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क़ुर्रतुलऐन हैदर

1926 - 2007 | नोएडा, भारत

उर्दू की महत्वपूर्ण महिला कथाकार. ‘आग का दरिया’ के अतिरिक्त कई उपन्यास,अफ़्साने और जीवनी परक पुस्तकों की रचनाकार. पद्मश्री और ज्ञानपीठ से सम्मानित.

उर्दू की महत्वपूर्ण महिला कथाकार. ‘आग का दरिया’ के अतिरिक्त कई उपन्यास,अफ़्साने और जीवनी परक पुस्तकों की रचनाकार. पद्मश्री और ज्ञानपीठ से सम्मानित.

क़ुर्रतुलऐन हैदर की कहानियाँ

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आवारा-गर्द

दुनिया की सैर पर निकले एक यूरोपीय जर्मन लड़के की कहानी। वह पाकिस्तान से भारत आता है और बंबई में एक सिफ़ारिशी मेज़बान का मेहमान बनता है। बंबई में वह कई दिन रुकता है, लेकिन सारा सफ़र पैदल ही तय करता है। रात को खाने की मेज़ पर अपनी मेज़बान से वह यूरोप, जर्मन, द्वितीय विश्व युद्ध, नाज़ी और अपने अतीत के बारे में बात करता है। भारत से वह श्रीलंका जाता है जहाँ सफ़र में एक सिंघली बौद्ध उसका दोस्त बन जाता है। वह दोस्त उसे नदी में नहाने की दावत देता है और खु़द डूबकर मर जाता है। लंका से होता हुआ है वह सैलानी लड़का वियतनाम जाता है। वियतनाम में जंग जारी है और जंग की एक गोली उस नौजवान यूरोपीय आवारागर्द को भी लील जाती है।

पतझड़ की आवाज़

यह कहानी की मरकज़ी किरदार तनवीर फ़ातिमा की ज़िंदगी के तजुर्बात और ज़ेहनियत की अक्कासी करती है। तनवीर एक अच्छे परिवार की सुशिक्षित लड़की है लेकिन ज़िंदगी जीने का फ़न उसे नहीं आता। उसकी ज़िंदगी में एक के बाद एक तीन मर्द आते हैं। पहला मर्द खु़श-वक़्त सिंह है जो ख़ुद से तनवीर फ़ातिमा की ज़िंदगी में दाख़िल होता है। दूसरा मर्द फ़ारूक़, पहले खु़श-वक़्त सिंह के दोस्त की हैसियत से उससे परिचित होता है और फिर वही उसका सब कुछ बन जाता है। इसी तरह तीसरा मर्द वक़ार हुसैन है जो फ़ारूक़ का दोस्त बनकर आता है और तनवीर फ़ातिमा को दाम्पत्य जीवन की ज़ंजीरों में जकड़ लेता है। तनवीर फ़ातिमा पूरी कहानी में सिर्फ़ एक बार ही अपने भविष्य के बारे में कोई फ़ैसला करती है, खु़श-वक़्त सिंह से शादी न करने का। और यही फ़ैसला उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित होता है क्योंकि वह अपनी ज़िंदगी में आए उस पहले मर्द खु़श-वक़्त सिंह को कभी भूल नहीं पाती।

ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे

यह कहानी पश्चिमी जर्मनी में जा रही एक ट्रेन से शुरू होती है। ट्रेन में पाँच लोग सफ़र कर रहे हैं। उनमें एक ब्रिटिश प्रोफे़सर है और उसके साथ उसकी बेटी है। साथ में एक कनाडाई लड़की और एक ईरानी प्रोफेसर हैं। शुरू में सब ख़ामोश बैठे रहते हैं। फिर धीरे-धीरे आपस में बातचीत करने लगता है। बातचीत के दौरान ही कनाडाई लड़की ईरानी प्रोफे़सर को पसंद करने लगती है। ट्रेन का सफ़र ख़त्म होने के बाद भी वे मिलते रहते हैं और अपने ख़ानदानी शजरों की उधेड़-बुन में लगे रहते हैं। उसी उधेड़-बुन में वे एक-दूसरे के क़रीब आते हैं और एक ऐसे रिश्ते में बंध जाते हैं जिसे कोई नाम नहीं दिया जाता। चारों तरफ जंग का माहौल है। ईरान में आंदोलन हो रहे हैं। इसी बीच एक दिन एयरपोर्ट पर धमाका होता है। उस बम-धमाके में ईरानी प्रोफे़सर और उसके साथी मारे जाते हैं। उस हादसे का कनाडाई लड़की पर जो असर पड़ता है वही इस कहानी का निष्कर्ष है।

फ़ोटोग्राफ़र

उत्तर-पूर्व के एक शांत क़स्बे में स्थित एक डाक-बंगले के फ़ोटोग्राफ़र की कहानी। फ़ोटोग्राफ़र ज़्यादा टूरिस्टों के न होने के बाद भी अपने क़स्बे में जमा रहता है। डाक-बंगले में इक्का-दुक्का टूरिस्ट आते हैं जिनसे काम के लिए उसने डाक-बंगले के माली से समझौता कर लिया है। उन्हीं टूरिस्टों में एक शाम एक नौजवान और एक लड़की डाक-बंगले में आते हैं। नौजवान मशहूर संगीतकार है और लड़की मशहूर-तरीन नृत्यांगना। दोनों खुश हैं और अगले दिन बाहर घूमने जाते वक़्त वे फ़ोटोग्राफ़र से फोटो भी खिंचवाते हैं, लेकिन लड़की उसे ले जाना भूल जाती है। पंद्रह साल बाद इत्तेफ़ाक़ से वह फिर उसी डाक-बंगले में आती है और फ़ोटोग्राफ़र को वहीं पाकर हैरान होती है। फ़ोटोग्राफ़र भी उसे पहचान लेता है और उसके साथी के बारे में पूछता है। साथी, जो ज़िंदगी की भीड़ में कहीं खो गया और उसे खोए हुए भी मुद्दत हो गई है...

मलफ़ूज़ात-ए-हाजी गुल बाबा बेक्ताशी

यह एक प्रयोगात्मक कहानी है। इसमें सेंट्रल एशिया की परम्पराओं, रीति-रिवाजों और धार्मिक विचारों को केंद्र बिंदू बनाया गया है। यह कहानी एक ही वक़्त में वर्तमान से अतीत और अतीत से वर्तमान में चलती है। यह उस्मानिया हुकूमत के दौर की कई अनजानी घटनाओं का ज़िक्र करती है, जिनमें मुर्शिद हैं और उनके मुरीद है। फ़क़ीर हैं और उनका खु़दा और रसूल से रुहानी रिश्ता है। मुख्य किरदार एक ऐसे ही बाबा से मिलती है। वह उनके पास एक औरत का ख़त लेकर जाती, जिसका शौहर खो गया है और वह उसकी तलाश में दर-दर भटक रही है। वह बाबा की उस रुहानी दुनिया के कई अनछुए पहलुओं से वाक़िफ़ होती हैं जिन्हें आम इंसानी आसानी से नज़र-अंदाज़ करके निकल जाता है।

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Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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