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नक़ाब पर चित्र/छाया शायरी

नक़ाब को क्लासिकी शायरी

में बहुत दिल-चस्प तरीक़ों से मौज़ू बनाया गया है। महबूब है कि अपने हुस्न को नक़ाब से छाए रहता है और आशिक़-ए-दीदार को तरसता है और कभी ऐसा भी होता है कि नक़ाब भी महबूब के हुस्न को छुपा नहीं पाता और उसे छुपाए रखने की तमाम कोशिशें ना-काम हो जाती हैं। ऐसे और भी मज़ेदार गोशे नक़ाब पर की जाने वाली शायरी के इस इंतिख़ाब में हैं। आप पढ़िए और लुत्फ़ लीजिए।

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