Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

मेरा मन-पसंद सफ़्हा

कृष्ण चंदर

मेरा मन-पसंद सफ़्हा

कृष्ण चंदर

MORE BYकृष्ण चंदर

    कुछ लोग सुबह उठते ही जमाही लेते हैं, कुछ लोग बिस्तर से उठते ही वर्ज़िश करते हैं, कुछ लोग गर्म चाय पीते हैं। मैं अख़बार पढ़ता हूँ और जिस रोज़ फ़ुर्सत ज़्यादा हो उस रोज़ तो मैं अख़बार को शुरू से आख़िर तक मअ इश्तिहारात और अदालत के सम्मनों तक पूरा पढ़ डालता हूँ।

    यूं तो अख़बार सारे का सारा अच्छा होता है लेकिन आम लोगों के लिए अख़बार का हर सफ़ा इतनी दिलचस्पी नहीं रखता। मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो अख़बारों में सिर्फ़ रेस का नतीजा देखते हैं या वो सफ़ा जिस पर रूई, तली, पीतल, लोहा, ताँबा, पटसन, सोना, चांदी, गुड़, पापड़ और आलुओं के सूखे क़त्लों के भाव दर्ज होते हैं और ऐसे भी लोग हैं जो अख़बार का पहला सफ़ा ही पढ़ते हैं जिस पर बड़ी वहशतनाक ख़बरें मोटे मोटे हुरूफ़ में दर्ज होती हैं। रोज़ क़त्ल और डाका और बददियानती और खूनखराबे के वाक़ियात को बड़ी बड़ी सुर्ख़ीयों में छापा जाता है। बा’ज़ लोग अख़बार के हाथ में आते ही उसका इदारिया खोल के पढ़ते हैं जिस पर आज एक चीज़ के हक़ में लिखा गया है तो कल उसी ज़िम्मेदारी से उस चीज़ के ख़िलाफ़ लिखा जाएगा और अगर पहले दिन आप उस चीज़ के हक़ में होंगे तो दूसरे दिन उसके ख़िलाफ़ होजाएंगे। यार लोगों ने इस सूरत-ए-हाल का नाम राय आम्मा रख छोड़ा है। ख़ैर, अपनी अपनी सूझ-बूझ।

    सच पूछिए तो मुझे अख़बार के उन सफ़्हों में से कोई सफ़ा पसंद नहीं। रेस के टिप अक्सर ग़लत निकलते हैं। मैं कई दफ़ा ग़च्चा खा चुका हूँ और रेस के अख़बारी माहिर की जान को रो चुका हूँ, रोटी, पटसन और पापड़ के भाव बदलते देखे हैं, सोना तो ख़ैर सोना है लेकिन चांदी का भाव भी आजकल यूं बढ़ रहा है कि समझ में नहीं आता कि कौन सी धात अच्छी है, सोना या चांदी? यही हाल मिलों, कारख़ानों और बैंकों के हिस्सों का है। उनमें इस क़दर तेज़ी मंदी दिखाई देती है कि मैंने तो अब ये सफ़ा पढ़ना ही छोड़ दिया है। पहला सफ़ा भी मैंने पढ़ना छोड़ दिया है। कभी ये मेरा मनपसंद सफ़ा था, लेकिन मुतवातिर दो साल तक इस सफ़ा की ख़ूनीं और थर्रा देने वाली चीज़ें पढ़ कर मुझे इख़्तलाज-ए-क़ल्ब हो गया है और अब डाक्टरों ने मुझे उस सफ़ा के पढ़ने से मना कर दिया है और जो लोग कि नहीं चाहते हैं कि उनके दिल की हरकत इक दम बंद हो जाए उनके लिए भी परहेज़ मुफ़ीद रहेगा।

    आजकल मेरा मनपसंद सफ़ा वो है जो पहला सफ़ा उलटने के फ़ौरन बाद आता है। मैं दूसरा सफ़ा जिस पर सिर्फ़ इश्तिहार होते हैं, मेरे ख़्याल में ये अख़बार का सबसे सच्चा, सबसे उम्दा और सबसे दिलचस्प सफ़ा होता है। ये इंसानों के लेन-देन और तिजारती कारोबार का सफ़ा है। उनकी ज़ाती मस्रूफ़ियतों और काविशों का आईनादार है। उनकी ज़िंदगी की ठोस समाजी हक़ीक़तों का तर्जुमान है। यहाँ पर आपको कार वाले और बेकार टाइपिस्ट और मिल मालिक मकान की तलाश करने वाले और मकान बेचने वाले, गैराज ढ़ूढ़ने वाले और ज़ाती लाइब्रेरी बेचने वाले, कुत्ते पालने वाले और चूहे मारने वाले, सरसों का तेल बेचने वाले और इंसानों का तेल निकालने वाले, पच्चास लाख का मिल ख़रीदने वाले और पच्चास रुपये की ट्युशन करने वाले सभी भागते दौड़ते, चीख़ते-चिल्लाते, रोते-हंसते नज़र आते हैं। ये हमारी ज़िंदगी का सबसे जीता जागता सफ़ा है जिसका हर इश्तिहार एक मुकम्मल अफ़साना है और हर सतर एक शे’र। यह हमारी दुनिया की सबसे बड़ी सैरगाह है जिसकी रंगारंग कैफ़ियतें मुझे घंटों मस्हूर किए रखती हैं। आइए आप भी मेरे इस मनपसंद सफ़ा की दिलचस्पियों में शामिल हो जाइए। देखिए ज़ाती कालम है।

    नायलॉन जुराबों का स्टाक आगया है, ब्योपोरी फ़ौरन तवज्जो करें। आप कहेंगे ये तो कोई ज़ाती दिलचस्पी की चीज़ नहीं है। भई हमें नायलॉन जुराबों से क्या लेना, यह सही है लेकिन ज़रा सिन्फ़-ए-नाज़ुक से पूछिए, जिनके दिल ये ख़बर सुन कर ही ज़ोर से धड़क उठे होंगे और टांगें ख़ुशी से नाचने लगी होंगी। आजकल औरत के दिल में नायलॉन जुराब की वही क़द्र-ओ-क़ीमत है जो किसी ज़माने में मोतीयों की माला की होती थी। आगे चलिए।

    डार्लिंग फ़ौरन ख़त लिखो, मार्फ़त एस डी खरोंजा नीलामपुर। कौन डार्लिंग है वो। किसी मुसीबत में है वो। वो क्यों उसके घर या किसी दोस्त या सहेली के हाँ ख़त नहीं भिजवा सकता। अख़बार में ये इश्तिहार क्यों दे रहा है कि बेचारा देखिए कैसी कैसी मजबूरियां होंगी, उस बेचारी लड़की के लिए भी। वो भी मेरी तरह हर रोज़ ये अख़बार खोलती होगी। उसमें ज़ाती कालम देखती होगी और अपने लिए कोई ख़बर पाकर कैसी उदास और रंजूर होजाती होगी और आज जब वो ज़ाती कालम में ये ख़बर पढ़ेगी तो कैसे चौंक जाएगी, ख़ुशी से उसका चेहरा चमक उठेगा। मसर्रत की सुनहरी ज़िया उसकी रूह के ज़र्रे ज़र्रे को चमका देगी और वो बेइख़्तियार अख़बार अपने कलेजे से लगालेगी और उसकी लाँबी लाँबी पलकें उसके रुख़्सारों पर झुक जाएँगी यानी अगर उसकी लाँबी पलकें हुईं तो वर्ना ये भी हो सकता है कि उसकी पलकें निहायत छोटी छोटी हों, जैसे चूहिया के बाल होते हैं और माथा घुटा हुआ हो। कुछ भी हो वो एस डी खरोंजा की डार्लिंग है। एस डी खरोंजा कौन है? अब उसके मुताल्लिक़ आप अंदाज़ा लगाइये। मुम्किन है वो कोई भड़ोंजा हो या मामूली क्लर्क हो या हुलास मोनी गोलीयां बेचने वाला हो या नीलापुर में रस गुल्ले और बंगाली मिठाई की दुकान करता हो या किसी बड़े मिल का मालिक हो वो ये सब कुछ हो सकता है और अब सोचते जाइए देखिए ज़िंदगी किस क़दर दिलचस्प होती जा रही है।

    इससे अगला कालम देखिए, ये मकानात का कालम है। ये भी बेहद दिलचस्प है क्योंकि आजकल मकान कहीं ढ़ूंढ़े से भी नहीं मिलते लेकिन यहाँ आपको हर तरह के मकान मिल जाएंगे।

    मेरे पास समुंदर के किनारे एक बंगले में एक अलैहदा कमरा है लेकिन मैं शहर में रहना चाहता हूँ। अगर कोई साहब मुझे शहर के अंदर एक अच्छा कमरा दे सकें तो मैं उन्हें समुंदर के किनारे का अपना कमरा दे दूंगा और साथ ही उसका कुल साज़-ओ-सामान भी जिसमें एक सोफा दो टेबल लैम्प और एक पीतल का लोटा शामिल है।

    लीजिए अगर आप शहरी ज़िंदगी से उक्ता गए हों तो समुंदर के किनारे जाके रहिए। अगर आप समुंदर के किनारे रहने से घबराते हों तो शहर में जाके रहिए। पीतल का लोटा तो कहीं भी रह सकता है।

    ये दूसरा इश्तिहार देखिए,

    किराए के लिए ख़ाली है, नया मकान, आठ कमरे, दो किचन पाँच ग़ुस्लख़ाने, गेराज भी है और मकान के ऊपर छत अभी नहीं है। मगर अगले महीने तक तैयार हो जाएगी। किराएदार फ़ौरन तवज्जो करें।

    आप ये पढ़ कर फ़ौरन तवज्जो करते हैं बल्कि कपड़े बदल कर चलने के लिए आमादा भी हो जाते हैं कि इतने में आपकी नज़र अगली सतर पर पड़ती है, लिखा है,

    “किराया वाजिबी मगर साल भर का पेशगी देना होगा। सालाना किराया अठारह हज़ार।”

    और आप फिर बैठ जाते हैं और अगला इश्तिहार देखते हैं, लिखा है उम्दा खाना, बेहतरीन मंज़र, खुला कमरा, फ़र्नीचर से सजा हुआ बिजली पानी मुफ़्त। किराया सब मिला के साढे़ तीन सौ रुपये माहाना।

    आप ख़ुशी से चिल्ला उठते हैं, मिल गया, मुझे एक कमरा मिल गया और किस क़दर सस्ता और उम्दा और खाना साथ में। वाह वाह, आप फ़ौरन ख़त लिखने की सोचते हैं और फिर कलेजा पकड़ कर बैठ जाते हैं क्योंकि आगे लिखा है,

    “दिलकुशा होटल दार्जिलिंग”

    ज़ाहिर है कि आप बंबई में नौकर हैं। दिलकुशा होटल, दार्जिलिंग में रह कर बंबई की नौकरी नहीं कर सकते।

    अगला कालम देखिए, ये अगले दो कालम “ज़रूरत है” के इश्तिहारों से भरे पड़े हैं जिसमें एक ख़ूबसूरत टाइपिस्ट गर्ल की ज़रूरत है। एक बुड्ढे मद्रासी एकाउंटेंट की ज़रूरत है जो कनारी ज़बान के अलावा तामिल, तेलगु, मलयालम, शहनाई और अरबी भी जानता हो, तनख़्वाह सत्तर रुपये माहवार। एक कम्पोंडर की ज़रूरत है जो कम अज़ कम एम.बी.बी.एस हो और अगर विलाएत से एल आर सी पी और एफ़ आर सी एस भी हो तो उसे पाँच रुपये सालाना तरक़्क़ी भी दी जाएगी। एक चपरासी की ज़रूरत है जिसे चालीस रुपये तनख़्वाह दी जाएगी। उर्दू अख़बार के लिए एक एडिटर की ज़रूरत है जिसे तीस रुपये माहवार तनख़्वाह दी जाएगी। एक साहब को सेक्रेटरी की ज़रूरत है जो उनके लिए तक़रीरें लिख सके। एक जादूगर की ज़रूरत है जो उनका दिल बहला सके। एक लेडी कम्पेनियन की ज़रूरत है जो घोड़े की सवारी जानती हो और गुलमर्ग के होटलों से वाक़फ़ियत रखती हो। एक फिटर की ज़रूरत है जो बड़े सुराख़ में छोटी कील गाड़ सके। एक इंजीनियर की ज़रूरत है जो छोटी कील के लिए बड़ा सुराख़ करसके, एक बावर्ची की ज़रूरत है जो गोश्त के बग़ैर शामी कबाब बना सके। एक धोबी की ज़रूरत है जो क़मीस फाड़ दे लेकिन बटन सालिम रखे और आला हाज़ा उल-क़यास यही वो कालम है जिसे पढ़ कर मुझे अपने समाज की नैरंगियों, उसकी पस्तियों और बुलंदियों और चीरा दस्तियों का अंदाज़ा होता है जो कुछ दुनिया में आपके इर्द-गिर्द हो रहा है। उसकी सच्ची तस्वीर आपको उन्हीं कालमों में मिलती है। अख़बार के बाक़ी सफ़े तो ख़्वाहमख़ाह बेकार, झूट बोल कर हमारा वक़्त ज़ाए करते हैं।

    इसका अगला कालम मोटरों, किताबों और कुत्तों का है। इसमें आप देखेंगे कि एक ही मॉडल की नई गाड़ी है मगर वो दो मुख़्तलिफ़ दामों में बिक रही है। सेठ हुसन लाल की गाड़ी सात हज़ार में बिकाऊ है, क्योंकि वो उसे बेच कर कोई दूसरा मॉडल लेना चाहते हैं और वही गाड़ी मिस्टर मेक्डानल्ड के पास है और वो उसे दो हज़ार में बेचे दे रहे हैं क्योंकि मिस्टर मेक्डानल्ड विलाएत जा रहे हैं। एक ख़ूबसूरत कुत्ता है जो डेढ़ सौ में बिकता है। शेक्सपियर के ड्रामों का बातस्वीर सेट है जो दस रुपये में जा रहा है। ये मैंने बारहा देखा है कि कुत्तों के दाम किताबों से कहीं ज़्यादा हैं और ये भी कि इस कालम में मोटरों और कुत्तों के ख़रीदने और बेचने वाले तो बहुत मिलते हैं, लेकिन किताबों के सिर्फ़ बेचने वाले तो नज़र आते हैं ख़रीदने वाला कोई नहीं। जितने इश्तिहार हैं इससे हमें अपने मुल्क के अज़ीम कल्चर का अंदाज़ा होता है।

    इस सफ़ा का सबसे आख़िरी कालम जिसे मैं सबसे पहले पढ़ता हूँ, शादी का कालम है। बर की ज़रूरत है, एक नौजवान हसीन अठारह साला ग्रेजुएट लड़की के लिए।

    बर की ज़रूरत है, एक ख़ुश-रू ख़ुश-ख़ू और ख़ुशक़ामत तालीम याफ़्ता बेहद हसीन लड़की के लिए जो नाचना-गाना भी जानती है और अदबी ज़ौक़ भी रखती है।

    बर की ज़रूरत है, एक ख़ूबसूरत ख़ानदानी लड़की के लिए जिसका बाप एक मिल का मालिक है, लड़का अच्छा होना चाहिए, ज़ात पात की कोई तमीज़ नहीं।

    और मैं भी ज़ात पात की परवाह किए बग़ैर हर जगह अर्ज़ी भेजने की सोचता हूँ कि इतने में मेरी बीवी मेरे सर पर आन के खड़ी होजाती है और मुझसे पूछती है क्या पढ़ रहे हो? और मैं एक हज़ीं मुस्कुराहट से अपना मनपसंद सफ़ा बंद कर देता हूँ।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

    Register for free
    बोलिए