चंद मक़बूल आम फ़िल्मी सीन
मुहब्बत का सीन
मजनूं: मुझे तुमसे कुछ कहना है लैला
लैला: यही न कि तुम्हें मुझसे मुहब्बत है
मजनूं: मुहब्बत नहीं बल्कि...
लैला: (बात काट कर) वालिहाना इश्क़ है।
लैला: शुक्रिया, लेकिन मुझसे बग़लगीर होने की कोशिश मत करो, वहीं खड़े खड़े मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराते रहो।
मजनूं: मगर क्यों?
लैला: तुम कितने सादा-लौह हो मजनूं। इतना भी नहीं जानते कि अगर तुमने मुझे अपने बाज़ुओं में भींचने की कोशिश की तो अ’वाम का अख़लाक़ तबाह हो जाएगा। ये हिन्दोस्तान है, प्यारे फ़्रांस नहीं।
मजनूं: मगर मैं अपनी मुहब्बत का इज़हार किस तरह करूँ?
लैला: मैं बताऊं, आओ बाग़ीचे में चलें। मैं आगे आगे भागती हूँ, तुम मेरा तआ’क़ुब करो।
मजनूं: अच्छा ख़याल है।
लैला: हाँ, लेकिन याद रहे तुम्हें बोस-ओ-कनार से क़तअ’न एहतराज़ करना है वर्ना...
मजनूं: वर्ना यही न कि बाप और बेटी ये फ़िल्म मिलकर न देख सकेंगे।
लैला: हाँ।
मजनूं: लेकिन लैला, अगर मैं वफ़ूर-ए-मुहब्बत से बेताब हो जाऊं तो...
लैला: इस हालत में तुम अपना सर मेरे कंधे पर रख सकते हो।
मजनूं; शुक्रिया, लेकिन तुम अपनी मुहब्बत का इज़हार कैसे करोगी?
लैला: इस की फ़िक्र न करो?
मजनूं: फिर भी...
लैला: हम दोनों एक बेमा’नी दो गाना गाएँगे। इससे अ’वाम को पता चल जाएगा कि हमें एक दूसरे से मुहब्बत है।
मजनूं: मसलन...
लैला: मसलन, मैं कहूँगी, मैं दीवानी हूँ, दीवानी...
मजनूं: और इसके जवाब में शायद मुझे कहना होगा...मैं दीवाना हूँ दीवाना...
लैला: हाँ, और फिर मैं कहूँगी...मेरी छोटी आंखें...
मजनूं: और मैं फ़ौरन बोल उठूँगा... मेरी पतली टांगें...
लैला: इसके बाद मैं भाग कर दरख़्त पर चढ़ जाऊँगी और पत्तों में छुप कर तीसरा मिसरा पढ़ूंगी, प्रीत की निभाओ साजन...
मजनूं: और मैं नीचे से पुकार कर कहूँगा, और न तड़पाओ साजन...
लैला: इसके बाद में क़हक़हा लगा कर हँसने लगूँगी...
मजनूं: और मैं फ़र्त-ए-मुहब्बत से दरख़्त से बग़लगीर हो जाऊँगा।
लैला: और इस तरह हिन्दुस्तानी फिल्मों में एक और पाकीज़ा फ़िल्म का इज़ाफ़ा हो जाएगा।
ईसार का सीन
बीवी: नाथ, आज आप फिर रात गए आए।
ख़ाविंद: तुम्हें मालूम ही है, तीन माह से मेरा यही मा’मूल हो चुका है।
बीवी: आपके मुँह से शराब की बू भी आ रही नाथ।
ख़ाविंद: जुए में हारने के बाद चारा ही क्या था। अगर दो-चार घूँट न लेता तो ग़म से मर न जाता।
बीवी: आपने जुआ खेलना भी शुरू कर दिया?
ख़ाविंद: तुम्हारे ज़ेवर बेच कर आज पाँच हज़ार की रक़म हाथ लगी थी। मैंने सोचा कि एक-आध दाव लगा देखूं।
बीवी: तो क्या आपने मेरे सारे ज़ेवर बेच डाले?
ख़ाविंद: सारे नहीं प्यारी, अभी झूमर बाक़ी है।
बीवी: नाथ ये आपने क्या-किया?
ख़ाविंद: ख़ामोश, वर्ना अभी जूतों से तुम्हारी मरम्मत करूँगा।
बीवी: (इन्किसारी ज़ाहिर करते हुए) आप मेरे जूते लगाइये, मैं कभी नाराज़ न हूंगी बल्कि यही चाहूंगी कि...
ख़ाविंद: कि मैं तुम्हारे और जूते लगाऊँ।
बीवी: हाँ, और जब आप जूते लगा कर मुझे अधमुआ कर दोगे, तो मैं भगवान से प्रार्थना करूँगी कि...
ख़ाविंद: कि अगर मरने के बाद तुम्हारा फिर जन्म हो तो तुम मेरी ही बीवी बनो।
बीवी: हाँ और मरते वक़्त मेरा सर आपके चरणों में हो।
ख़ाविंद: शाबाश, अगर तुम इतनी बेवक़ूफ़ न होतीं तो मैं कब का सुधर न गया होता।
नसीहत आमोज़ सीन
आशिक़: मेरी जान मैं अपनी सारी दौलत तुम्हारी नज़र कर चुका, अब मेरे पास कुछ नहीं।
रंडी: (ग़ुस्से से) कुछ नहीं? तो फिर यहां क्यों आए हो?
आशिक़: इसी लिए कि तुम्हें मुझसे मुहब्बत है।
रंडी: क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मुफ़लिस आशिक़ों के लिए इस घर में कोई जगह नहीं?
आशिक़: मेरा ख़याल था तुम दिल-ओ-जान से मुझ पर फ़िदा हो।
रंडी: बेवक़ूफ़, रंडी की निगाह आशिक़ के दिल पर नहीं, उसकी जेब पर होती है।
आशिक़: मेरा ख़याल था तुम बाज़ारी औरतों से मुख़्तलिफ़ हो।
रंडी: ये तुमने कैसे फ़र्ज़ कर लिया, चले जाओ यहां से।
आशिक़: (गिड़गिड़ा कर) प्यारी मेरी हालत-ए-ज़ार पर रहम खाओ। मैंने तुम्हारे लिए अपना मकान बेच डाला। बीवी के ज़ेवर फ़रोख़्त कर दिए। डाका मारा, सास और सुसर से लड़ाई मोल ली। बीवी को मार मार कर नीम बिस्मिल कर दिया।
रंडी: (ग़ुस्से से) जाते हो, या तुम्हें धक्के देकर निकाला जाये?
आशिक़: अच्छा प्यारी जाता हूँ, लेकिन रुख़सत होने से पहले एक दरख़्वास्त करना चाहता हूँ।
रंडी: क्या?
आशिक़: वो ये कि घर से निकालते वक़्त मेरी पुश्त पर इस ज़ोर से लात जमाना कि मैं सीढ़ियों पर से लुढ़कता हुआ बाज़ार में जा पड़ूँ।
रंडी: ये क्यों?
आशिक़: ताकि देखने वालों को इबरत हो।”
रंडी: अच्छा, अब मैं समझी, तुमने किस लिए घर-बार लुटाया... इसीलिए न कि जब तुम अपनी सारी दौलत लुटा चुको और बिल्कुल दीवालीया हो जाओ तो लोग तुमसे इबरत हासिल करें।
आशिक़: तुम ठीक समझीं... अच्छा अब लगाओ लात...
बेमिसाल क़ुर्बानी का सीन
रमेश: लीला, तुम्हें मालूम है, मुझे तुमसे कितनी मुहब्बत है?
लीला: और तुम जानते ही हो रमेश मुझे तुमसे किस क़दर नफ़रत है।
रमेश: हाँ, ये ग़ालिबन इसलिए कि तुम्हें सुरेश से इश्क़ है।
लीला: ये ज़रूरी है रमेश, क्योंकि अगर मैं ऐसा न करूँ तो मुहब्बत की तिकोन किस तरह मुकम्मल होगी?
रमेश: मगर क्या इस मुश्किल का कोई हल नहीं?
लीला: मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता।
रमेश: अच्छा मुझे सोचने दो... (चुटकी बजा कर) हाँ, ये ठीक रहेगा लीला, भला तुम्हें मालूम है आज कौन सा तेहवार है?
लीला: आज राखी है, वो मुबारक दिन जब बहनें अपने भाईयों को राखियां पेश करती हैं।
रमेश: ठीक, अच्छा तुम भाग कर एक राखी ले आओ, मेरी बाज़ू पर बांध दो।
लीला: अब मैं समझी, तो गोया आजसे तुम मेरे भाई हो?
रमेश: हाँ।
लीला: भय्या।
रमेश: बहन।
लीला: भय्या।
रमेश: बहन।
लीला: रमेश,
भय्या और बहन की गिर्द उनको अच्छी तरह रट लो। ऐसा न हो कि तुम फिर बहन की बजाय ‘मेरी प्यारी’ कहना शुरू कर दो।
रमेश: नहीं प्यारी... नहीं प्यारी बहन... ये कभी नहीं हो सकता।
अलमनाक सीन
बूढ़ा बाप: मैं मर रहा हूँ और वह नालायक़ बाज़ार-ए-हुस्न का चक्कर काट रहा है।
बहू: ऐसा न कहिए पिता जी, अभी आपके मरने के कौन से दिन हैं?
बूढ़ा बाप: नहीं नहीं, अब मैं ज़िंदा नहीं रहना चाहता। अब मैं ज़रूर मर जाऊंगा। उफ़, उफ़ मेरा दिल... मेरा दिल बैठा जा रहा है।
बहू: (सर पीट कर) आह, पिता जी आपको क्या हो गया। आपकी तो एक मिनट में आँखें पथरा गईं। मुझे मालूम न था कि आप जल्दी...
बूढ़ा बाप: नहीं बेटी, मैं अभी मरा नहीं। इतनी जल्दी नहीं मर सकता, काफ़ी सख़्त-जान हूँ लेकिन उफ़ उफ़ मेरे दिल को क्या...
बहू: पिता जी, दिल को संभालिए, आपके सिवा हमारा कौन है?
बूढ़ा बाप: मैं जानता हूँ बेटी, इसीलिए तो मरने में इतनी देर लगा रहा हूँ। मगर याद रखो, ये नालायक़... ना ख़ल्फ़... जिसने मुझे इतना दुख पहुंचाया, कभी सुख नहीं पाएगा। उफ़, मेरा दम घुट रहा है।
बहू: (घबरा कर) पिता जी, पिता जी।
बूढ़ा बाप: (गरज कर) वो कभी सुख की नींद नहीं सोएगा। उसे कभी क़रार हासिल नहीं होगा। वो तड़प-तड़प कर मरेगा। एड़ियां रगड़ रगड़ कर... उफ़ मैं चला...
बहू: (चीख़ कर) हाय पिता जी, क्या आप वाक़ई चल बसे?
बूढ़ा बाप: ( यकलख़्त आँखें खोल कर) घबराओ नहीं बेटी, में अभी बिल्कुल ख़त्म नहीं हुआ... ज़रा मेरे पास आओ।
बहू: क्या हुक्म है पिता जी।
बूढ़ा बाप: देखो उस नालायक़ से कहना, मेरी अर्थी को हाथ न लगाए। मुझे अपने हाथों से आग लगाना बेटी... और जब... उफ़ उफ़...
बहू: (जल्दी से) और जब पिता जी...
बूढ़ा बाप: और जब मेरी चिता रोशन हो जाये तो किसी साधू से कहना कि पस-ए-मंज़र में कोई रिक़्क़त अंगेज़ गीत गाए।
बहू: जो हुक्म पिता जी।
बूढ़ा बाप: ऐसा गीत जिसे सुनकर लोगों की आँखों में आँसू जाएं।
बहू: जैसे... दुनिया एक सराय बाबा...
बूढ़ा बाप: हाँ, ये गाना लोगों को बहुत पसंद आएगा। अच्छा तो अब मैं वाक़ई मरने लगा हूँ... उफ़ उफ़ उफ़...
बहू: आह पिता जी, आप सच-मुच मर गए। मैंने समझा था सिर्फ़ मरने की रिहर्सल कर रहे हैं। ख़ैर, कुछ भी हो मैं आपकी रूह की तस्कीन के लिए एक गाना ज़रूर गाऊंगी।
दुनिया एक सराय बाबा, दुनिया एक सराय
जो भी इस आए बाबा
रो-रो जान गँवाए, दुनिया एक सराय
मरने दे मरने वाले को
मत कर हाय हाय बाबा, दुनिया एक सराय...
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