नयी बीवी
पहली बीवी की मौत के बाद लाला डंगामल जब दूसरी शादी कर लेते हैं तो उन्हें लगता है कि वह फिर से जवान हो गए हैं। नई-नवेली दुल्हन को बहलाने के लिए वह हर तरह के प्रपंच करते हैं। मगर नई दुल्हन उनसे कुछ खिंची-खिंची सी रहती है। उन्हें लगता है कि उनसे कोई ग़लती हो गई है। मगर तभी घर के महाराज की जगह एक सोलह साला छोकरा नौकरी पर आता है और फिर सब कुछ बदल जाता है।
प्रेमचंद
आख़िरी सल्यूट
हिन्दुस्तान की आज़ादी के बाद कश्मीर के लिए दोनों मुल्कों में होने वाली पहली जंग के दृश्यों को प्रस्तुत किया गया है कि किस तरह दोनों देश की सेना भावनात्मक रूप से एक दूसरे के अनुरूप हैं लेकिन अपने-अपने देश के संविधान और क़ानून के पाबंद होने की वजह से एक दूसरे पर हमला करने पर विवश हैं। वही लोग जो विश्व-युद्ध में एकजुट हो कर लड़े थे वो उस वक़्त अलग-अलग देश में विभाजित हो कर एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हो गए।
सआदत हसन मंटो
कालू भंगी
’कालू भंगी’ समाज के सबसे निचले तबक़े की दास्तान-ए-हयात है। उसका काम अस्पताल में हर रोज़ मरीज़ों की गंदगी को साफ़ करना है। वह तकलीफ़ उठाता है जिसकी वजह पर दूसरे लोग आराम की ज़िंदगी जीते हैं। लेकिन किसी ने भी एक लम्हे के लिए भी उसके बारे में नहीं सोचा। ऐसा लगता है कि कालू भंगी का महत्व उनकी नज़र में कुछ भी नहीं। वैसे ही जैसे जिस्म शरीर से निकलने वाली ग़लाज़त की वक़अत नहीं होती। अगर सफ़ाई की अहमियत इंसानी ज़िंदगी में है, तो कालू भंगी की अहमियत उपयोगिता भी मोसल्लम है।
कृष्ण चंदर
महालक्ष्मी का पुल
‘महालक्ष्मी का पुल’ दो समाजों के बीच की कहानी है। महालक्ष्मी के पुल दोनों ओर सूख रही साड़ियों की मारिफ़त शहरी ग़रीब महिलाओं और पुरुषों के कठिन जीवन को उधेड़ा गया है, जो उनकी साड़ियों की तरह ही तार-तार है। वहाँ बसने वाले लोगों को उम्मीद है कि आज़ादी के बाद आई जवाहर लाल नेहरू की सरकार उनका कुछ भला करेगी, लेकिन नेहरु का क़ाफ़िला वहाँ बिना रुके ही गुज़र जाता है। जो दर्शाता है कि न तो पुरानी शासन व्यवस्था में इनके लिए कोई जगह थी न ही नई शासन व्यवस्था में इनके लिए कोई जगह है।
कृष्ण चंदर
पंसारी का कुँआं
पंसारी का कुँआ एक सामाजिक मुद्दे के गिर्द घुमती कहानी है। कहानी में बूढ़ी गोमती काकी एक कुँआ ख़ुदवाने के लिए सारी ज़िंदगी पाई-पाई जोड़ती है और चौधरी विनायक को वसीयत कर के मर जाती है। चौधरी विनायक बूढ़ी गोमती काकी की वसीयत को पूरा करता है या नहीं। यही इस कहानी में बताया गया है।
प्रेमचंद
बदसूरती
यह दो बहनों, हामिदा और साजिदा की कहानी है। साजिदा बहुत ख़ूबसूरत है, जबकि हामिदा बहुत बदसूरत है। साजिदा को एक लड़के से मोहब्बत हो जाती है, तो हामिदा को बहुत दुःख होता है। इस बात को लेकर उन दोनों के बीच झगड़ा भी होता है, पर फिर दोनों बहनें सुलह कर लेती है और साजिदा की शादी हामिद से हो जाती है। एक साल बाद साजिदा अपने शौहर के साथ हामिदा से मिलने आती है। रात को कुछ ऐसा होता है कि सुबह होते ही हामिद साजिदा को तलाक़़ दे देता है और कुछ अरसे बाद हामिदा से शादी कर लेता है।
सआदत हसन मंटो
रज़्ज़ो बाजी
पहला प्यार भुलाए नहीं भूलता है। एक अर्से बाद रज़्ज़ो बाजी का ख़त आता है। वही रज़्ज़ो जो पंद्रह साल पहले हमारे इलाके़ के मशहूर मोहर्रम देखने आई थीं। उसी मोहर्रम में हीरो की उनसे मुलाकात हुई थी और वहीं वह एहसास उभरा था जिसने रज़्ज़ो बाजी को फिर कभी किसी का न होने दिया। अपनी माँ के जीते जी रज़्ज़ो बाजी ने कोई रिश्ता क़बूल नहीं किया। फिर जब माँ मर गई और बाप पर फ़ालिज गिर गया तो रज़्ज़ो बाजी ने एक रिश्ता क़बूल कर लिया। लेकिन शादी से कुछ अर्से पहले ही उन पर जिन्नात आने लगे और शादी टूट गई। इसके बाद रज़्ज़ो बाजी ने कभी किसी से रिश्ते की बात न की। सिर्फ़ इसलिए कि वह मोहर्रम में हुए अपने उस पहले प्यार को भूला नहीं सकी थीं।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
निकाह-ए-सानी
एक ऐसी औरत की कहानी, जिसे एक ख़त के ज़रिए पता चलता है कि उसका मर्द उसके साथ बेवफ़ाई कर रहा है। ख़त को पढ़ने के बाद उसे वो रातें याद आती हैं जब उसका शौहर किसी न किसी बहाने रात को घर से बाहर चला जाता था। उस रात भी जब उसका शौहर घर नहीं लौटा तो वह बुर्क़ा लगाकर उस तवाएफ़ के घर पहुँच जाती है, जिसका पता उस ख़त में लिखा था।
सज्जाद हैदर यलदरम
गूँगी मुहब्बत
एक गूंगी लड़की की गूंगी मोहब्बत की कहानी। ज्योति आर्ट की शौक़ीन इंदिरा की ख़ादिमा है। एक आर्ट की नुमाइश के दौरान इंदिरा की मुलाकात मोहन से होती है और वह दोनों शादी कर लेते हैं। एक रोज़ जब इंदिरा को पता चलता है कि उसकी ख़ादिमा ज्योति भी मोहन से मोहब्बत करती है तो वह उसे छोड़कर चली जाती है।
मिर्ज़ा अदीब
सौ कैंडल पॉवर का बल्ब
"इस कहानी में इंसान की स्वाभाविक और भावनात्मक पहलूओं को गिरफ़्त में लिया गया है जिनके तहत वो कर्म करते हैं। कहानी की केन्द्रीय पात्र एक वेश्या है जिसे इस बात से कोई सरोकार नहीं कि वो किस के साथ रात गुज़ारने जा रही है और उसे कितना मुआवज़ा मिलेगा बल्कि वो दलाल के इशारे पर कर्म करने और किसी तरह काम ख़त्म करने के बाद अपनी नींद पूरी करना चाहती है। आख़िर-कार तंग आकर अंजाम की परवाह किए बिना वो दलाल का ख़ून कर देती है और गहरी नींद सो जाती है।"
सआदत हसन मंटो
रिश्वत
एक नौजवान के ज़िंदगी के तल्ख़ तज़ुर्बों पर आधारित कहानी है। जब उसने बी. ए पास किया तो उसके बाप का इरादा था कि वह उसे उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजेगा। इसी बीच उसके बाप को जुए की लत लग गई और वह सब कुछ जुए में हारकर मर गया। नौजवान ख़ाली हाथ दुनिया से संघर्ष करने लगा। वह जहाँ भी नौकरी के लिए जाता, हर जगह उससे रिश्वत माँगी जाती। आख़िर में परेशान हो कर उसने अल्लाह को एक ख़त लिखा और उस ख़त के साथ रिश्वत के तौर पर वे तीस रूपये भी डाल दिए जो उसने मज़दूरी कर के कमाए थे। उसका यह ख़त एक अख़बार के एडिटर के पास पहुँच जाता है, जहाँ से उसे दो सौ रूपये माहवार की तनख़्वाह पर नौकरी के लिए बुलावा आ जाता है।
सआदत हसन मंटो
रियासत का दीवान
आप तभी तक इंसान हैं जब तक आपका ज़मीर ज़िंदा है। महतो साहब जब तक इस अमल पर जमे रहे तब तक तो सब ठीक था। मगर जब एक रोज़ अपने ज़मीर को मार कर वह रियासत के हुए हैं तब से सब गड़बड़ हो गया है। राजा उसे ज़ुल्म करने पर उकसाता है और बेटा ग़रीबों की हिमायत में खड़ा है। इस रस्सा-कशी में एक रोज़ ऐसा भी आया कि वह तन्हा खड़े रह गए।
प्रेमचंद
मोमबत्ती के आँसू
यह एक ग़ुर्बत की ज़िंदगी गुज़ारती वेश्या की कहानी है। उसके घर में अंधेरा है। ताक़ में रखी मोमबत्ती मोम को पिघलाती हुई जल रही है। उसकी छोटी बच्ची मोतियों का हार माँगती है तो वह फ़र्श पर जमे मोम को धागे में पिरो कर माला बनाकर उसके गले में पहना देती है। रात में उसका ग्राहक आता है। उससे अलग होने पर वह थक जाती है, तभी उसे अपनी बच्ची का ध्यान आता है और वह उसके छोटे पलंग के पास जाकर उसे अपनी बाँहों में भर लेती है।
सआदत हसन मंटो
नारा
यह अफ़साना एक निम्न मध्यवर्गीय आदमी के अभिमान को ठेस पहुँचने से होने वाले दर्द को बयान करता है। बीवी की बीमारी और बच्चों के ख़र्च के कारण वह मकान मालिक को पिछले दो महीने का किराया भी नहीं दे पाया था। वह चाहता था कि मालिक उसे एक महीने की और मोहलत दे दे। इस विनती के साथ जब वह मकान मालिक के पास गया तो मालिक ने उसकी बात सुने बिना ही उसे दो गंदी गालियाँ दी। उन गालियों को सुनकर उसे बहुत ठेस पहुँची और वह तरह-तरह के विचारों में गुम शहर के दूसरे सिरे पर जा पहुँचा। वहाँ उसने अपनी पूरी क़ुव्वत से एक 'नारा' लगाया और ख़ुद को हल्का महसूस करने लगा।
सआदत हसन मंटो
मज़दूर
यह समाज के सबसे मज़बूत और बे-सहारा स्तंभ एक मज़दूर की कहानी है, जो दिन-रात ख़ून-पसीना बहाकर काम करता है। लेकिन इससे वह इतना भी नहीं कमा पाता कि अपने बच्चों को भर पेट खाना खिला सके या अपनी बीमार बीवी की दवाई ख़रीद सके। वह फैक्ट्री मालिक से भी विनती करता है, पर वहाँ से भी उसे कोई मदद नहीं मिलती।
सुदर्शन
शाह दूले का चूहा
मज़हब के नाम पर गोरख धंधा करने वालों की कहानी है। शाह दूले के मज़ार के बारे में यह अक़ीदा राइज कर दिया गया था कि यहाँ मन्नत मानने के बाद अगर बच्चा होता है तो पहला बच्चा शाह दूले का चूहा है और उस बच्चे को मज़ार पर छोड़ना ज़रूरी है। सलीमा को अपना पहला बच्चा मुजीब इसी अक़ीदे से मज़ार पर छोड़ना पड़ा, लेकिन वह उसका ग़म अपने सीने से लगाये रही। एक मुद्दत के बाद जब मुजीब उसके दरवाज़े पर शाह दूल्हे का चूहा बन कर आता है तो सलीमा उसे तुरंत पहचान लेती है और तमाशा दिखाने वाले से पाँच सौ के बदले उसे ले लेती है, लेकिन जब वह पैसे देकर वापस अंदर आती है तो मुजीब ग़ायब हो चुका होता है।
सआदत हसन मंटो
मोहब्बत या हलाकत?
कहानी एक ऐसे शख़्स की दास्तान को बयान करती है जो अपनी चचाज़ाद बहन से बहुत मोहब्बत करता है। एकाएक वह चचाज़ाद बीमार पड़ जाती है और उसके इलाज के लिए एक नौजवान डॉक्टर आने लगता है। चचाज़ाद डॉक्टर की तरफ़ मुतवज्जा होने लगती है और वह उसी से शादी करने का फै़सला कर लेती है। उसके इस फ़ैसले पर उसका चचाज़ाद भाई अपने उस रक़ीब डाक्टर का क़त्ल कर देता है।
हिजाब इम्तियाज़ अली
मिर्ज़ा ग़ालिब की हशमत ख़ाँ के घर दावत
यह कहानी उर्दू के महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के एक डोमिनी के साथ इश्क़़ की दास्तान को बयान करती है। मिर्ज़ा ग़ालिब के दोस्त हशमत ख़ाँ अपने यहाँ एक दावत रखते हैं। इस दावत में वह मिर्ज़ा ग़ालिब को भी बुलाते हैं। दावत की रंगीनी के लिए मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रेमिका डोमिनी के मुजरे का इंतिज़ाम किया जाता है। मुजरे के दौरान हशमत ख़ाँ कुछ ऐसी हरकतें करते हैं कि डोमिनी मिर्ज़ा ग़ालिब से सरे-आम अपने इश्क़़ का इज़्हार कर देतीं हैं।
सआदत हसन मंटो
नफ़्सियाती मुताला
इस कहानी में एक ऐसी लेखिका की दास्तान बयान की गई है जो मर्दों की मनोविज्ञान के बारे में लिखने के कारण मशहूर हो जाती है। कुछ लेखक दोस्त बैठे हैं और उसी लेखिका बिल्क़ीस के बारे में बातचीत कर रहे हैं। लेखक जिस घर में बैठे हैं उस घर की महिला बिल्क़ीस की दोस्त हैं। बातचीत के बीच में ही फ़ोन आता है और वह महिला बिल्क़ीस से मिलने चली जाती है। बिल्क़ीस उसे बताती है कि वह घर में सफ़ेदी कर रहे एक मज़दूर की मनोविज्ञान का अध्ययन कर रही थी, इसी बीच उसने उसे अपनी हवस का शिकार बना लिया।
सआदत हसन मंटो
सुंदरता का राक्षस
यह समाज में औरतों के बराबरी के अधिकार के डिस्कोर्स के गिर्द घूमती कहानी है, जिसमें दो लड़कियाँ एक स्वामी के पास औरत की गै़र-बराबरी का सवाल लेकर जाती हैं। मगर वहाँ उनकी स्वामी से तो मुलाक़ात नहीं होती, उनके शिष्य मिलते हैं। उनमें से एक उन्हें रानी विजयवंती की कहानी के ज़रिए बताता है कि पुरुष औरत को देवी बना सकता है, उसकी सुंदरता के लिए उसकी पूजा कर सकता है। उस पर जान तक न्यौछावर कर सकता है। मगर कभी उसे अपने बारबर नहीं समझ सकता है।
मुमताज़ मुफ़्ती
ऐ रूद-ए-मूसा
यह एक ऐसी ख़ुद्दार लड़की की कहानी है, जो दुनिया की ठोकरों में रुलती हुई वेश्या बन जाती है। विभाजन के दौरान हुए दंगों में उसके बाप के मारे जाने के बाद उसकी और उसकी माँ की ज़िम्मेदारी उसके भाई के सिर आ गई थी। एक रोज़ वह बहन के साथ अपने बॉस से मिलने गया था तो उन्होंने उससे उसका हाथ माँग लिया था। मगर अगले रोज़ बॉस के बाप ने भी उससे शादी करने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की थी। उसने उस ख़्वाहिश को ठुकरा दिया था और घर से निकल भागी।
वाजिदा तबस्सुम
आँखें
यह मुग़लिया सल्तनत के बादशाह जहाँगीर के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है। मुग़लिया सल्तनत, उसकी राजनीति, बादशाहों की महफ़िल और उन महफ़िलों में मिलने आने वालों का ताँता। उन्हें मिलने आने वालों के ज़रिए जहाँगीर एक ऐसी लड़की से मिलते हैं जिसकी आँखों को वह कभी भूल नहीं पाते। साइमा बेगम की आँखें। वो आँखें ऐसी हैं कि देखने वाले के दिमाग़ में पैवस्त हो जाती हैं और उसके दिमाग़ पर हर वक़्त उन्हीं का तसव्वुर छाया रहता है।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
शुग़ल
यह कहानी अमीरों के शौक़ और उनकी दिलचस्पियों के गिर्द घूमती है। एक पहाड़ी इलाक़े में कुछ मज़दूर पत्थर साफ़ करने का काम किया करते थे। वहाँ सड़क से गुज़रने वाली तरह-तरह की लारियाँ ही उनके मनोरंजन का साधन थीं। एक रोज़ वहाँ एक नई गाड़ी आकर रुकी, उसमें से दो नौजवान उतरे और एक चमार की बेटी को अपने साथ लेकर चल दिए। ठेकेदार ने उन नौजवानों के रसूख़ को बयान करते हुए बताया कि यह तो अपने शुग़ल के लिए उस लड़की को ले जा रहे हैं, कुछ देर बाद उसे छोड़ जाएँगे।
सआदत हसन मंटो
मिसेज़ गुल
एक ऐसी औरत की ज़िंदगी पर आधारित कहानी है जिसे लोगों को तिल-तिल कर के मारने में मज़ा आता है। मिसेज़ गुल एक अधेड़ उम्र की औरत थी। उसकी तीन शादियाँ हो चुकी थीं और अब वह चौथी की तैयारियाँ कर रही थी। उसका होने वाला पति एक नौजवान था। पर वह हर रोज़़ पीला पड़ता जा रहा था। उसके यहाँ की नौकरानी भी थोड़ा-थोड़ा करके घुलती जा रही थी। उन दोनों के मरज़ से जब पर्दा उठा तो पता चला कि मिसेज़ गुल उन्हें एक जानलेवा नशीली दवाई थोड़ा-थोड़ा करके रोज़़ पिला रही थीं।
सआदत हसन मंटो
ख़ाँ साहब
कहानी एक ऐसे शख़्स के गिर्द घूमती है, जो बहुत दीनदार है मगर इतना कंजूस है कि उसकी बीवी-बेटी बहुत मुफ़्लिसी में गुज़ारा करती हैं। उसकी बीवी बेटी को अच्छी परवरिश के लिए एक औरत के पास छोड़ देती है, तो बदले में वह उस औरत से पैसे भी माँगता है। औरत पैसे तो नहीं देती, हाँ एक पढ़े-लिखे लड़के से उसका रिश्ता तय कर देती है। मगर कम मेहर और नकद न मिलने की वजह से वह धोखे से अपनी बेटी की शादी एक अमीर और अधेड़ उम्र के शख़्स से करा देता है।
मोहम्मद मुजीब
कंवल
एक ब्राह्मण लड़की की कहानी है, जिसे एक मुस्लिम लड़के से प्यार हो जाता है। दूसरे धर्म और जाति होने के कारण लड़की उससे शादी करने से इंकार कर देती है परंतु वह एक पल के लिए भी उसे भूल नहीं पाती। उस लड़की की शादी कहीं और हो जाती है तो वह अपने पति को उस मोहब्बत के बारे में सच-सच बता देती है। यह सच्चाई जानकर इस सदमें से उसके पति की मौत हो जाती है और वह लड़की अपने प्रेमी के पास लौट जाती है।
आज़म कुरेवी
खुद फ़रेब
यह दो दोस्तों की कहानी है, जो हर वक़्त ख़ूबसूरत औरतों और लड़कियों के बारे में बातें करते रहते हैं। वे उनसे अपने संबंधों की डींग हाँकते हैं। मगर दोनों में कोई भी अपनी पसंद की औरत से एक-दूसरे को मिलवाता नहीं है। हाँ, उन औरतों के साथ अपने संबंधों को सच्चा साबित करने के लिए ख़ुद फ़रेब करते रहते हैं।
सआदत हसन मंटो
ज़ालिम मोहब्बत
यह एक औरत और दो मर्दों की कहानी है। पहला मर्द औरत से बेपनाह मोहब्बत करता है और दूसरे मर्द को यह ख़बर तक नहीं कि वह औरत उसे चाहती है। एक दिन वह दूसरे मर्द के पास जाती है और उसके सामने अपने दिल की बात को एक कहानी के प्लॉट के रूप में पेश करते हुए उस उलझन का हल उस मर्द से पूछती है।
हिजाब इम्तियाज़ अली
ख़ून की एक बोतल
रोज़गार की तलाश में अपने ज़मीर का सौदा करने वाले ऐसे शख़्स की कहानी जिसकी माँ शदीद बीमार है। डाक्टरों ने उसमें खू़न की कमी बताई। वह ब्लड बैंक गया तो वहाँ मौजूद शख़्स ने कहा कि इस ग्रुप का ख़ून नहीं है। वह उसे एक दूसरे आदमी का पता देते हुए वहाँ से खू़न लेने का मश्वरा देता है। इसी बीच उसकी माँ की मौत हो जाती है। नौकरी की तलाश में घूमते हुए उस शख़्स की मुलाक़ात उसी खू़न देने वाले शख़्स से होती है, जो उसे ब्लड बैंक वाले शख़्स के साथ पार्टनरशिप में काम करने का मश्वरा देता है।
मिर्ज़ा अदीब
शाही रक़्क़ासा
एक ऐसी रक़्क़ासा की कहानी जो महल की ज़िंदगी से ऊब कर आज़ादी के लिए बेचैन रहती है। वह जब भी बाहर निकलती है वहाँ लोगों को हँसते-गाते, अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी गुज़ारते देखती है तो उसे अपनी ज़िंदगी से नफ़रत होने लगती है। उसे वह महल किसी सोने के पिंजरे की तरह लगता है और वह खु़द को उसमें क़ैद किसी चिड़िया की तरह तसव्वुर करती है।