तारीख़ के चंद औराक़
राहों में पत्थर
जलसों में पत्थर
सीनों में पत्थर
अक़्लों पे पत्थर
आस्तानों पे पथर
दीवानों पे पत्थर
पत्थर ही पत्थर
ये ज़माना पत्थर का ज़माना कहलाता है।
देगें ही देगें
चमचे ही चमचे
सिक्के ही सिक्के
पैसे ही पैसे
सोना ही सोना
चांदी ही चांदी
ये ज़माना धात का ज़माना कहलाता है।
लोग सोने चांदी की ज़ंजीरें बनाते हैं
हमें और आपको पहनाते हैं
हम और आप पहन कर ख़ुश रहते हैं
बल्कि थैंक यू भी कहते हैं।
एक और ज़माना आयरन एज
या’नी लोहे का ज़माना
लोहा वो धात है
जिसका सब लोहा मानते हैं
हल का फल भी लोहा
कारख़ाने की कल भी लोहा
लोहा मक़नातीस बन जाता है
तो चांदी तक को खींच लाता है
सौ सुनार की एक लोहार की
सोने वाले लोहे वालों से डरते हैं
लेकिन कोई कहाँ तक रुकवाएगा
हमारे हाँ भी लोहे का ज़माना आएगा
कच्चा लोहा और किसी काम का नहीं
बस इस से आदमी बनाते हैं
जो मर्द ए आहन कहलाते हैं
उनको ज़ंग लग जाता है
बल्कि खा जाता है
फिर भी लोग घूरे पर से उठा लाते हैं
ज़िंदाबाद के नारों से जलाते हैं
ये और दौर है
लोग नंगे घूमते हैं
नंगे नाचते हैं
नंगे क्लबों में जाते हैं
एक दूसरे को जलसों में नंगा करते हैं
अवाम तक के कपड़े उतार लेते हैं
बल्कि खाल खींच लेते हैं
खालों से ज़र-ए-मुबादला कमाते हैं
गोश्त कच्चा खा जाते हैं
न चूल्हा है न सीख़ है
ये ज़माना क़ब्ल अज़ तारीख़ है।
मिलावट की सनअ’त
रिश्वत की सनअ’त
कोठी की सनअ’त
पगड़ी की सनअ’त
हलवे की सनअ’त
मांडे की सनअ’त
बयानों और नारों की सनअ’त
तावीज़ों और गंडों की सनअ’त
ये हमारे हाँ का सनअ’ती दौर है।
काग़ज़ के कपड़े
काग़ज़ के मकान
काग़ज़ के आदमी
काग़ज़ के जंगल
काग़ज़ के शेर
ज़रा नम हो तो सब के सब ढेर
काग़ज़ के नोट
काग़ज़ के वोट
काग़ज़ का ईमान
काग़ज़ के मुसलमान
काग़ज़ के अख़बार
और काग़ज़ ही के कालम निगार
ये सारा काग़ज़ का दौर है।
अब इस आख़िरी दौर को देखिए,
पेट रोटी से ख़ाली
जेब पैसे से ख़ाली
बातें बसीरत से ख़ाली
वादे हक़ीक़त से ख़ाली
दिल दर्द से ख़ाली
दिमाग़ अक़ल से ख़ाली
शहर फ़र्ज़ानों से ख़ाली
जंगल दीवानों से ख़ाली
ये ख़लाई दौर है
लोग तवहहुम के गुब्बारे फुलाते हैं
माजून-ए-फ़लक सैर खाते हैं
रुयत-ए-हलाल कमेटियां बनाते हैं
आसमान के तारे तोड़ लाते हैं
डट के दुंबे नोश फ़रमाते हैं
बैत-उल-ख़ला में मदार पर पहुंच जाते हैं
हमारे हाँ का ख़लाई दौर यही है।
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