Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Muztar Khairabadi's Photo'

मुज़्तर ख़ैराबादी

1865 - 1927 | ग्वालियर, भारत

प्रसिद्ध फ़िल्म गीतकार जावेद अख़्तर के दादा

प्रसिद्ध फ़िल्म गीतकार जावेद अख़्तर के दादा

मुज़्तर ख़ैराबादी

ग़ज़ल 73

अशआर 207

मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी

बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला

वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में

इक तिरे आने से पहले इक तिरे जाने के बाद

व्याख्या

यह शे’र उर्दू के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र का मूल विषय इंतज़ार और विरह है। वैसे तो एक आम इंसान की ज़िंदगी में कई बार और कई रूपों में कठिन समय आते हैं लेकिन इस शे’र में एक आशिक़ के मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए शायर ये कहना चाहत है कि एक आशिक़ पर सारी उम्र में दो वक़्त बहुत कठिन होते हैं। एक वक़्त वो जब आशिक़ अपने प्रिय के आने का इंतज़ार करता है और दूसरा वो समय जब उसका प्रिय उस से दूर चला जाता है। इसीलिए कहा है कि मेरी ज़िंदगी में मेरे महबूब दो कठिन ज़माने गुज़रे हैं। एक वो जब मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ और दूसरा वो जब तुम मुझे वियोग की स्थिति में छोड़ के चले जाते हो। ज़ाहिर है कि दोनों स्थितियाँ पीड़ादायक हैं। इंतज़ार की अवस्था

शफ़क़ सुपुरी

  • शेयर कीजिए

इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता

तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता

उसे क्यूँ हम ने दिया दिल जो है बे-मेहरी में कामिल जिसे आदत है जफ़ा की

जिसे चिढ़ मेहर-ओ-वफ़ा की जिसे आता नहीं आना ग़म-ओ-हसरत का मिटाना जो सितम में है यगाना

जिसे कहता है ज़माना बुत-ए-बे-महर-ओ-दग़ा-बाज़ जफ़ा-पेशा फ़ुसूँ-साज़ सितम-ख़ाना-बर-अन्दाज़

ग़ज़ब जिस का हर इक नाज़ नज़र फ़ित्ना मिज़ा तीर बला ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर ग़म-ओ-रंज का बानी क़लक़-ओ-दर्द

का मूजिब सितम-ओ-जौर का उस्ताद जफ़ा-कारी में माहिर जो सितम-केश-ओ-सितमगर जो सितम-पेशा है

दिलबर जिसे आती नहीं उल्फ़त जो समझता नहीं चाहत जो तसल्ली को समझे जो तशफ़्फ़ी को

जाने जो करे क़ौल पूरा करे हर काम अधूरा यही दिन-रात तसव्वुर है कि नाहक़

उसे चाहा जो आए बुलाए कभी पास बिठाए रुख़-ए-साफ़ दिखाए कोई

बात सुनाए लगी दिल की बुझाए कली दिल की खिलाए ग़म-ओ-रंज घटाए रह-ओ-रस्म

बढ़ाए जो कहो कुछ तो ख़फ़ा हो कहे शिकवे की ज़रूरत जो यही है तो चाहो जो

चाहोगे तो क्या है निबाहोगे तो क्या है बहुत इतराओ दिल दे के ये किस काम का दिल

है ग़म-ओ-अंदोह का मारा अभी चाहूँ तो मैं रख दूँ इसे तलवों से मसल कर अभी मुँह

देखते रह जाओ कि हैं उन को हुआ क्या कि इन्हों ने मिरा दिल ले के मिरे हाथ से खोया

  • शेयर कीजिए

मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत

करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे

पुस्तकें 1

 

वीडियो 8

This video is playing from YouTube

वीडियो का सेक्शन
अन्य वीडियो
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे

इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

एजाज़ हुसैन हज़रावी

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

मुज़्तर ख़ैराबादी

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

मेहरान अमरोही

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

अज्ञात

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

मुज़्तर ख़ैराबादी

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

हबीब वली मोहम्मद

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

इक़बाल बानो

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

मुज़्तर ख़ैराबादी

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

मुज़्तर ख़ैराबादी

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

मोहम्मद रफ़ी

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए