मिस्टर मोईनुद्दीन
सामाजिक रसूख़ और साख के गिर्द घूमती यह कहानी मोईन-नामी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन पर आधारित है। मोईन ने ज़ोहरा से उसके माँ-बाप के ख़िलाफ़ जाकर शादी की थी और फिर कराची में आ बसा था। कराची में उसकी बीवी का एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ सम्बंध हो जाता है। मोईन इस बारे में जानता है लेकिन अपनी मोहब्बत और सामाजिक साख के कारण वह बीवी को तलाक नहीं देता और उसे प्रेमी के साथ रहने की अनुमति दे देता है। कुछ अरसे बाद जब प्रेमी की मौत हो जाती है तो मोईन भी उसे तलाक दे देता है।
सआदत हसन मंटो
क़ैदख़ाना
एक ऐसे शख़्स की कहानी, जो तन्हा है और वक़्त गुज़ारी के लिए हर रोज शाम को शराब-ख़ाने में जाता है। वहाँ अपने रोज़ के साथियों से उसकी बातचीत होती है और फिर वह पेड़ों के झुरमुट के पीछे छुपे अपने मकान में आ जाता है। मकान उसे किसी क़ैदख़ाने की तरह लगता है। वह मकान से निकल पड़ता है और क़ब्रिस्तान, पहाड़ियों और दूसरी जगहों से गुज़रते, लोगों के मिलते और उनके साथ वक़्त गुज़ारते हुए वह इस नतीजे पर पहुँचता है कि यह ज़िंदगी ही एक क़ैदख़ाना है।
अहमद अली
बुर्क़े
कहानी में बुर्क़े की वजह से पैदा होने वाली मज़हका-खेज़ सूरत-ए-हाल को बयान किया गया है। ज़हीर नामक नौजवान को अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की से इश्क़ हो जाता है। उस घर में तीन लड़कियाँ हैं और तीनों बुर्क़े का इस्तेमाल करती हैं। ज़हीर ख़त किसी और लड़की को लिखता है और हाथ किसी का पकड़ता है। उसी चक्कर में एक दिन उसकी पिटाई हो जाती है और पिटाई के तुरंत बाद उसे एक रुक़्क़ा मिलता है कि तुम अपनी माँ को मेरे घर क्यों नहीं भेजते, आज तीन बजे सिनेमा में मिलना।
सआदत हसन मंटो
सासान-ए-पंजुम
यह कहानी निकृष्ट लोगों के पतन का मातम है। सासान-ए-पंजुम के ज़माने की इमारत पर अंकित इबारत पढ़ने और उसे समझने के लिए पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं। वो अपनी तमामतर कोशिशों के बावजूद इबारत पढ़ने में कामयाब नहीं होते। तहक़ीक़ के बाद ये साबित कर दिया जाता है कि सासान-ए-पंजुम का वुजूद फ़र्ज़ी है।
नैयर मसूद
वक़ार महल का साया
वक़ार महल के मार्फ़त एक घर और उसमें रहने वाले लोगों के टूटते-बनते रिश्तों की दास्तान को बयान किया गया है। वक़ार महल कॉलोनी के बीच में स्थित है। हर कॉलोनी वाला उससे नफ़रत भी करता है और एक तरह से उस पर फ़ख्र भी। वक़ार महल को पिछले कई सालों से गिराया जा रहा है और वह अब भी जस का तस खड़ा है। मज़दूर दिन-रात काम में लगे ठक-ठक करते रहते हैं। उनकी ठक-ठक की उस आवाज़ से मॉर्डन ख़्याल की मॉर्डन लड़की ज़फ़ी के बदन में सिहरन सी होने लगती है और यही सिहरन उसे कई लोगों के पास ले जाती है और उनसे दूर भी करती है।
मुमताज़ मुफ़्ती
इंक़िलाब-पसंद
"इस कहानी का मुख्य पात्र सलीम एक नैसर्गिक क्रांतिकारी है। वो ब्रह्माण्ड की हर वस्तु यहाँ तक कि अपने कमरे की रख-रखाव में भी इन्क़लाब देखना पसंद करता है। वो दुनिया से ग़रीबी, बेरोज़गारी, अन्याय और शोषण को ख़त्म करना चाहता है और इसके लिए वो बाज़ारों में भाषण करता है लेकिन उसे पागल समझ कर पागलख़ाने में डाल दिया जाता है।"
सआदत हसन मंटो
शाही रक़्क़ासा
एक ऐसी रक़्क़ासा की कहानी जो महल की ज़िंदगी से ऊब कर आज़ादी के लिए बेचैन रहती है। वह जब भी बाहर निकलती है वहाँ लोगों को हँसते-गाते, अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी गुज़ारते देखती है तो उसे अपनी ज़िंदगी से नफ़रत होने लगती है। उसे वह महल किसी सोने के पिंजरे की तरह लगता है और वह खु़द को उसमें क़ैद किसी चिड़िया की तरह तसव्वुर करती है।
मिर्ज़ा अदीब
नया साल
यह ज़िंदगी से संघर्ष करते एक अख़बार के एडिटर की कहानी है। हालाँकि उसे उस अख़बार से दौलत मिल रही थी और न ही शोहरत। फिर भी वह अपने काम से ख़ुश था। उसके विरोधी उसके ख़िलाफ़ क्या कहते हैं? लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं? या फिर दुनिया उसकी राह में कितनी मुश्किलें पैदा कर रही है, इससे उसे कोई मतलब नहीं था। उसे तो बस मतलब है अपने रास्ते में आने वाली हर रुकावट को दूर करने से। यही काम वह पिछले चार साल से करता आ रहा था और अब जब नए साल का आग़ाज़ होने वाला है तो वह उससे भी मुक़ाबले के लिए तैयार है।