बूढ़ी काकी
‘बूढ़ी काकी’ मानवीय भावना से ओत-प्रोत की कहानी है। इसमें उस समस्या को उठाया गया है जिसमें परिवार के बाक़ी लोग घर के बुज़ुर्गों से धन-दौलत लेने के लिए उनकी उपेक्षा करने लगते हैं। इतना ही नहीं उनका तिरस्कार किया जाता है। उनका अपमान किया जाता है और उन्हें खाना भी नहीं दिया जाता है। इसमें भारतीय मध्यवर्गीय परिवारों में होने वाली इस व्यवहार का वीभत्स चित्र उकेरा गया है।
प्रेमचंद
एक बाप बिकाऊ है
कहानी अख़बार में छपे एक इश्तिहार से शुरू होती है जिसमें एक बाप का हुलिया बताते हुए उसके बिकने की सूचना होती है। इश्तिहार छपने के बाद कुछ लोग उसे खरीदने पहुँचते हैं मगर जैसे-जैसे उन्हें उसकी ख़ामियों के बारे में पता चलता है वे ख़रीदने से इंकार करते जाते हैं। फिर एक दिन अचानक एक बहुत बड़ा कारोबारी उसे ख़रीद लेता है और उसे अपने घर ले आता है। जब उसे पता चलता है कि ख़रीदा हुआ बाप एक ज़माने में बहुत बड़ा गायक था और एक लड़की के साथ उसकी दोस्ती भी थी तो कहानी एक दूसरा रुख़ इख़्तियार कर लेती है।
राजिंदर सिंह बेदी
कशमकश
"नैतिक मूल्यों के पतन का मातम है। बूढ्ढा मोहना दो हफ़्तों से बीमार है, अक्सर ऐसा लगता है कि वो मर जाएगा लेकिन फिर जी उठता है। उसके तीनों बेटे चाहते हैं कि वो जल्द से जल्द मर जाये। दो हफ़्ते बाद जब वो मर जाता है तो उसका जुलूस निकाला जाता है और उसके जुलूस से मीठे चने उठा कर एक औरत अपने बेटे को देती है और कहती है कि खा ले तेरी भी उम्र इतनी लंबी हो जाएगी। औरत को देखकर ट्राम का ड्राइवर, चेकर और एक बाबू भी दौड़ कर उन से छोहारे आदि लेकर खाते हैं।"