Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Amir Hamza Saqib's Photo'

अमीर हम्ज़ा साक़िब

1971 | भिवंडी, भारत

नई नस्ल के महत्वपूर्ण शायर।

नई नस्ल के महत्वपूर्ण शायर।

अमीर हम्ज़ा साक़िब के शेर

474
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का

तुम्हारे ज़िक्र को सब शर्त-ए-फ़न बनाते हैं

तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार

तब ख़ानक़ाह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में आए हैं

तू आया लौट आया है गुज़रे दिनों का नूर

चेहरों पे अपने वर्ना तो बरसों का ज़ंग था

ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की

नए लिबास भी अब तो पुराने लगते हैं

मेरी दुनिया इसी दुनिया में कहीं रहती है

वर्ना ये दुनिया कहाँ हुस्न-ए-तलब थी मेरा

रौशन अलाव होते ही आया तरंग में

वो क़िस्सा-गो ख़ुद अपने में इक दास्तान था

मकाँ उजाड़ था और ला-मकाँ की ख़्वाहिश थी

सो अपने आप से बाहर क़याम कर लिया है

तेरी ख़ुशबू तिरा पैकर है मिरे शेरों में

जान यूँही नहीं ये तर्ज़-ए-मिसाली मेरा

ख़बर भी है तुझे इस दफ़्तर-ए-मोहब्बत को

जलाने जलने में क्या क्या ज़माने लगते हैं

मेरी बरहना पुश्त थी कोड़ों से सब्ज़ सुर्ख़

गोरे बदन पे उस के भी नीला निशान था

फिर बदन में थकन की गर्द लिए

फिर लब-ए-जू-ए-बार हैं हम लोग

एक जहान-ए-ला-यानी ग़र्क़ाब हुआ

एक जहान-ए-मानी की तश्कील हुई

लहू जिगर का हुआ सर्फ़-ए-रंग-ए-दस्त-ए-हिना

जो सौदा सर में था सहरा खंगालने में गया

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए