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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Amir Hamza Saqib's Photo'

अमीर हम्ज़ा साक़िब

1971 | भिवंडी, भारत

एक बहुत प्रतिभाशाली उर्दू शायर, अपने अनूठे अंदाज़ और गहरी साहित्यिक समझ के लिए जाने जाते हैं

एक बहुत प्रतिभाशाली उर्दू शायर, अपने अनूठे अंदाज़ और गहरी साहित्यिक समझ के लिए जाने जाते हैं

अमीर हम्ज़ा साक़िब

ग़ज़ल 91

अशआर 13

तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का

तुम्हारे ज़िक्र को सब शर्त-ए-फ़न बनाते हैं

तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार

तब ख़ानक़ाह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में आए हैं

ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की

नए लिबास भी अब तो पुराने लगते हैं

तू आया लौट आया है गुज़रे दिनों का नूर

चेहरों पे अपने वर्ना तो बरसों का ज़ंग था

मेरी दुनिया इसी दुनिया में कहीं रहती है

वर्ना ये दुनिया कहाँ हुस्न-ए-तलब थी मेरा

लेख 1

 

पुस्तकें 5

 

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