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मैं अदब और फ़िल्म को एक ऐसा मय-ख़ाना समझता हूँ, जिसकी बोतलों पर कोई लेबल नहीं होता।
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मैं अफ़्साना इसलिए लिखता हूँ कि मुझे अफ़्साना-निगारी की शराब की तरह लत पड़ गई है। मैं अफ़्साना ना लिखूँ तो मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैंने कपड़े नहीं पहने, या मैंने ग़ुस्ल नहीं किया, या मैंने शराब नहीं पी।
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चोर उचक्के रहज़न और वेश्याएं बग़ैर शराब के ज़िंदा नहीं रह सकतीं।
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शराब, अफ़ीम, चरस, भंग और तंबाकू का आलमगीर इस्तेमाल इसलिए नहीं होता कि ये चीज़ें फ़रहत या दिल-बस्तगी का सामान मुहय्या करती हैं, बल्कि उनका इस्तेमाल सिर्फ़ इसलिए किया जाता है कि ज़मीर के मुतालिबात से ख़ुद को छुपा लिया जाए।