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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सहबा अख़्तर

1931 - 1996 | कराची, पाकिस्तान

सहबा अख़्तर

ग़ज़ल 31

नज़्म 4

 

अशआर 11

अगर शुऊर हो तो बहिश्त है दुनिया

बड़े अज़ाब में गुज़री है आगही के साथ

मेरे सुख़न की दाद भी उस को ही दीजिए

वो जिस की आरज़ू मुझे शाएर बना गई

हमें ख़बर है ज़न-ए-फ़ाहिशा है ये दुनिया

सो हम भी साथ इसे बे-निकाह रखते हैं

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तुम ने कहा था चुप रहना सो चुप ने भी क्या काम किया

चुप रहने की आदत ने कुछ और हमें बदनाम किया

सुबूत माँग रहे हैं मिरी तबाही का

मुझे तबाह किया जिन की कज-अदाई ने

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पुस्तकें 2

 

वीडियो 4

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सहबा अख़्तर

सहबा अख़्तर

सहबा अख़्तर

ऑडियो 5

कुल जहाँ इक आईना है हुस्न की तहरीर का

ख़ुद को शरर शुमार किया और जल बुझे

गूँज मिरे गम्भीर ख़यालों की मुझ से टकराती है

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