खुल बंधना
पूर्णमासी को एक मंदिर में लगने वाले मेले के गिर्द घूमती यह कहानी स्त्री विमर्श पर बात करती है। मंदिर में लगने वाला मेला ख़ास तौर से औरतों के लिए ही है, जहाँ वह परिवार में चल रहे झगड़ों, पतियों, सास और ननदों की तरफ़ से लगाए बंधनों के खुलने की मन्नतें माँगती हैं। साथ ही वे परिवार और समाज में औरत की स्थिति पर भी बातचीत करती जाती हैं।
मुमताज़ मुफ़्ती
दो मुंही
कहानी दोहरे चरित्र से जूझती एक ऐसी औरत के गिर्द घूमती है, जो बाहरी तौर पर तो कुछ और दिखाई देती है मगर उसके अंदर कुछ और ही चल रहा होता है। अपनी इस शख़्सियत से परेशान वह बहुत से डॉक्टरों से इलाज कराती है मगर कोई फ़ायदा नहीं होता। फिर उसकी एक सहेली उसे त्याग क्लीनिक के बारे में बताती है और वह अपने शौहर से हिल स्टेशन पर घूमने का कहकर अकेले ही त्याग क्लीनिक में इलाज कराने के लिए निकल पड़ती है।
मुमताज़ मुफ़्ती
समय का बंधन
एक बाई की रुहानी ज़िंदगी के गिर्द घूमती कहानी, जो कोठे पर मुजरा किया करती थी। मगर एक रोज़ जब वह ठाकुर के यहाँ बैठक के लिए गई तो उसने वहाँ ख़्वाजा पिया मोरी रंग दे चुनरिया गीत गाया। इस गीत का उस पर ऐसा असर हुआ कि उसने उसकी पूरी ज़िंदगी को ही बदल दिया। वह बेक़रार रहने लगी। उस बेक़रारी से छुटकारा पाने के लिए उसने ठाकुर से शादी कर ली। मगर इसके बाद भी उसे सुकून नहीं मिला और वह ख़ुद की तलाश में निकल गई।