सोवेट का सिंदबाद जहाज़ी
रोचक तथ्य
आलिया अलिफ़ और अफ़गनी पतरूफ़
(मास्को के एक एडीटर की जिद्दत तराज़ी की दास्तान)
माहाना'' एडवेंचर'' के अमला इदारत में कुछ अर्से से ये चीज़ बहुत महसूस की जा रही थी कि मार्कीट में ऐसा आर्ट बिलकुल मफ़क़ूद है जो नौजवान क़ारी की तवज्जा अपनी तरफ़ मुनातिफ़ कर उसके।
मुख़्तलिफ़ क़सम के अदबी मज़ामीन मुहय्या हो सकते थे मगर उन से असल मतलब पूरा न होता था। अगर साफ़ बयानी से काम लिया जाए तो कहना पड़ता है कि ऐसे मज़ामीन का मुताला नौजवान क़ारी पर असर पज़ीर होने की बजाय, उस की रूह को तारीक बना रहा था। इस के बर-अक्स एडीटर ऐसे लिटरेचर की तलाश में था जो नौजवान क़ुलूब पर गिरफ़्त हासिल करले।
उल-क़िस्सा ये फ़ैसला किया गया कि फ़र्माइश पर हसब-ए-ख़वाहिश एक तवील कहानी लिखवाई जाये।ये सन कर रिसाले का एजैंट फ़ौरन ही मोल्ड ओनतसीफ़ नामी एक काबिल मुसन्निफ़ के पास गया और उसे ये ख़बर कह सुनाई। दूसरे रोज़ मोल्ड ओनतसीफ़ एडीटर के कमरे में मौजूद था।
''किताब शानदार, दिलचस्प मुहिम्मात से पर और जिद्दत का पहलू लिए।।।।।। मिसाल के तौर पर वो सोवीट सनद बाद जहाज़ी का सफ़र नामा हो।।।।।। ऐसी तसनीफ़ जो क़ारी पर रात की नींद हराम करदे।'' एडीटर ने मुसन्निफ़ को समझाया।
''सनद बाद जहाज़ी!।।।।।। ऐसी किताब लिखी जा सकती है।''मुसन्निफ़ ने मुख़्तसर सा जवाब दिया।
''मामूली सनद बाज़ जहाज़ी नहीं बल्कि सोवीट का सनद बाद जहाज़ी हो।''
'' आप मुतमइन रहें, वो दमिशक़ का नहीं होगा!''
मुसन्निफ़ बातूनी ना था, इस लिए ये फ़ौरन कहा जा सकता है कि वो अमल का दिलदादा था।
नॉवेल मुक़र्रर वक़्त तक लिख लिया गया।मोलडावनतसीफ़ ने असल कहानी से अलैहदगी इख़्तियार न की।।।।।। सनद बाद जहाज़ी एक बार फिर पैदा होगया।
सोवीट के एक नौजवान का जहाज़ तूफ़ान की नज़र हो जाता है।ख़ुशक़िसमती से लहरें उसे एक ग़ैर आबाद जज़ीरे पर बहा ले जाती हैं। वो इस जज़ीरे में तन-ए-तनहा और क़ुदरती अनासिर के मुक़ाबले में बिलकुल बेचारा है। चारों तरफ़ ख़तरे हैं। क़दम क़दम पर वहशी दरिंदों का ख़ौफ़ दामन गीर है मगर सोवीट का सिंदबाद जहाज़ी, कमाल हिम्मत-ओ-शुजाअत के साथ इन तमाम नाक़ाबिल-ए-तसख़ीर आफ़ात का मुक़ाबला करता है।
तीन साल के बा'द इत्तिफ़ाक़न चंद सय्याह इस जज़ीरे पर आंकलते हैं और उसे ख़ूब तंदुरुस्त पाते हैं। इस वक़्त इस ने तमाम मुश्किलात पर क़ाबू पा कर रिहाइश के लिए एक मकान बना लिया था। इस के पास ही एक छोटा सा बाग़ीचा लगा रखा था।
बंदरों की दमों से पहनने के लिए लिबास तयार कर लिए थे और सुबह वक़्त पर बेदार होने की ख़ातिर एक तोता पाल रखा था, जिसे ये अल्फ़ाज़ रटवा दिए गए थे:
''सुबह बख़ैर! बिस्तर को छोड़ दो! आओ सुबह की वर्ज़िश शुरूअ' करें।''
''बहुत ख़ूब'' ऐडीटर ने नॉवेल का ख़ुलासा सन कर कहा'' ख़ुसूसन बंदरों की दमों से लिबास तयार करने की इख़तिराअ' ख़ूब रही है।।।।।। बहुत ख़ूब, मगर देखिए मुझे आप की किताब का बुनियादी मक़्सद साफ़ तौर पर समझ में नहीं आया।''
''नेचर के साथ इंसान की कश्मकश।।।।।। और किया?'' मोल्ड ओनतसीफ़ ने हसब-ए-आदत इख़तिसार पसंदी से काम लेते हुए जवाब दिया।
''ये तो दुरुस्त है मगर किताब में कोई सोवीटी ख़ुसूसियत नहीं है।''
''तोता जो है?।।।।।। वो रेडीयो का नियम-उल-बदल समझा जाना चाहिए। एक तजरबाकार नाशिर अलसोत''
तोते वाला ख़याल अच्छी इख़तिराअ' है और बाग़ वाला मज़मून भी अपनी जगह पर बहुत मुनासिब है मगर किताब के औराक़ में माशरी बेदारी का उंसुर बिल्कुल मौजूद नहीं। मिसाल के तौर पर मक़ामी ट्रेड यूनीयन कमेटी कहाँ है?''
ये सन कर मोल्ड ओनतसीफ़ तिलमिला उठा। जूंही उसे ये मालूम हुआ कि शायद उस की तसनीफ़ क़बूल ना की जाएगी, उस की इख़तिसार पसंदी-ओ-कम गोई चशमज़दन में ग़ायब होगई। वो अब मुदल्लिल बेहस पर उतर आया।
''मुक़ामी ट्रेड यूनीयन कहाँ से पैदा होसकती है? क्या आप भूल गए हैं कि जज़ीरा ग़ैर आबाद है?''
''यक़ीनन आप दरुस्त फ़र्मा रहे हैं। जज़ीरा वाक़ई ग़ैर आबाद है मगर ट्रेड यूनीयन का वहां पर होना लाज़िम है। गो में आर्टिस्ट नहीं हूँ मगर मुझे यक़ीन है कि मैंने किसी ना किसी तरह ऐसी कमेटी वहां पर ज़रूर बना दी होती जिस से सोवीट हुकूमत की ख़ुसूसीयत ज़ाहिर होसके।''
''मगर तमाम कहानी का प्लाट सिर्फ़ इस हक़ीक़त पर उस्तुवार गया है कि जज़ीरा ग़ैर आबाद।।।।।।''
ये कहते हुए मोल्ड ओनतसीफ़ की निगाहें इत्तिफ़ाक़न ऐडीटर की आँखों से दो चार हुईं। वो घबरा कर अपने आख़िरी अल्फ़ाज़ अदा न करसका। इस ने फ़ौरन ही एडीटर से तसफ़िया करने का अज़्म कर लिया।
आप दरुस्त फ़र्मा रहे हैं। इस ने अपनी उंगली उठाते हुए कहा। वाक़ई आप का फ़रमाना बहुत हद तक दरुस्त है। में हैरान हूँ।।।।।। कि मुझे ये ख़्याल क्यों ना पैदा हुआ?।।।।।। जहाज़ तबाह होने पर दो शख़्स किनारे लग जाते हैं, सिंदबाद जहाज़ी और यूनीयन का सदर।''
''इन में इसी यूनीयन के दो मैंबर और शामिल कर लीजिए।''एडीटर ने सर्द मोहरी से कहा।
''बस!''
''नहीं, नहीं!।।।।।। दो मैंबर और एक मुस्तइद रज़ाकार औरत भी जो मैंबरों से चंदा फ़राहम करेगी।''
''चंदा औरत क्यों इकट्ठा करे? और भला वो चंदा कहाँ से लेगी?।''
''सनद बाद जहाज़ी से।''
''मगर ये काम सद्र बाआसानी करसकता है जो बिल्कुल बेकार होगा।''
''कामरेड मोलडावनतसीफ़! यही मक़ाम है जहाँ पर आप ग़लती कररहे हैं। यूनीयन के सद्र को अपना वक़्त और दिमाग़ ऐसे हक़ीर कामों पर सिर्फ़ नहीं करना चाहिए। हम सोवीट इसी चीज़ के ख़िलाफ़ तो जिहाद कररहे हैं। इस के सिपुर्द निगरानी और इंतिज़ाम ऐसे ज़रूरी उमूर होने चाहिऐं।''
''ख़ैर, तो फिर वो औरत ही सही'' मुसन्निफ़ ने बेचारगी से कहा।''ये वाक़ई अच्छा ख़्याल है।।।।।। वो सदर या सिंदबाद जहाज़ी से शादी कर लेगी। बहरहाल इस तरह किताब ख़ासी दिलचस्प हो जाएगी।''
शादी वादी के मुआ'मले को छोड़ हमें बाज़ारी और और फ़ुज़ूल इश्क़िया दरकार दरकार नहीं औरत औरत को सिर्फ़ की की ही ही के लिए रहने जौ जो शुदा शूदा को ऐसे ऐसे मैं महफ़ूज़ महफ़ूज़ करे करेगी जिसे आग न लग सके।''
ये सन कर मोल्ड ओनतसीफ़ ग़ुस्से में अपनी कुर्सी पर पेच-ओ-ताब खाने लगा।
''माफ़ फ़रमाईए, किसी ग़ैर आबाद जज़ीरे में ऐसा संददुक़चा कहाँ से दस्तियाब होसकता है?''
एडीटर ने एक लम्हा ग़ौर करने के बा'द कहा।
''ठ्ह्रेए, ठ्ह्रेए, किताब के पहले बाब में एक बहुत मुनासिब जगह मौजूद है।सनद बाद जहाज़ी और यूनीयन के मैंबरों के इलावा, लहरें जज़ीरे के साहिल पर मुख़्तलिफ़ अश्या बहा ले आती हैं।।।।।।''
''मिसाल के तौर पर एक कुल्हाड़ी, बंदूक़,शराब का पीपा और एक अदद बोतल अरक़ 'मुसफ़्फ़ा ख़ून, की।।।।।।'' मुसन्निफ़ ने संजीदगी से उन अश्या का नाम गिनते हुए कहा।
''शराब का पीपा काट दीजीए''एडीटर फ़ौरन बोल उठा'' और जनाब इस ख़ून साफ़ करनेवाली दवा की ज़रूरत किया है? उसे कौन इस्तिमाल करेगा? इस की बजाय स्याही की दौलत लिख लीजीएगा।।।।।। लेकिन ग़ैर आतशगीर सन्दूकचे का होना अज़ बस ज़रूरी है।''
''वो क्यों? मैंबरों के चंदे किसी दरख़्त के खोखले तने में बहिफ़ाज़त रखे जा सकते हैं, आख़िर कौन चुरा ले गा ए नहीं?''
''ये भी एक ही कही हज़रत आप ने! सनद बाद जहाज़ी को भूल गए आप? यूनीयन के सद्र को आप ने नज़र अंदाज़ ही दिया। इस के अलावा शाप कमीशन भी तो वहीं मौजूद होगा।''
''क्या शाप कमीशन को भी लहरें बहा कर ले आई थीं।'' मोल्ड ओनतसीफ़ ने कमज़ोर आवाज़ में दरयाफ़्त किया।
''जी हाँ!''
कुछ अर्सा ख़ामोशी तारी रही।
''शायद लहरों ने यूनीयन के इजलास के लिए एक मेज़ भी जज़ीरे पर ला फेंकी थी?'' मुसन्निफ़ ने ये कहा।
''यक।।।।।।य।।।।।।नन! तसनीफ़ के लिए मुनासिब माहौल का पैदा करना ज़रूरी है। ख़ैर! अब चीज़ें मौजूद होगईं।।। मेज़, पानी की सुराही, छोटी सी घंटी और मेज़पोश। आप लहर के ज़रीये जिस काम का मेज़पोश चाहें जज़ीरे के साहिल पर फूंकवा सकते हैं। वो सुर्ख़ रंग का हो या सबज़ रंग का! में आप की सिंह आना तख़लीक़ में दख़ल नहीं देना चाहता।मगर।।।।।।अव्वलीन चीज़ ये होनी चाहिए कि मज़दूरों के गिरोहों की मदद की जा सके।''
''लहरें मज़दूरों के गिरोह पैदा नहीं कर सकतीं,'' नय ख़ुद ख़ुद कै अंदाज़ अंदाज़ में ज़रा ख़याल तौ तो अगर अगर एक दफ़अ'तन साहिल पर हज़ारों हज़ारों दय दे तौ किया क्या मज़हका ख़ेज़ न होगा।''
''साथ साथ ही अगर ख़ुशगवार मिज़ाह की चाशनी भी मौजूद रहे तो क्या मुज़ाइक़ा है।'' एडीटर ने जवाब दिया।
''नहीं साहिब! लहर ये काम नहीं करसकती।''
''आप लहरों का ज़िक्र बार-बार क्यूँ कररहे हैं?'' एडीटर ने दफ़अ'तन मुतअज्जिब हो कर दरयाफ़्त किया।
''तो फिर बताइए ये मज़दूरों के गिरोह कहाँ से आगरें गे? जज़ीरा तो ग़ैर आबाद है।''
''आप से ये किस ने कहा है कि जज़ीज़ा ग़ैर आबाद है? आप मुझे ख़्वाहमख़्वाह चक्कर में डाल रहे हैं। मुआमला बिलकुल साफ़ है। एक जज़ीरा या इस से बेहतर एक दार-उल-ख़लाफ़ा है जहां मुख़्तलिफ़ नौईयत के दिलचस्प और ताज़ा बह ताज़ा हादिसात वक़ूअ पज़ीर होते रहते हैं। ट्रेड यूनीयन अपना काम बदस्तूर कररही है। मगर इत्तिफ़ाक़न इन की हिक्मत-ए-अमली नाक़ाबिल एतिमाद हो जाती है। इस पर एक ज़हीन मज़दूर औरत इस के नक़ाइस ज़ाहिर करती है। मज़दूरों के गिरोह उस की हर तरह इमदाद करते हैं।।। सदर सख़्त मुसीबत में गिरफ़्तार हो जाता है।।। आख़िरी अबवाब में आप एक इजलास मुनाक़िद करा सकते हैं जो सिंह आना नुक़्ता-ए-नज़र से खासतौर पर मूसिर साबित होगा।।।।।। बस सिर्फ़ इतना क़िस्सा है।''
''और वो सनद बाद जहाज़ी?''
''हाँ, हाँ, ममनून हूँ कि आप ने मुझे याद दिला दिया। दरअसल में सनद बाद जहाज़ी से घबराता हूँ। इस का नाम ही सिरे से काट दीजीए।।।।।। कैसा मजहूल और महमिल सा किरदार है!''
''अब में आप का मतलब बख़ूबी समझ गया हूँ।'' मोल्ड ओनतसीफ़ ने कमज़ोर आवाज़ में कहा'' ऐसी कहानी कल तक तैय्यार हो जाएगी।''
''ख़ुदा आप को कामयाबी नसीब करे।।।।।। हाँ, देखिए ना कै इब्तिदाई बाबों बाबों आप आप जहाज़ जहाज़ को का का ज़िक्र किया ख़याल मैं इस की इस ख़ास कोई ख़ास इस हादसे इस बग़ैर ही काम चल काम चल इस सूरत इस नॉवेल में दिलचस्प रहे दिलचस्प आप आप का ख़याल ख़्याल अच्छा अच्छा ख़ुदाहाफ़िज़!''
तन्हाई में एडीटर ने मुस्कुराते हुए ख़याल किया।
''शुक्र है, आख़िर कार अब''एडवेंचर'' के लिए ऐसी कहानी लिखी जाएगी जो बैयकवक़त दिलचस्प और आर्ट के लिहाज़ से कामिल होगी।''
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- पुस्तक : منٹو کے غیر مدون تراجم (पृष्ठ Manto Ke Ghair Mudavvan Tarajim)
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