बिंत-ए-छिपकली
ख़ुदा के लिए रीज़लो जल्दी आओ। इस बिंत-ए-छिपकली को दीवार से हटाओ, यकसाँ परवानों को खाए चली जाती है।
गर्मी आई मैंने लैम्प जलाया। परवानों की आमद हुई। लिखना-पढ़ना ख़ाक नहीं, उनकी बेक़रारियाँ देख-देख कर जी बहलाता हूँ। शरीर छिपकली ज़ादी कहाँ से आ गई जो ग़रीब इश्क़बाज़ों को निगल रही है।
अभी तो मिस है, लेडी होगी तो ख़बर नहीं क्या ग़ज़ब ढाएगी। इसकी दुम काट लो बड़ी हराफ़ा है। क्यों री मुर्दार मेरे चहेते पतिंगों को क्यों खाती है। जला दूं तेरा मुँह भड़काऊ शोला। बुझाऊं तेरी ज़िंदगी।
हाय रीज़लो। तुम अब तक न आई, देखो इसने फिर एक तीतरी को पकड़ लिया। मुँह में दबाए बैठी है। गर्दन ऊंची करती है और निगलना चाहती है। बेचारी तीतरी कैसी बेकसी से उसके मुँह में गिरफ़्तार है।
भाई ये इश्क़ बुरी बला है। न रोशनी पर आती न जान गंवाती। शोला पर चिमनी थी। महबूब के रुख़ तक उसे रसाई न मिली तो छिपकली के आतिश-ए-शिकम की नज़र हुई।
अल्लाह एक ज़माना था जब अबादिया का शाना था। हर चीज़ साफ़ थी। न मच्छर आते थे। खटमल पिस्सुओं से भी निजात थी। छिपकलियों का भी गुज़र न हो सकता था। मगर जब से वीराने में घर बना है सब सताने आते हैं। तरह-तरह से चुटकियाँ लेकर रुलाते हैं।
तुम कहते हो 14 के पर्चे को चुटकियाँ लिख कर दूँ। क्या लिखूँ मेरे दिल में ख़ुद लोग चुटकियाँ ले रहे हैं और तुम ख़याल नहीं करते।
ख़बर नहीं ख़ुदा ने मुझको ये हिस क्यों दी है। उसके हाथों जी निढाल है हर सुबह-ओ-शाम जान को नया वबाल है। मुझको सोख़्त होती है। आप कबाब का मज़ा उठाते हैं। अच्छी ता'रीफ़ है। अच्छी वाह-वाह है।
फ़ितरत शनासी कैसी मुझे ख़ुदा के ये जानवर चैन नहीं लेने देते। कहाँ जाऊँ और क्योंकर दिल से उन बातों को जुदा करूँ। जब तबीयत में मौज आएगी लिखदूँगा, अबके तो इस ख़त को चुटकियों में दर्ज कर देना।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.