रिश्वत
एक नौजवान के ज़िंदगी के तल्ख़ तज़ुर्बों पर आधारित कहानी है। जब उसने बी. ए पास किया तो उसके बाप का इरादा था कि वह उसे उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजेगा। इसी बीच उसके बाप को जुए की लत लग गई और वह सब कुछ जुए में हारकर मर गया। नौजवान ख़ाली हाथ दुनिया से संघर्ष करने लगा। वह जहाँ भी नौकरी के लिए जाता, हर जगह उससे रिश्वत माँगी जाती। आख़िर में परेशान हो कर उसने अल्लाह को एक ख़त लिखा और उस ख़त के साथ रिश्वत के तौर पर वे तीस रूपये भी डाल दिए जो उसने मज़दूरी कर के कमाए थे। उसका यह ख़त एक अख़बार के एडिटर के पास पहुँच जाता है, जहाँ से उसे दो सौ रूपये माहवार की तनख़्वाह पर नौकरी के लिए बुलावा आ जाता है।
सआदत हसन मंटो
फ़ासले
एक ऐसे बूढ़े शख़्स की कहानी जो रिटायरमेंट के बाद घर में तन्हा रहते हुए बोर हो गया है और सुकून की तलाश में है। एक दिन वह घर से बाहर निकला तो गली में खेलते बच्चों को देख कर और सामान बेचते दुकानदारों से बात करना उसे अच्छा लगा। इस तरह वह वहाँ रोज़ आने लगा और अपना वक़्त गुज़ारने लगा। एक दिन इंग्लैंड से वापस आया उसका बेटा उसे अपने साथ ले जाता है। काफ़ी वक़्त के बाद जब वह वापस आता है और फिर से अपनी उस गली में निकलता है तो उसे एहसास होता है कि उसके लिए लोगों के मिज़ाज में तब्दीली आ गई है, शायद वह उनके लिए एक अजनबी बन चुका था।
मिर्ज़ा अदीब
फाहा
इसमें जवानी के आरम्भ में होने वाली शारीरिक परिवर्तनों से बे-ख़बर एक लड़की की कहानी बयान की गई है। आम खाने से गोपाल के फोड़ा निकल आता है तो वो अपने माँ-बाप से छुप कर अपनी बहन निर्मला की मदद से फोड़े पर फाहा रखता है। निर्मला इस पूरी प्रक्रिया को बहुत ध्यान और दिलचस्पी से देखती है और गोपाल के जाने के बाद अपने सीने पर फाहा रखती है।
सआदत हसन मंटो
माँ का दिल
कहानी एक फ़िल्म के एक सीन की शूटिंग के गिर्द घूमती है, जिसमें हीरो को एक बच्चे को गोद में लेकर डायलॉग बोलना होता है। स्टूडियों में जितने भी बच्चे लाए जाते हैं हीरो किसी न किसी वजह से उनके साथ काम करने से मना कर देता है। फिर बाहर झाड़ू लगा रही स्टूडियों की भंगन को उसका बच्चा लाने के लिए कहा जाता है, जो कई दिन से बुख़ार में तप रहा होता है। पैसे न होने के कारण वह उसे अच्छी डॉक्टर को भी नहीं दिखा पाती। हीरो बच्चे के साथ सीन शूट करा देता है। मगर जब भंगन स्टूडियों से पैसे लेकर उसे डॉक्टर के पास लेकर जाती है तब तक बच्चा मर चुका होता है।
ख़्वाजा अहमद अब्बास
ओल्ड एज होम
आराम-ओ-सुकून का तालिब एक ऐसे बूढ़े शख़्स की कहानी जो सोचता था कि रिटायरमेंट के बाद इत्मीनान से अपने घर में रहेगा, मज़े से अपनी पसंद की किताबें पढ़ेगा। लेकिन साथ रह रहे घर के दूसरे लोगों के अलावा अपने पोते-पोतियों के शोर-शराबे से उसे ऊब होने लगी और वह घर छोड़कर ओल्ड एज होम में रहने चला जाता है। वहाँ अपने से पहले रह रहे एक शख़्स का एक ख़त उसे मिलता है जिसमें वह अपने बच्चों को याद करके रोता है। उस ख़त को पढ़कर उसे अपने बच्चों की याद आती है और वह वापस घर लौट जाता है।
मिर्ज़ा अदीब
आधे चेहरे
कहानी एक ऐसे नौजवान के गिर्द घूमती है जो मिस आईडेंटिटी का शिकार है। एक दिन वह एक डॉक्टर के पास आता है और उसे अपनी हालत बताते हुए कहता है कि जब वह मोहल्ले में होता है तो हमीद होता है मगर जब वह कॉलेज में जाता है तो अख़्तर हो जाता है। अपनी यह कैफ़ियत उसे कभी पता न चलती अगर बीते दिन एक हादसा न होता। तभी से उसकी समझ नहीं आ रहा है कि वह कौन है? वह डॉक्टर से सवाल करता है कि वह उसे बताए कि वह हक़ीक़त में क्या है?
मुमताज़ मुफ़्ती
अनार कली
सलीम नाम के एक ऐसे नौजवान की कहानी जो ख़ुद को शहज़ादा सलीम समझने लगता है। उसे कॉलेज की एक ख़ूबसूरत लड़की से मोहब्बत हो जाती है, पर वह लड़की उसे भाव नहीं देती। उसकी मोहब्बत में दीवाना हो कर वह उसे अनारकली का नाम देता है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसके माँ-बाप ने उसी नाम की लड़की से उसकी शादी तय कर दी है। शादी की ख़बर सुनकर वह दीवाना हो जाता है और तरह-तरह के ख़्वाब देखने लगता है। सुहागरात को जब वह दुल्हन का घूँघट हटाता है तो उसे पता चलता है कि वह उसी नाम की कोई दूसरी लड़की थी।
सआदत हसन मंटो
हमदोश
"दुनिया की रंगीनी और बे-रौनक़ी के तज़्किरे के साथ इंसान की ख़्वाहिशात को बयान किया गया है। शिफ़ाख़ाने के मरीज़ शिफ़ाख़ाने के बाहर की दुनिया के लोगों को देखते हैं तो उनके दिल में शदीद क़िस्म की ख़्वाहिश अंगड़ाई लेती है कि वो कभी उनके बराबर हो सकेंगे या नहीं। कहानी का रावी एक टांग कट जाने के बावजूद शिफ़ायाब हो कर शिफ़ाख़ाने से बाहर आ जाता है और दूसरे लोगों के बराबर हो जाता है लेकिन उसका एक साथी मुग़ली, जिसे बराबर होने की शदीद तमन्ना थी और जो धीरे धीरे ठीक भी हो रहा था, मौत के मुँह में चला जाता है।"
राजिंदर सिंह बेदी
बूढ़ी काकी
‘बूढ़ी काकी’ मानवीय भावना से ओत-प्रोत की कहानी है। इसमें उस समस्या को उठाया गया है जिसमें परिवार के बाक़ी लोग घर के बुज़ुर्गों से धन-दौलत लेने के लिए उनकी उपेक्षा करने लगते हैं। इतना ही नहीं उनका तिरस्कार किया जाता है। उनका अपमान किया जाता है और उन्हें खाना भी नहीं दिया जाता है। इसमें भारतीय मध्यवर्गीय परिवारों में होने वाली इस व्यवहार का वीभत्स चित्र उकेरा गया है।
प्रेमचंद
हजामत
"मियाँ-बीवी की नोक झोंक पर मब्नी मज़ाहिया कहानी है, जिसमें बीवी को शौहर के बड़े बालों से डर लगता है लेकिन इस बात को ज़ाहिर करने से पहले हज़ार तरह के गिले-शिकवे करती है। शौहर कहता है कि बस इतनी सी बात को तुमने बतंगड़ बना दिया, मैं जा रहा हूँ। बीवी कहती है कि ख़ुदा के लिए बता दीजिए कहाँ जा रहे हैं वर्ना मैं ख़ुदकुशी कर लूँगी। शौहर जवाब देता है नुसरत हेयर कटिंग सैलून।"
सआदत हसन मंटो
वो कौन थी?
एक बहुत ही मज़हबी शख़्स और उसके ख़ानदान की कहानी है। उस शख़्स के दो घर हैं, एक में वह अपनी फ़ैमिली के साथ रहता है और दूसरा मकान ख़ाली पड़ा हुआ है। अपने ख़ाली मकान को किसी शरीफ़ और नेक शख़्स को किराए पर देना चाहता है। फिर एक दिन उस घर में एक औरत आकर रहने लगती है और वह शख़्स उसके पास जाने लगता है। इस बारे में जब उसकी बीवी और घर के लोगों को पता चलता है तो कहानी एक नया मोड़ लेती है और वो मज़हबी और दीनदार शख़्स अपने घर वालों की निगाहों में क़ाबिल-ए-नफ़रीन बन जाता है।
मिर्ज़ा अदीब
अन्न-दाता
बंगाल में जब अकाल पड़ा तो शुरू में हुक्मरानों ने इसे क़हत मानने से ही इंकार कर दिया। वे हर रोज़ शानदार दावतें उड़ाते और उनके घरों के सामने भूख से बेहाल लोग दम तोड़ते रहते। वह भी उन्हीं हुक्मरानों में से एक था। शुरू में उसने भी दूसरों की तरह समस्या से नज़र चुरानी चाही। मगर फिर वह उनके लिए कुछ करने के लिए उतावला हो गया। कई योजनाएँ बनाई और उन्हें अमल में लाने के लिए संघर्ष करने लगा।
कृष्ण चंदर
वह लड़की
कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने दंगों के दौरान चार मुसलमानों की हत्या की थी। एक दिन वह घर में अकेला था तो उसने बाहर पेड़ के नीचे एक लड़की को बैठे देखा। इशारों से उसे घर बुलाने में नाकाम रहने के बाद वह उसके पास गया और ज़बरदस्ती उसे घर ले आया। जल्दी ही उसने उसे क़ाबू में कर लिया और चूमने लगा। बिस्तर पर जाने से पहले लड़की ने उससे पिस्तौल देखने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की तो उसने अपनी पिस्तौल लाकर उसे दे दी। लड़की ने पिस्तौल हाथ में लेते ही चला दी और वह वहीं ढेर हो गया। जब उसने पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया तो लड़की ने बताया कि उसने जिन चार मुसलमानों की हत्या की थी उनमें एक उस लड़की का बाप भी था।
सआदत हसन मंटो
फुंदने
कहानी का मौज़ू सेक्स और हिंसा है। कहानी में एक साथ इंसान और जानवर दोनों को पात्र के रूप में पेश किया गया है। जिन्सी अमल से पैदा होने वाले नतीजों को स्वीकार न कर पाने की स्थिति में बिल्ली के बच्चे, कुत्ते के बच्चे, ढलती उम्र की औरतें जिनमें जिन्सी कशिश बाक़ी नहीं, वे सब के सब मौत का शिकार होते नज़र आते हैं।
सआदत हसन मंटो
खुल बंधना
पूर्णमासी को एक मंदिर में लगने वाले मेले के गिर्द घूमती यह कहानी स्त्री विमर्श पर बात करती है। मंदिर में लगने वाला मेला ख़ास तौर से औरतों के लिए ही है, जहाँ वह परिवार में चल रहे झगड़ों, पतियों, सास और ननदों की तरफ़ से लगाए बंधनों के खुलने की मन्नतें माँगती हैं। साथ ही वे परिवार और समाज में औरत की स्थिति पर भी बातचीत करती जाती हैं।
मुमताज़ मुफ़्ती
कालू भंगी
’कालू भंगी’ समाज के सबसे निचले तबक़े की दास्तान-ए-हयात है। उसका काम अस्पताल में हर रोज़ मरीज़ों की गंदगी को साफ़ करना है। वह तकलीफ़ उठाता है जिसकी वजह पर दूसरे लोग आराम की ज़िंदगी जीते हैं। लेकिन किसी ने भी एक लम्हे के लिए भी उसके बारे में नहीं सोचा। ऐसा लगता है कि कालू भंगी का महत्व उनकी नज़र में कुछ भी नहीं। वैसे ही जैसे जिस्म शरीर से निकलने वाली ग़लाज़त की वक़अत नहीं होती। अगर सफ़ाई की अहमियत इंसानी ज़िंदगी में है, तो कालू भंगी की अहमियत उपयोगिता भी मोसल्लम है।
कृष्ण चंदर
शिकवा शिकायत
यह आत्मकथ्यात्मक शैली में लिखी गई चरित्र प्रधान कहानी है। शादी के बाद एक लंबा अरसा गुज़र जाने पर भी उसे हर वक़्त अपने शौहर से शिकायतें है। उसकी कोई भी बात, काम, सलीक़ा या फिर तरीक़ा पसंद नहीं आता। शिकवे इस क़दर हैं कि सारी ज़िंदगी बस जैसे-तैसे गुज़र गई है। मगर इन शिकायतों में भी एक ऐसा रस है जिससे शौहर के बिना एक लम्हें के लिए दिल भी नहीं लगता।
प्रेमचंद
गूँदनी
दोहरी ज़िंदगी जीते एक ऐसे शख़्स की कहानी जो चाहकर भी खुलकर अपने एहसासात का इज़हार नहीं कर पाता। मिर्ज़ा बिर्जीस का ख़ानदान किसी ज़माने में बहुत दौलतमंद था लेकिन इस वक़्त इस ख़ानदान की हालत दिगरगूँ है। इसके बावजूद मिर्ज़ा उसी शान-ओ-शौकत और ठाट-बाट के साथ रहने का ढोंग करता है। एक रोज़ बाज़ार में कुछ ख़रीदारी करते हुए भिखारी ने उससे खाना माँगा तो उसने उसे झिड़क दिया। मगर शाम को सिनेमा में एक फ़िल्म देखते हुए जब उसने एक बुढ़िया को भीख माँगते देखा तो वह रो दिया।
ग़ुलाम अब्बास
ख़ानदानी कुर्सी
एक ऐसे शख़्स की कहानी जो उन्नीस बरस बाद अपने घर वापस लौटता है। इतने अर्से में उसका गाँव एक क़स्बे में बदल गया है और जो लोग उसके खेतों में काम किया करते थे अब उनकी भी ज़िंदगी बदल गई है और ख़ुशहाल हैं। हवेली में घूमता हुआ वह अपने पुराने कमरे में गया तो उसे वहाँ एक कुर्सी मिली जो किसी ज़माने में ख़ानदान की शान हुआ करती थी, अब कबाड़ के ढ़ेर में पड़ी थी। कुर्सी की ये हालत और ख़ानदान की पुरानी यादें उसे इस हाल में ले आती हैं कि वो कुर्सी से लिपटा हुआ अपनी आख़िरी साँसें लेने लगता है।
मिर्ज़ा अदीब
नमक का दारोग़ा
यह कहानी समाज की यथार्थ स्थिति का उल्लेख करती है। मुंशी वंशीधर एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हैं जो समाज में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल क़ायम करते हैं। यह कहानी अपने साथ कई उद्देश्यों का पूरी करती है। इसके साथ ही इस कहावत को भी चरितार्थ करती है कि ईमानदारी की जड़ें पाताल में होती हैं।
प्रेमचंद
पाँच दिन
बंगाल के अकाल की मारी हुई सकीना की ज़बानी एक बीमार प्रोफे़सर की कहानी बयान की गई है, जिसने अपने चरित्र को बुलंद करने के नाम पर अपनी फ़ित्री ख़्वाहिशों को दबाए रखा। सकीना भूख से बेचैन हो कर एक दिन जब उसके घर में चली आती है तो प्रोफे़सर कहता है कि तुम इसी घर में रह जाओ, मैं दस बरस तक स्कूल में लड़कियों को पढ़ाता रहा इसलिए उन्हीं बच्चियों की तरह तुम भी एक बच्ची हो। लेकिन मरने से पाँच दिन पहले वह स्वीकार करता है कि उसने हमेशा सकीना सहित उन सभी लड़कियों को जिन्हें उसने पढ़ाया है हमेशा ग़लत निगाहों से देखा है।
सआदत हसन मंटो
आँखें
यह मुग़लिया सल्तनत के बादशाह जहाँगीर के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है। मुग़लिया सल्तनत, उसकी राजनीति, बादशाहों की महफ़िल और उन महफ़िलों में मिलने आने वालों का ताँता। उन्हें मिलने आने वालों के ज़रिए जहाँगीर एक ऐसी लड़की से मिलते हैं जिसकी आँखों को वह कभी भूल नहीं पाते। साइमा बेगम की आँखें। वो आँखें ऐसी हैं कि देखने वाले के दिमाग़ में पैवस्त हो जाती हैं और उसके दिमाग़ पर हर वक़्त उन्हीं का तसव्वुर छाया रहता है।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
पेशावर एक्सप्रेस
भारत-पाकिस्तान विभाजन पर लिखी गई एक बहुत दिलचस्प कहानी। इसमें घटना है, दंगे हैं, विस्थापन है, लोग हैं, उनकी कहानियाँ, लेकिन कोई भी केंद्र में नहीं है। केंद्र में है तो एक ट्रेन, जो पेशावर से चलती है और अपने सफ़र के साथ बँटवारे के बाद हुई हैवानियत की ऐसी तस्वीर पेश करती है कि पढ़ने वाले की रुह काँप जाती है।
कृष्ण चंदर
कपास का फूल
अधूरी रह गई मोहब्बत में सारी ज़िंदगी तन्हा गुज़ार देने वाली एक बूढ़ी औरत की कहानी। उसके पास जीने का कोई जवाज़ नहीं बचा है और वह हरदम मौत को पुकारती रहती है। तभी उसकी ज़िंदगी में एक नौजवान लड़की आती है, जो कपास के फूल की तरह नर्म और नाजु़क है। वह उसका ख़्याल रखती है और यक़ीन दिलाती है कि इस बुरे वक़्त में उसकी क़द्र करने वाला कोई है। मगर उन्हीं दिनों भारतीय फ़ौज गाँव पर हमला कर देती है और माई ताजो का वह फूल किसी कीड़े की तरह मसल दिया जाता है।
अहमद नदीम क़ासमी
शाही रक़्क़ासा
एक ऐसी रक़्क़ासा की कहानी जो महल की ज़िंदगी से ऊब कर आज़ादी के लिए बेचैन रहती है। वह जब भी बाहर निकलती है वहाँ लोगों को हँसते-गाते, अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी गुज़ारते देखती है तो उसे अपनी ज़िंदगी से नफ़रत होने लगती है। उसे वह महल किसी सोने के पिंजरे की तरह लगता है और वह खु़द को उसमें क़ैद किसी चिड़िया की तरह तसव्वुर करती है।
मिर्ज़ा अदीब
साहिब-ए-करामात
साहिब-ए-करामात सीधे सादे व्यक्तियों को मज़हब का लिबादा ओढ़ कर धोखा देने और मूर्ख बनाने की कहानी है। एक चालाक आदमी पीर बन कर मौजू का शोषण करता है। शराब के नशे में धुत्त उस पीर को करामाती बुज़ुर्ग समझ कर मौजू की बेटी और बीवी उसकी हवस का शिकार होती हैं। मौजू की अज्ञानता की हद यह है कि उस तथाकथित पीर की कृत्रिम दाढ़ी तकिया के नीचे मिलने के बाद भी उसकी चालबाज़ी को समझने के बजाय उसे चमत्कार समझता है।
सआदत हसन मंटो
दो क़ौमें
यह कहानी धर्म और मोहब्बत दोनों बिन्दुओं पर समान रूप से चर्चा करती है। मुख़्तार और शारदा दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते हैं मगर जब शादी की बात आती है तो दोनों अपने-अपने धर्म पर अड़ जाते हैं। ऐसे में उनकी मोहब्बत तो पीछे रह जाती है और धर्म उन दोनों पर हावी हो जाता है। दोनों अपने-अपने रास्ते वापस चले जाते हैं।
सआदत हसन मंटो
तरक़्क़ी पसंद
तंज़-ओ-मिज़ाह के अंदाज़ में लिखी गई यह कहानी तरक्क़ी-पसंद अफ़साना-निगारों पर भी चोट करता है। जोगिंदर सिंह एक तरक्क़ी-पसंद कहानी-कार है जिसके यहाँ हरेंद्र सिंह आकर डेरा डाल देता है और निरंतर अपनी कहानियाँ सुना कर बोर करता रहता है। एक दिन अचानक जोगिंदर सिंह को एहसास होता है कि वो अपनी बीवी की हक़-तल्फ़ी कर रहा है। इसी ख़्याल से वो हरेंद्र से बाहर जाने का बहाना करके बीवी से रात बारह बजे आने का वादा करता है। लेकिन जब रात में जोगिंदर अपने घर के दरवाज़े पर दस्तक देता है तो उसकी बीवी के बजाय हरेंद्र दरवाज़ा खोलता है और कहता है जल्दी आ गए, आओ, अभी एक कहानी मुकम्मल की है, इसे सुनो।
सआदत हसन मंटो
कफ़न
यह एक बहुस्तरीय कहानी है, जिसमें घीसू और माधव की बेबसी, अमानवीयता और निकम्मेपन के बहाने सामन्ती औपनिवेशिक गठजोड़ के दौर की सामाजिक आर्थिक संरचना और उसके अमानवीय/नृशंस रूप का पता मिलता है। कहानी में कफ़न एक ऐसे प्रतीक की तरह उभरता है जो कर्मकाण्डवादी व्यवस्था और सामन्ती औपनिवेशिक गठजोड़ के लिए समाज को मानसिक रूप से तैयार करता है।
प्रेमचंद
रौग़नी पुतले
राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे पर बात करती कहानी, जो शॉपिंग आर्केड में रखे रंगीन पुतलों के गिर्द घूमती है। जिनके आस-पास सारा दिन तरह-तरह के फै़शन परस्त लोग और नौजवान लड़के-लड़कियाँ घूमते रहते हैं। मगर रात होते ही वे पुतले आपस में गुफ़्तगू करते हुए मौजूदा हालात पर अपनी राय ज़ाहिर करते हैं। सुबह में आर्केड का मालिक आता है और वह कारीगरों को पूरे शॉपिंग सेंटर और तमाम पुतलों को पाकिस्तानी रंग में रंगने का हुक्म सुनाता है।
मुमताज़ मुफ़्ती
माँ
यह एक देहाती लड़की की कहानी है, जिसकी शादी एक अमीर शहरी लड़के से हो जाती है। लड़की बहुत सीधी और शरीफ़ है इसलिए लड़के की ज़िंदगी में मिसफिट सी रहने लगती है। इस से तंग आकर लड़का दूसरी शादी कर लेता है। दूसरी बीवी पहली बीवी और उसकी बेटी के साथ लगातार मारपीट और उनका शोषण करती है। जिससे परेशान हो कर एक रोज़ वह अपनी बेटी के साथ घर से निकल जाती है। और घर के बग़ीचे में अपनी बच्ची को सीने से लगाए सख़्त सर्दी में ठिठुरती हुई यह औरत मर जाती है।
मिर्ज़ा अदीब
देख कबीरा रोया
कबीर के माध्यम से यह कहानी हमारे समाज की उस स्वभाव को बयान करती है जिसके कारण लोग हर सुधावादी व्यक्ति को कम्युनिस्ट, अराजकतावादी क़रार दे देते हैं। समाज में हो रही बुराइयों को देख-देखकर कबीर रोता है और लोगों को उन बुराइयों को करने से रोकता है। परंतु हर जगह उसका मज़ाक़ उड़ाया जाता है। लोग उसे बुरा भला कहते हैं और मार कर भगा देते हैं।
सआदत हसन मंटो
बिजली पहलवान
अमृतसर के अपने समय के एक नामी पहलवान की कहानी है। बिजली पहलवान की शोहरत सारे शहर में थी। हालाँकि देखने में वह मोटा और थुलथुल व्यक्ति था जो हर तरह के दो नंबरी काम किया करता था। फिर भी पुलिस उसे पकड़ नहीं पाती थी। एक बार उसे सोलह-सत्रह साल की एक लड़की से मोहब्बत हो गई और उसने उससे शादी कर ली। शादी के छह महीने बीत जाने के बाद भी पहलवान ने उसे हाथ तक नहीं लगाया। एक दिन जब वह अपनी पत्नी के लिए तोहफ़े लेकर घर पहुँचा तो उसकी नई-नवेली पत्नी उसके बड़े बेटे के साथ एक कमरे में बंद खिलखिला रही थी। इससे क्रोधित हो कर बिजली पहलवान ने उसे हमेशा के लिए अपने बेटे के हवाले कर दिया।
सआदत हसन मंटो
बहरूपिया
हर पल रूप बदलते रहने वाले एक बहरूपिये की कहानी, जिसमें उसका अपना असली रूप कहीं खोकर रह गया है। वह हफ़्ते में एक-दो बार मोहल्ले में आया करता था। देखने में काफ़ी आकर्षक था और हर किसी से मज़ाक़ किया करता था। एक दिन एक छोटे लड़के ने उसे देखा तो वह उससे ख़ासा प्रभावित हुआ और फिर अपने दोस्त को साथ लेकर वे उसका पीछा करता हुआ, उसके असली रूप की तलाश में निकल पड़ा।
ग़ुलाम अब्बास
खुदकुशी का इक़दाम
"कहानी मुल्क की आर्थिक और क़ानूनी स्थिति की दुर्दशा पर आधारित है। इक़बाल भूखमरी और ग़रीबी से तंग आकर ख़ुदकुशी की कोशिश करता है जिसकी वजह से उसे क़ैद-ए-बा-मशक़्क़त की सज़ा सुनाई जाती है। अदालत में वो तंज़िया अंदाज़ में कहता है कि सिर्फ़ इतनी सज़ा? मुझे तो ज़िंदगी से निजात चाहिए। इस मुल्क ने ग़रीबी ख़त्म करने का कोई रास्ता नहीं निकाला तो ताज़ीरात में मेरे लिए क्या क़ानून होगा?"