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बाल कविता पर लोरियाँ

कला और कलाकार की कल्पना-शक्ति

बहुत बलवान होती है। कल्पना-शक्ति के सहारे ही कलाकार नई दुनिया की सैर करता है और गुज़रे हुए वक़्त की यादों को भी शिद्दत के साथ अपनी रचना में बयान करता है। बचपन के सुंदर और कोमल एहसास,उसकी मासूमियत और सच्चे-पन को अपनी रचना में चित्रित करना आसान नहीं होता। लेकिन शायरी जैसी विधा में बचपन के इस एहसास की तर्जुमानी भी की गई है। शायरी या कोई भी रचनात्मक शैली की अपनी सीमा है। इसलिए भाषा की सतह पर बचपन के एहसाह को बयान करने में शायरी की अपनी लाचारी भी है ।बचपन के एहसास से ओत-प्रोत शायरी हमारी इसी नाचारी का बदल है।

लोरी

साहिर लुधियानवी

माँ की लोरी

सीमाब अकबराबादी

लोरी

आदिल असीर देहलवी

सो जा मेरे प्यारे सो जा

सरशार सिद्दीक़ी

चंदा सोया सो गए तारे

मोहसिन बाएशिन हसरत

लोरियाँ और परियाँ

कैफ़ अहमद सिद्दीकी

सो गई तितली सो गई मैना

हशमत कमाल पाशा

रोएगा न रोएगा

अहमद नदीम मोरसंडवी

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