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मख़दूम मुहिउद्दीन

1908 - 1969 | हैदराबाद, भारत

महत्वपूर्ण प्रगतिशील शायर। उनकी कुछ ग़ज़लें ' बाज़ार ' और ' गमन ' , जैसी फिल्मों से मशहूर

महत्वपूर्ण प्रगतिशील शायर। उनकी कुछ ग़ज़लें ' बाज़ार ' और ' गमन ' , जैसी फिल्मों से मशहूर

मख़दूम मुहिउद्दीन

ग़ज़ल 18

नज़्म 38

अशआर 25

हयात ले के चलो काएनात ले के चलो

चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो

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आप की याद आती रही रात भर

चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर

हम ने हँस हँस के तिरी बज़्म में पैकर-ए-नाज़

कितनी आहों को छुपाया है तुझे क्या मालूम

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इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे

दिल के अंगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे

बज़्म से दूर वो गाता रहा तन्हा तन्हा

सो गया साज़ पे सर रख के सहर से पहले

क़ितआ 5

 

क़िस्सा 2

 

पुस्तकें 35

चित्र शायरी 4

 

वीडियो 27

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
आप की याद आती रही रात भर

मख़दूम मुहिउद्दीन

गुलू-ए-यज़दाँ में नोक-ए-सिनाँ भी टूटी है

मख़दूम मुहिउद्दीन

बढ़ गया बादा-ए-गुल-गूँ का मज़ा आख़िर-ए-शब

मख़दूम मुहिउद्दीन

सीमाब-वशी तिश्ना-लबी बा-ख़बरी है

मख़दूम मुहिउद्दीन

'ग़ालिब'

तुम जो आ जाओ आज दिल्ली में मख़दूम मुहिउद्दीन

चाँद तारों का बन

मोम की तरह जलते रहे हम शहीदों के तन मख़दूम मुहिउद्दीन

बढ़ गया बादा-ए-गुल-गूँ का मज़ा आख़िर-ए-शब

मख़दूम मुहिउद्दीन

ऑडियो 8

आप की याद आती रही रात भर

उसी चमन में चलें जश्न-ए-याद-ए-यार करें

एक था शख़्स ज़माना था कि दीवाना बना

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