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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

1947 | मुंबई, भारत

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 5

 

अशआर 6

जो चुप रहा तो वो समझेगा बद-गुमान मुझे

बुरा भला ही सही कुछ तो बोल आऊँ मैं

इक मुसलसल दौड़ में हैं मंज़िलें और फ़ासले

पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह

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वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं

मगर ये दिल को क्या हुआ क्यूँ बुझ गया पता नहीं

फिर उस के ब'अद तअल्लुक़ में फ़ासले होंगे

मुझे सँभाल के रखना बिछड़ जाऊँ मैं

दर्द की सारी तहें और सारे गुज़रे हादसे

सब धुआँ हो जाएँगे इक वाक़िआ रह जाएगा

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