भंगन को अपनी बाँहों में क्यों लिया था तो पति बताता है कि वह गर्भवती थी और बेहोश हो कर गिरने वाली थी। उसने तो बस उसे गिरने से बचाने के लिए सँभाल लिया था। पत्नी यह सुनकर ख़ुश हो गई।
सआदत हसन मंटो
ख़ोरेश्ट
यह कहानी समाज के एक नाज़ुक पहलू को सामने लाता है। सरदार ज़ोरावर सिंह, सावक कापड़िया का लंगोटिया यार है। अपना अक्सर वक़्त उसके घर पर गुज़ारता है। दोस्त होने की वजह से उसकी बीवी ख़ुर्शीद से भी बे-तकल्लुफ़ी है। सरदार हर वक़्त ख़ुरशीद की आवाज़ की तारीफ़ करता है और उसके लिए मुनासिब स्टूडियो की तलाश में रहता है। अपने उन उपायों से वो ख़ुर्शीद को राम कर के उससे शादी कर लेता है।
सआदत हसन मंटो
फ़रिश्ता
"ज़िंदगी की आज़माईशों से परेशान शख़्स की नफ़्सियाती कैफ़ियत पर मब्नी कहानी। मौत के बिस्तर पर पड़ा अता-उल-अल्लाह अपने परिवार की मजबूरियों को देखकर परेशान हो जाता है और अर्धमूर्च्छित अवस्था में देखता है कि उसने सबको मार डाला है यानी जो काम वो अस्ल में नहीं कर सकता उसे ख़्वाब में अंजाम देता है।"
सआदत हसन मंटो
अब्जी डूडू
यह पति-पत्नी के बीच रात में शारीरिक संबंधों को लेकर होने वाली नोक-झोंक पर आधारित कहानी है। पति पत्नी के साथ सोना चाहता है, जबकि पत्नी उसे लगातार इनकार करती रहती है। उसके इनकार को इक़रार में बदलने के लिए पति उसे हर तरह का प्रलोभन देता है, पर वह मानती नहीं। आख़िर में वह अपना आख़िरी दाँव चलता है और उसी में पत्नी को पस्त कर देता है।
सआदत हसन मंटो
हजामत
"मियाँ-बीवी की नोक झोंक पर मब्नी मज़ाहिया कहानी है, जिसमें बीवी को शौहर के बड़े बालों से डर लगता है लेकिन इस बात को ज़ाहिर करने से पहले हज़ार तरह के गिले-शिकवे करती है। शौहर कहता है कि बस इतनी सी बात को तुमने बतंगड़ बना दिया, मैं जा रहा हूँ। बीवी कहती है कि ख़ुदा के लिए बता दीजिए कहाँ जा रहे हैं वर्ना मैं ख़ुदकुशी कर लूँगी। शौहर जवाब देता है नुसरत हेयर कटिंग सैलून।"
सआदत हसन मंटो
ख़ालिद मियां
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपने बेटे की मौत के वहम में मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है। ख़ालिद मियाँ एक बहुत तंदुरुस्त और ख़ूबसूरत बच्चा था। कुछ ही दिनों में वह एक साल का होने वाला था, पर उसकी सालगिरह से दो दिन पहले ही उसके बाप मुम्ताज़ को यह संदेह होने लगा था कि ख़ालिद एक साल का होने से पहले ही मर जाएगा। हालाँकि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ था और हँस-खेल रहा था। मगर जैसे-जैसे वक़्त बीतता जाता था, मुमताज़ का संदेह और भी गहरा होता जाता था।
सआदत हसन मंटो
निक्की
यह अफ़साना एक ऐसी औरत की दास्तान को बयान करता है जिसका मर्द हर वक़्त उसे मारा-पीटा करता था। फिर उसने एक तवायफ़ के कहने पर उसे तलाक़ दे दी। मर्द की पिटाई के बाद उस औरत में जो ग़ुस्सा और नफ़रत जमा हो गई थी वह नए मोहल्ले में आकर निकलने लगी। वह बात-बात पर पड़ोसियों से उलझने लगी, उनसे लड़ने लगी और फिर आगे चलकर उसने इस हुनर को अपना पेश बना लिया, अपने लड़ने की फ़ीस तय कर दी। लड़ना-झगड़ना उसके ख़ून में ऐसा रच-बस गया कि उसे दौरे पड़ने लगे और पड़ोसियों को गाली बकते हुए ही उसकी मौत हो गई।
सआदत हसन मंटो
इफ़्शा-ए-राज़
यह कहानी पति-पत्नी के बीच पंजाबी भाषा के एक गीत को लेकर हुए झगड़े पर आधारित है। पति एक दिन नहाते हुए पंजाबी का कोई गीत गाने लगा तो पत्नी ने उसे टोक दिया, क्योंकि उसे पंजाबी भाषा समझ में नहीं आती थी। इस पर पति ने उसे कई ढंग से समझाने की कोशिश की मगर बात नहीं बनी। तभी नौकर डाक लेकर आ गया। पत्नी ने पति की इजाज़त के बिना डाक खोली तो वह एक महिला का पत्र था, जिसमें उसी गीत की कुछ लाइनें लिखी हुई थीं, जो उसका पति कुछ देर पहले गुनगुना रहा था।
सआदत हसन मंटो
शादाँ
यह कहानी अमीर घरों के मर्दों द्वारा उनके यहाँ काम करने वाली ग़रीब, पीड़ित और कमसिन लड़कियों के यौन शोषण पर आधारित है। ख़ान बहादुर मोहम्मद अस्लम ख़ान बहुत संतुष्ट और ख़ुशहाल ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। उनके तीन बच्चे थे, जो स्कूल के बाद सारा दिन घर में शोर-गु़ल मचाते रहते थे। उन्हीं दिनों एक ईसाई लड़की शादां उनके घर में काम करने आने लगी। वह भी बच्ची थी, पर अचानक ही उसमें जवानी के रंग-ढंग दिखने लगे। फिर एक रोज़ ख़ान साहब को शादां के बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। शादां तो उसी रोज़ मर गई थी और ख़ान साहब भी सबूतों के अभाव में बरी हो गए थे।
सआदत हसन मंटो
किताब का ख़ुलासा
यह कहानी एक बाप के अपनी बेटी के साथ नाजायज़ तअल्लुक़़ात पर आधारित है। बिमला की माँ बहुत पहले ही मर गई थी। वह अपने पिता के साथ अकेली रहा करती थी। दिन में वह अनवर के घर उसकी बहन के पास सिलाई-कढ़ाई का काम सीखने आया करती थी। उसे अनवर से मोहब्बत थी, पर वह उसका इज़हार नहीं कर पाती थी। एक बार वह शदीद बीमार हुई और उसने अनवर के घर आना छोड़ दिया। बाद में पता चला कि उसके यहाँ मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ था, जो उसी के बाप का था।
सआदत हसन मंटो
परेशानी का सबब
यह अफ़साना एक ऐसे शख़्स की दास्तान बयान करता है जो अपने एक दोस्त के साथ घूमने जा रहा होता है। रास्ते में उसका दोस्त एक वेश्या के घर रुक जाता है। वहाँ उस वेश्या के साथ उनका झगड़ा हो जाता है। वेश्या उन सब लोगों के ख़िलाफ़़ मुक़द्दमा कर देती है। इस मुकद्दमे के चलते वह एक ऐसी परेशानी में घिर जाता है जिससे निकलने का उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आता।
सआदत हसन मंटो
मेरा और उसका इंतिक़ाम
यह एक शोख़, चंचल और चुलबुली लड़की की कहानी है, जो सारे मोहल्ले में हर किसी से मज़ाक़ करती फिरती है। एक दिन जब वह अपनी सहेली बिमला से मिलने गई तो वहाँ बिमला के भाई ने उससे इंतक़ाम लेने के लिए झूठ बोलकर घर में बंद कर लिया और उसके गीले होंटो को चूम लिया। वहाँ वह शाम तक बंद रही। कुछ दिनों बाद जब बिमला को मौक़ा मिला तो वह भी अपना इंतक़ाम लेने से पीछे नहीं रही।
सआदत हसन मंटो
तक़ी कातिब
अफ़साना एक ऐसे मौलाना की दास्तान बयान करता है जो अपने जवान बेटे की शादी के ख़िलाफ़़ है। जवानी में उसकी बीवी की मौत हो गई थी और उसने ही बेटे को माँ और बाप दोनों बनकर पाला था। मगर अब वह जवान हो गया था और उसे एक औरत की शदीद ज़रूरत थी। पर मौलाना थे कि उसकी शादी ही नहीं करना चाहते थे। जहाँ भी उसकी शादी की बात चलती, वह किसी न किसी बहाने से उसे रुकवा देते। आख़िर में उसने मौलाना के ख़िलाफ़़ जाकर शादी कर ली और उन्हें छोड़कर दिल्ली चला गया। वहाँ जाकर उसने अपने मौलवी पिता की ख़ैरियत जानने के लिए ख़त लिखा और साथ ही सलाह दी कि वह भी अपनी शादी कर लें।
सआदत हसन मंटो
रहमत-ए-खु़दा-वंदी के फूल
यह एक ऐसे शराबी शख़्स की कहानी है जो जितना बड़ा शराबी है, उतना ही बड़ा कंजूस है। वह दोस्तों के साथ शराब पीने से बचता है, क्योंकि इससे उसे ज़्यादा रूपये ख़र्च करने पड़ते हैं। लेकिन वह घर में भी नहीं पी सकता, क्योंकि इससे पत्नी के नाराज़़ हो जाने का डर रहता है। इस मुश्किल का हल वह कुछ इस तरह निकालता है कि पेट के दर्द का बहाना कर के दवाई की बोतल में शराब ले आता है और बीवी से हर पंद्रह मिनट के बाद एक ख़ुराक देने के लिए कहता है। इससे उसकी यह मुश्किल तो हल हो जाती है। मगर एक दूसरी मुश्किल उस वक़्त पैदा होती है जब एक रोज़ उसकी पत्नी पेट के दर्द के कारण उसी बोतल से तीन पैग पी लेती है।
सआदत हसन मंटो
तीन में ना तेरह में
यह कहानी पति-पत्नी के बीच होने वाली तकरार पर आधारित है। पत्नी अपने पति से नाराज़़ है और उसके साथ झगड़ा करते हुए वह मुहावरों का इस्तेमाल करती है। पति उसके हर मुहावरे का जवाब देता है और वे दोनों झगड़ते हुए औरत-मर्द के संबंध, शादी और घरेलू ज़रूरियात के बारे में बड़ी दिलचस्प गुफ़्तगू करते जाते हैं।
सआदत हसन मंटो
बीमार
"यह एक जिज्ञासापूर्ण रूमानी कहानी है जिसमें एक औरत लेखक को निरंतर ख़त लिख कर उसकी कहानियों की प्रशंसा करती है और साथ ही साथ अपनी बीमारी का उल्लेख भी करती जाती है जो लगातार शदीद होती जा रही है। एक दिन वो औरत लेखक के घर आ जाती है। लेखक उसके हुस्न पर मुग्ध हो जाता है और तभी उसे मालूम होता है कि वो औरत उसकी बीवी है जिससे डेढ़ बरस पहले उसने निकाह किया था।"
सआदत हसन मंटो
क़ीमे की बजाय बोटियाँ
एक मद्रासी डॉक्टर के दूसरे प्रेम-विवाह की त्रासदी पर आधारित कहानी। वह डॉक्टर बेहद बेतकल्लुफ़ था। अपने दोस्तों पर बेहिसाब ख़र्च किया करता था। तभी उसकी एक औरत से दोस्ती हो गई जो उस से पहले अपने तीन शौहरों को तलाक़़ दे चुकी थी। डॉक्टर ने कुछ अरसे बाद उससे शादी कर ली। मगर जल्द ही उनके बीच झगड़े होने लगे। उस औरत ने अपनी नौकरानियों और उनके शौहरों से डॉक्टर की पिटाई करा दी। बदले में डॉक्टर ने उनके टुकड़े-टुकड़े कर के लोगों को दावत में खिला दिया।
सआदत हसन मंटो
फाहा
इसमें जवानी के आरम्भ में होने वाली शारीरिक परिवर्तनों से बे-ख़बर एक लड़की की कहानी बयान की गई है। आम खाने से गोपाल के फोड़ा निकल आता है तो वो अपने माँ-बाप से छुप कर अपनी बहन निर्मला की मदद से फोड़े पर फाहा रखता है। निर्मला इस पूरी प्रक्रिया को बहुत ध्यान और दिलचस्पी से देखती है और गोपाल के जाने के बाद अपने सीने पर फाहा रखती है।
सआदत हसन मंटो
आलू
पेट की आग किस तरह इंसान को अपना दृष्टिकोण बदलने पर मजबूर करती है और भले-बुरे में तमीज़ करने में असमर्थ हो जाता है, इस कहानी का मुख्य बिंदु है। लखी सिंह एक बहुत ही ग़रीब कामरेड था जो बैलगाड़ियों और छकड़ों में अटके रह गए आलू जमा करके घर ले जाता था। एक दिन कमेटी की तरफ़ से बैलगाड़ियों के लिए न्यू मेटक टायरों का बिल पास हो गया, जिसके विरोध में गाड़ी बानों ने हड़ताल की और हड़ताल के नतीजे में लखी सिंह उस दिन बिना आलूओं के घर पहुँचा। उसकी पत्नी बसंतो ने हर मौक़े पर एक कामरेड की तरह लखी सिंह का साथ दिया था, आज बिफर गई, और उसने लखी सिंह से पूछा कि उसने हड़ताल का विरोध क्यों न किया? लखी सिंह सोचने लगा क्या बसंतो भी प्रतिक्रियावादी हो गई है?
राजिंदर सिंह बेदी
शलजम
इस कहानी में रात को देर से घर आने वाले शौहरों की बीवी के साथ होने वाली बहस को दिखाया गया है। वह रात में तीन बजे आया था। जब उसने खाना माँगा तो बीवी ने देने से इंकार कर दिया। इस पर उन दोनों के बीच बहस होने लगी। दोनों अपनी-अपनी दलीलें देने लगे। कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ। बहस हो ही रही थी कि अंदर से नौकर आया और कहने लगा कि खाना तैयार है। खाने के बारे में सुनते ही मियाँ-बीवी के बीच सुलह हो गई।
सआदत हसन मंटो
मुलाक़ाती
छोटी-छोटी बातों को लेकर मियाँ-बीवी के बीच होने वाले वाद-विवाद को इस कहानी में दिखाया गया है। सुबह आने वाले किसी मुलाक़ाती पर संदेह करती हुई बीवी अपने शौहर से पूछती है कि सुबह उनसे कौन मिलने आया था? बीवी के इस सवाल के जवाब में शौहर उसके सामने हर तरह की दलील पेश करता है, मगर बीवी को किसी बात पर यक़ीन नहीं आता।
सआदत हसन मंटो
माँ
यह एक देहाती लड़की की कहानी है, जिसकी शादी एक अमीर शहरी लड़के से हो जाती है। लड़की बहुत सीधी और शरीफ़ है इसलिए लड़के की ज़िंदगी में मिसफिट सी रहने लगती है। इस से तंग आकर लड़का दूसरी शादी कर लेता है। दूसरी बीवी पहली बीवी और उसकी बेटी के साथ लगातार मारपीट और उनका शोषण करती है। जिससे परेशान हो कर एक रोज़ वह अपनी बेटी के साथ घर से निकल जाती है। और घर के बग़ीचे में अपनी बच्ची को सीने से लगाए सख़्त सर्दी में ठिठुरती हुई यह औरत मर जाती है।
मिर्ज़ा अदीब
नफ़रत
यह एक ऐसी औरत की कहानी है जिसकी एक मामूली से वाक़िआ ने पूरी ज़िंदगी ही बदल दी। उसे ज़र्द रंग जितना पसंद था उतना ही बुर्क़ा ना-पसंद। उस दिन जब वह अपनी ननद के साथ एक सफ़र पर जा रही थी तो उसने ज़र्द रंग की ही साड़ी पहन रखी थी और बुर्क़े को उतार कर एक तरफ़ रख दिया था। मगर लाहौर स्टेशन पर बैठी हुई जब वे दोनों गाड़ी का इंतेज़ार कर रही थी वहाँ उन्होंने एक मैले-कुचैले आदमी की पसंद-नापसंद सुनी तो उन्होंने ख़ुद को पूरी तरह ही बदल लिया।